Move to Jagran APP

Sarna Dharma Code: आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड से जनकल्याण के कौन से निहितार्थ पूरे होंगे

जनगणना 2021 का विषय (थीम) जन भागीदारी से जनकल्याण है लेकिन आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड से जनकल्याण के कौन से निहितार्थ पूरे होंगे यह तो राजनीतिक दल ही बेहतर बता सकते हैं लेकिन भोले-भाले आदिवासियों को हर चुनाव में अब यह झुनझुना जरूर दिखाया जाएगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 13 Nov 2020 11:14 AM (IST)Updated: Fri, 13 Nov 2020 11:14 AM (IST)
Sarna Dharma Code: आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड से जनकल्याण के कौन से निहितार्थ पूरे होंगे
विधानसभा से सरना धर्म कोड का प्रस्ताव पास होने के बाद रांची में जश्न मनाते आदिवासी। जागरण

रांची, प्रदीप शुक्ला। आगामी जनगणना में आदिवासियों के लिए सरना धर्म कोड की वकालत राज्य में बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है। राज्य की गठबंधन सरकार ने विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर इस बाबत प्रस्ताव पास कराया है, जिसे अब केंद्र को भेजने की तैयारी है। विपक्ष में बैठी भाजपा और आजसू की भी इसमें सहमति है, लेकिन इस मांग को लेकर लंबे समय से आंदोलनरत सरना आदिवासियों के ही तमाम संगठनों में मतभेद उभर रहे हैं। आदिवासी समुदाय भी आशंकित हैं कि कहीं अलग धर्म कोड मिलने से वह अल्पसंख्यक श्रेणी में न दर्ज हो जाएं और अनुसूचित जनजाति के अंतर्गत मिलने वाले फायदों पर भविष्य में ग्रहण न लग जाए। इस विषय पर ईसाई मिशनरियों की सक्रियता पर भी लगातार सवाल उठ रहे हैं।

loksabha election banner

राज्य में दो सीटों पर उपचुनाव के दौरान ही मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने घोषणा कर दी थी कि आगामी जनगणना में आदिवासी-सरना धर्म कोड का अलग कालम शामिल करवाने का प्रस्ताव पास करवाने के लिए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया जाएगा। अब जब दोनों सीटें यूपीए गठबंधन जीत गया है और इस जीत का श्रेय भी आदिवासियों को दिया गया है तो इससे यह तो साफ हो गया है कि झामुमो इसके जरिये आदिवासियों में अपनी पैठ को और मजबूत करने की कोशिश करेगी। गठबंधन सरकार का तर्क है कि इससे आदिवासियों की सही संख्या का पता चल सकेगा, साथ ही उनके लिए बेहतर तरीके से विकास की योजनाएं बन सकेंगी। कांग्रेस भी हां में हां मिला रही है, लेकिन भाजपा पूछ रही है कि जब पहले से जनसंख्या में यह व्यवस्था लागू थी तो 1961 में उसे हटाया क्यों? भाजपा यह भी पूछ रही है कि क्या धर्मातरित आदिवासियों को इससे इतर रखा जाएगा? जो अपना धर्म बदल चुके हैं वह आदिवासियों की सुविधाओं पर डाका क्यों डाल रहे हैं? क्या गठबंधन सरकार इसके खिलाफ भी कोई कानून लाएगी? इन तमाम सवालों के साथ ही यह मुद्दा गंभीर होता जा रहा है।

जानकार मानते हैं कि प्रस्ताव के पीछे आदिवासियों की चिंता से ज्यादा सियासत है। झारखंड के आदिवासियों को जनगणना में अलग से धर्म कोड का प्रस्ताव केंद्र सरकार पहले ही ठुकरा चुकी है। पूर्व में राज्य के विभिन्न आदिवासी संगठनों के आग्रह पर केंद्रीय गृह मंत्रलय ने स्पष्ट किया था कि अलग धर्म कोड संभव नहीं है। कुछ लोग भोले-भाले आदिवासियों को बरगलाने के लिए सरना धर्म कोड की वकालत करते हैं। अब इसमें आदिवासी और जोड़ दिया गया है। वह सवाल करते हैं, हिंदू मंदिर में पूजा करते हैं तो क्या मंदिर धर्म है? इसी तरह मस्जिद, गुरुद्वारा या फिर अन्य उपासना स्थल के नाम पर धर्म कोड दिए जा सकते हैं? ये तो सीधे हमारी आस्था से जुड़े हैं। किसी की आस्था के साथ राजनीति नहीं की जानी चाहिए। इसी तरह सरना झारखंड के आदिवासियों का पूजा स्थल है। अलग-अलग राज्यों में रह रहे आदिवासियों के लिए क्या अलग-अलग धर्म कोड बनाए जाएंगे? राज्य सरकार ने इसी सवाल के जवाब में सरना के साथ आदिवासी जोड़ दिया है। इसका कई स्तरों पर विरोध भी हुआ।

विधानसभा में सिर्फ सरना कालम को पारित करने का दबाव बना। बाद में यह संशोधन करने पर सहमति बनी कि आदिवासी/ सरना धर्म कोड के स्थान पर आंशिक संशोधन कर सरना आदिवासी धर्म कोड का प्रस्ताव पारित किया जाए। आदिवासी शब्द हटाकर सिर्फ सरना धर्म कोड का कालम जोड़ने का प्रस्ताव केंद्र को भेजने पर भी दबाव था। इधर, सरना धर्म कोड की मांग कर रहे संगठन भी सरकार पर इस संबंध में दबाव बना रहे हैं। अब यह चर्चा भी जोर पकड़ रही है कि आदिवासी शब्द जुड़वाने के पीछे कहीं ईसाई मिशनरियां तो नही हैं। वह लंबे समय से आदिवासियों को हिंदू समुदाय से अलग-थलग दिखाने का कुचक्र रचती आ रही हैं। यह जगजाहिर है कि झारखंड में ईसाई मिशनरियां राजनीति में खूब दिलचस्पी लेती हैं। चुनावों में इनकी बड़ी भूमिका रहती है, इसलिए ज्यादातर नेता इनके सामने शरणागत होते रहते हैं। यह देखना भी दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में इस संवेदनशील मुद्दे पर राजनीति क्या करवट लेती है?

[स्थानीय संपादक, झारखंड]


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.