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पूर्वी सिंहभूम के दारीसाई में चावल अनुसंधान के लिए वैज्ञानिक दल का गठन

आइसीएआर की भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान हैदराबाद द्वारा राष्ट्रीय चावल वैज्ञानिक कार्य समुह की वार्षिक बैठक आनलाइन हुई। इसमें अखिल भारतीय समन्वित चावल सुधार परियोजनाओं से जुड़े बीएयू के दो वैज्ञानिकों सहित देशभर के 350 से भी अधिक वैज्ञानिकों ने भाग लिया।

By Vikram GiriEdited By: Published: Thu, 22 Apr 2021 12:01 PM (IST)Updated: Thu, 22 Apr 2021 01:55 PM (IST)
पूर्वी सिंहभूम के दारीसाई में चावल अनुसंधान के लिए वैज्ञानिक दल का गठन
पूर्वी सिंहभूम के दारीसाई में चावल अनुसंधान के लिए वैज्ञानिक दल का गठन। जागरण

रांची, जासं । आइसीएआर की भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद द्वारा राष्ट्रीय चावल वैज्ञानिक कार्य समूह की वार्षिक बैठक आनलाइन हुई। इसमें अखिल भारतीय समन्वित चावल सुधार परियोजनाओं से जुड़े बीएयू के दो वैज्ञानिकों सहित देशभर के 350 से भी अधिक वैज्ञानिकों ने भाग लिया। बैठक में चावल अनुसंधान के पांच वर्षीय राष्ट्रीय जांच दल द्वारा बीएयू के शोध कार्यो की सराहना की गई। विवि के बेहतरीन शोध कार्य एवं प्रदेश में धान फसल के महत्त्व को देखते हुए बीएयू मुख्यालय के अतिरिक्त क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र, दारीसाई (पूर्वी सिंहभूम) के लिए चावल अनुसंधान के लिए वैज्ञानिक दल की स्वीकृति दी गई। इस दल में चावल प्रजनक, चावल शस्य विद एवं चावल कीट विशेषज्ञ के पदों को सृजित करने की अनुशंसा की गई।

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बीएयू के धान प्रजनक वैज्ञानिक ड. कृष्णा प्रसाद एवं धान कीट विशेषज्ञ डा. रबिन्द्र प्रसाद ने रांची केंद्र का प्रतिनिधित्व किया। दोनों वैज्ञानिकों ने देश भर में वर्ष 2020 में किये गए शोध कार्यो की उपलब्धियों की समीक्षा एवं मूल्यांकन की चर्चा में भाग लिए।बीएयू वैज्ञानिकों ने रांची केंद्र द्वारा अखिल भारतीय समन्वित चावल सुधार परियोजना के अधीन चावल शोध से सबंधित नवीन किस्मों/ प्रजातियों को विकसित की जाने वाली विभिन्न प्रजनन एवं आनुवांशिकी, शस्य एवं हानिकारक कीट व रोग ब्याधि सबंधी प्रयोगों की उपलब्धियों एवं भावी रणनीति एवं कार्यक्रमो को प्रस्तुत किया।

खाद्यान की आवश्यकता को पूरी करने पर बल

 बैठक में आइसीएआर महानिदेशक डा. त्रिलोचन महापात्रा ने देश की बढती जनसंख्या के खाद्यान की आवश्यकता एवं संतुलित पोषण आधारित चावल किस्मों के विकास, उत्पादन एवं उत्पादकता पर सतत टिकाऊ एवं लाभकारी वृद्धि वाली शोध रणनीति बनाने पर बल दिया। उन्होंने वैज्ञानिकों को चावल शोध की संभावित भावी योजनाओं के दीर्घगामी परिणामों के लिए वैज्ञानिकों को मनोयोग से शोध कार्य में लगे रहने को कहा।


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