Move to Jagran APP

चमकती तकदीर की फसल काटने को रोपा कर रहीं स्कूली बच्चियां

स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियां खेत में धान रोपने का भी काम करती हैं। बदल में मजदूरी के साथ-साथ भोजन भी मिलता है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 19 Aug 2019 04:27 AM (IST)Updated: Mon, 19 Aug 2019 04:27 AM (IST)
चमकती तकदीर की फसल काटने को रोपा कर रहीं स्कूली बच्चियां
चमकती तकदीर की फसल काटने को रोपा कर रहीं स्कूली बच्चियां

विवेक आर्यन, रांची :

loksabha election banner

रौशनी लकड़ा, उम्र 15 वर्ष। सातवीं कक्षा की छात्रा स्कूल से आने के बाद धान के खेत में है। दो घंटे की धनरोपनी के बाद मेढ़ पर ही खाने बैठी है। साथ में दर्जन भर और लड़कियां हैं। सभी के प्लेट में दाल, चावल और गेंधारी साग है। सभी के स्कर्ट घुटने से ऊपर, कुछ ने हाफ पैंट के ऊपर गमछा बांध रखा है, धान जो रोपना है उन्हें। साथ में गांव की और भी महिलाएं हैं। पीछे पतीले में खाना और पानी रखा है। धूप तेज है, आसमान साफ, लेकिन खेतों में पानी है। दो दिनों की बारिश ने खेतों को भर दिया है। इसी बीच कच्ची सड़क पर हमारी गाड़ी रुकती है। उनके पास जाने तक सभी की नजरें हमपर हैं। कुछ महिलाएं जो अभी भी धान रोप रहीं हैं, वे भी रूक गई हैं। कैमरा देख कर कुछ लड़कियां नजर चुराती हैं, मुस्कुराती भी हैं। शायद समझ चुकी हैं कि पत्रकार है, तस्वीरें लेंगे और कुछ बात करेंगे। वही हुआ। स्कूल में थ्योरी तो खेतों में होता है प्रैक्टिकल -

फोटो जर्नलिस्ट मनोरंजन ने कुछ तस्वीरें ली। मैंने रौशनी से उनका नाम पूछा और लड़कियों से बात करने लगा। पता चला कि वे सभी रुक्का गांव के ही सरकारी स्कूल की लड़कियां हैं। 12 बजे छुट्टी होने के बाद वे खेतों में रोपा करने आई हैं। खेत अपनी नहीं है, रोपा के बदले उन्हें पैसे मिलते हैं। कितने मिलते हैं, यह नहीं पूछा। पूछना अच्छा नहीं लगा। पर जितना भी मिलता है, वे अपने घर पर देती हैं। उसी से घर का कुछ खर्च भी चलता है। उन्हीं में से एक बच्ची ने कहा कि स्कूल में वे थ्योरी सीखती हैं, यहां खेतों में प्रैक्टिकल होता है। मजाक में कहीं बात में बड़ा दम था। खेत के मालिक ही देते हैं दोपहर का खाना -

स्कूली बच्चियों के प्लेट में चावल, दाल और साग खेतों के मालिकों द्वारा दिया गया है। महिलाओं से पूछने पर पता चला कि यहां मजदूरी के साथ खाना भी दिया जाता है। हालांकि कई अन्य राज्यों में अब खाना नहीं दिया जाता, बस पैसे मिलते हैं। बातों के बीच उनका खाना खत्म हुआ। प्लेट को एक जगह रख उन्होंने हाथ धोया। स्कूल हर दिन जाती हैं? मैंने आखिरी सवाल किया। कभी-कभी नहीं जाते हैं, उनमें से एक ने कहा। साफ हो गया कि शिक्षा के लिए उन लड़कियों ने मेहनत की राह नहीं छोड़ी। आज वे दूसरों की खेत में फसल बो रही थीं, ताकि उनके पैसों से कल अपनी जिंदगी में हरियाली ला सके।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.