मर्जर के बाद स्कूल भवनों का हाल, कहीं गोदाम बने तो कहीं मास्टर साहब का आशियाना
Jharkhand. स्कूलों के मर्जर के मामलों में सरकार की यह परिकल्पना मूर्त रूप नहीं ले सकी। कुछ जिलों ने इसमें अवश्य रुचि दिखाई शेष जिलों में यह आदेश धूल फांकता रह गया।
खास बातें
- 4600 स्कूलों का विलय हुआ पास के विद्यालय में
- 30 छात्रों पर एक शिक्षक का है मानक।
- 411 : 10 से कम थी छात्रों की संख्या
- 1427 : 10 से 30
- 1894 : 30 से 50
- 2734 : 50 से 100
रांची, जेएनएन। स्कूलों के मर्जर के पीछे सरकार की सोच सकारात्मक थी। सरकार के स्तर से कराए गए सर्वे में यह बात सामने आई थी कि हजारों स्कूलों में छात्र शिक्षक अनुपात समानुपातिक नहीं है। कहीं निर्धारित मानकों से अधिक शिक्षक थे तो कहीं इनका घोर अभाव था। लिहाजा सरकार ने छात्र-शिक्षक अनुपात को संतुलित करने की कड़ी में लगभग 4600 विद्यालयों का विलय पास के स्कूलों में कर दिया था।
सरकार का दावा है कि ऐसा करने से जहां शिक्षा की गुणवत्ता में अपेक्षित सुधार दिख रही है, वहीं विद्यालयों की मानीटरिंग तथा प्रशासनिक व्यय पर भी लगाम लगा है। खुद मुख्य सचिव डा. डीके तिवारी का मानना है कि नए भवनों के निर्माण में आने वाली लागत से कहीं बेहतर है कि अनुपयोगी भवनों में आवश्यकता आधारित सरकारी दफ्तरों को शिफ्ट किया जाए। उन्होंने इस बाबत विशेष दिशानिर्देश भी जारी किया था।
हालांकि कई मामलों में सरकार की यह परिकल्पना मूर्त रूप नहीं ले सकी। कुछ जिलों ने इसमें अवश्य रुचि दिखाई, शेष जिलों में यह आदेश धूल फांकता रह गया। उंगली पर गिने बंद पड़े कुछ विद्यालयों में जहां आंगनबाड़ी केंद्रों को शिफ्ट किया गया, वहीं कुछ विद्यालयों में पुस्तकालय खोले गए। शेष विद्यालय भवन या तो यूं ही बेकार पड़े हैं, अथवा उनमें से कई को शिक्षकों और ग्रामीणों ने अपना आशियाना बना लिया है तो कुछ का उपयोग गोदाम के तौर पर हो रहा है।
स्याह पक्ष
केस स्टडी : एक
दिन में सूखता है धान, रात में बन जाता गोशाला
लोहरदगा जिले के सेन्हा प्रखंड के जामुनडीपी स्थित नव प्राथमिक विद्यालय भवनों के दुरुपयोग की बानगी है। इसका विलय मध्य विद्यालय झालजमीरा में कर दिया गया। इसके बाद से पारा शिक्षक महेंद्र टाना भगत ने इसे अपना आशियाना बना लिया है। कई विद्यालय ऐसे भी हैं, जहां दिन में ग्रामीण धान सुखाते हैं तो रात्रि में पशुओं का बांधा जाता है।
केस स्टडी : दो
यहां बेकार पड़े हैं 230 विद्यालय, झाडू तक नहीं लग रहा
खरसावां जिले में विलय किए गए 300 स्कूल भवनों में से 230 भवन बेकार पड़े हुए हैं। चतरा की बात करें तो स्कूलों के विलय के बाद भवनों का दुरुपयोग हो रहा है। दर्जनों ऐेसे विद्यालय हैं, जिसमें समायोजन के बाद झाड़ू तक नहीं लगा है। कुंदा प्रखंड स्थित ककहिया उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय भवन का इस्तेमाल गोदाम के रूप में, पचरूखिया उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय में पुआल रखा हुआ है तो हंटरगंज प्रखंड गढकेदली प्राथमिक विद्यालय एवं कोबनी उत्क्रमित मध्य विद्यालय भवन का उत्क्रमित विद्यालय के कमरा का इस्तेमाल ग्रामीण अपनी सुविधाओं पर कर रहे हैं।
केस स्टडी : तीन
चाईबासा में खिड़की तक चुरा ले गए ग्रामीण
पश्चिम सिहंभूम में बंद पड़े 192 सरकारी विद्यालयों की स्थिति देखरेख के अभाव में जर्जर हो चली है। कई विद्यालयों के दरवाजे और खिड़कियां ग्रामीण चुरा ले गए हैं। चक्रधरपुर प्रखंड के केरा गांव इसकी बानगी है। मझगांव स्थित उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय, भमरपानी का भवन पूरी तरह जर्जर हो गया है। ग्रामीण विद्यालय की ईंटें निकालकर अपने भवन में लगा रहे है। इसी तरह मंझारी प्रखंड के थई स्थित बालक विद्यालय भवन का इस्तेमाल ग्रामीण लकड़ी रखने में कर रहे हैं।
श्वेत पक्ष
बंद भवनों में खुलेंगे आंगनबाड़ी केंद्र, अस्पताल व पुस्तकालय
पूर्वी सिंहभूम में 481 स्कूलों को बंद किया गया था। इसमें से 70 स्कूलों को जिला प्रशासन ने पंचायत स्तरीय कार्यों के लिए उपयोग में लिया है। इनमें सरकारी कार्यों का निष्पादन किया जा रहा है। खरसावां जिले में बंद पड़े स्कूलों में से 70 स्कूल भवनों को आंगनबाड़ी केंद्रों को शिफ्ट किया गया है। बोकारो में स्कूलों के मर्जर के बाद वहां बंद पड़े विद्यालय भवनों को आंगनबाड़ी केंद्र, पुस्तकालय व अस्पताल में तब्दील किए जाने की तैयारी है।