बंगाली समाज के सिंदूरखेला संग जागृत हुई परंपरा
मां को बेटी की तरह दी गई विदाई. एक-दूसरे को सिंदूर लगा महिलाओं ने किया नृत्य
जागरण संवाददाता, रांची :
दुर्गापूजा के समापन के मौके पर बंगाली समुदाय ने सिंदूरखेला की रस्म निभाकर मां को विदा किया। इस मौके पर जहां मां से सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मांगा गया, वहीं मां की प्रतिमा के समक्ष सुहाग के प्रतीक सिंदूर को एक-दूसरे को लगाकर महिलाओं ने आनंद मनाया। बंगाली समाज मां दुर्गा की विदाई को बेटी की विदाई की तरह मानता है। मां के एक साल के लिए विदा होने के दुख के साथ साथ उनके हंसी-खुशी विदा होने का उल्लास भी था। इस मौके पर संस्कृति और परंपरा जीवंत हुई और सामूहिकता व समरसता का ऐसा नजारा दिखा कि घंटों लोग इसी में रमे रहे।
दुर्गाबाड़ी में दशमी के दिन महिलाओं ने तीन घंटे तक जमकर नृत्य किया। यहां सुबह साढ़े आठ बजे के बाद पुष्पांजलि अर्पित की गई। 9.30 बजे से मां को महिलाओं ने सिंदूरदान किया, सभी महिलाओं ने एकदूसरे के साथ सिंदूर खेला।
11.40 बजे कलश विसर्जन लाइन टैंक तालाब में किया गया। 2.40 में मूर्ति को बेदी से उतारा गया। 4.30 बजे तक सिंदूर खेला निरंतर चलता रहा। इसके बाद मां को विदा करने का अनुष्ठान आदि संपन्न किया गया। मां को बाड़ी से बाहर निकाला गया। तीन विशाल बल्लियों पर सावधानीपूर्वक मां की प्रतिमा को रखा गया। इसके बाद करीब 100 लोग कंधे पर लेकर मां की प्रतिमा को दुर्गाबाड़ी से लाइनटैंक तालाब पहुंचे। टैंक तालाब में 5.42 पर प्रतिमा को विसर्जित किया गया। शोभायात्रा में करीब 500 लोग शामिल हुए।
मूर्ति विसर्जन में दुर्गाबाड़ी के ज्योतिर्मय चौधरी, गोपाल भट्टाचार्य, अजीत चौधरी, पवित्र तरफदार, सेतांक सेन, अमिताभ मल्लिक, श्यामल, प्रदीप राय, संजय राय, मृणाल घोष, जयंत कर के अलावा महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष महुआ माजी, डॉ पंपासेन विश्वास सहित सैकड़ों महिलाएं शामिल रहीं। विसर्जन के दौरान हेलीकाप्टर से पुष्पवर्षा भी की गई।