ग्रामीणों ने पहाड़ को काटकर बनाई नहर, गांव तक पहुंचा पानी
जिस काम को अभियंताओं ने भी नकार दिया था, उसे झारखंड के ग्रामीणों ने कर दिखाया, 14 वर्षों तक कड़ी मेहनत कर चार किमी पहाड़ को काटकर नहर का किया निर्माण।
रांची, संजय कुमार। प्रसिद्ध कवि दुष्यंत कुमार ने कहा था- कौन कहता है कि आसमान में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालों यारों। आशय है कि यदि दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो कोई भी काम असंभव नहीं है, लेकिन इसके लिए पूरी शिद्दत के साथ लगना पड़ता है, जिसके बाद मंजिल मिल ही जाती है। इस बात को सही किया है झारखंड के गुमला जिले के बिशुनपुर प्रखंड के ग्रामीणों ने। वर्षों से पानी के लिए तरस रहे कुंबाटोली, चट्टी सेरका, रहटोली जैसे 12 गांवों के लोगों ने पास के पहाड़ पर जमा रह रहे पानी को नीचे उतारने का काम तय किया।
विकास भारती के सचिव पद्मश्री अशोक भगत के प्रयास से कई अभियंताओं को बुलाया गया। सभी ने कहा, यह काम असंभव है। वहीं, ग्रामीणों ने ठान लिया कि इसे करके रहेंगे। कुंबाटोली के चंपा भगत के नेतृत्व व अशोक भगत के मार्गदर्शन में ग्रामीणों के लगातार 14 वर्षों के भागीरथ प्रयास से चार किलोमीटर पहाड़ को काटकर नहर का निर्माण किया गया। आज उसके आसपास गांवों की आर्थिक स्थिति बदल गई है। गांव में अब जमकर खेती होती है। लोग काम की तलाश में दूसरे जगहों पर अब नहीं जाते हैं। इस काम को देखने के लिए झारखंड सहित दूसरे राज्यों से भी लोग आते हैं। चंपा भगत कहते हैं कि ग्रामीणों ने तय किया कि पहाड़ पर जो पानी जमा रहता है, उसे गांव तक लाना है। इसके बाद सभी पुरुष व महिलाओं ने श्रमदान करना तय किया। सुबह आठ बजे सभी लोग पहाड़ पर चढ़ जाते थे और शाम को लौटते थे।
पुरुष पत्थर तोड़ते थे और महिलाएं उससे नहर बनाने का काम करती थीं। तीन वर्षों तक लगातार काम चलता रहा। फिर लगा कि समय काफी लगेगा। लोगों के सामने भोजन की समस्या उत्पन्न होने लगी। बहुत से लोगों ने साथ छोड़ दिया। फिर अशोक भगत ने कहा कि जो लोग काम करेंगे उनके लिए चावल की व्यवस्था मैं करूंगा। उसके बाद से चार गांव के लोग काम पर लगे रहे। फिर हमलोगों ने तय किया कि सप्ताह में एक दिन गुरुवार को चावल नहीं लेकर श्रमदान करेंगे। और इस तरह 2001 में जिस काम को प्रारंभ किया उसे 2015 में जाकर पूरा किया।
गांव में नहीं था सिंचाई का साधन, आज बदल गई स्थिति
विकास भारती से जुड़े महेंद्र भगत कहते हैं कि इलाके में एक भी चेक डैम नहीं था और पीने का पानी भी बड़ी मुश्किल से मिलता था। ग्रामसभा में भी इसके लिए प्रस्ताव रखा गया और सरकार से भी सहायता की उम्मीद थी, पर इसका कोई लाभ नहीं मिल पाया। गांव में दो-चार कुआं था। सिंचाई का साधन नहीं था। किसी तरह से लोग गुजर-बसर करने को मजबूर थे। वहीं आज स्थिति कुछ और है।
पहाड़ से पानी गांव में जैसे ही उतरा, स्थिति बदल गई। गांव में खुशहाली है। सभी घरों में साल भर का अनाज मिल जाता है। सब्जियों की खेती साल भर होती है। कृषि विज्ञान केंद्र से इसमें काफी सहयोग मिलता है। कुंबाटोली के लोगों ने यह साबित कर दिया की मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती है। सभी काम सरकार के भरोसे ही नहीं छोड़ सकते हैं।