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दुश्मनों के छक्के छुड़ाने को तैयार हैं स्वयंसेवक, 1962 के युद्ध में दिया था सेना का साथ

India China. आरएसएस झारखंड के सह प्रांत शारीरिक प्रमुख व विभाग प्रचारक कुणाल कुमार ने कहा कि जब भी जरूरत पड़े यहां के हजारों स्वयंसेवक सीमा पर जाने की रजामंदी जता चुके हैं।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Mon, 22 Jun 2020 11:19 AM (IST)Updated: Mon, 22 Jun 2020 05:04 PM (IST)
दुश्मनों के छक्के छुड़ाने को तैयार हैं स्वयंसेवक, 1962 के युद्ध में दिया था सेना का साथ
दुश्मनों के छक्के छुड़ाने को तैयार हैं स्वयंसेवक, 1962 के युद्ध में दिया था सेना का साथ

रांची, [संजय कुमार]। देश पर जब भी किसी तरह की विपदा आई, आरएसएस के स्वयंसेवकों ने सरकार के साथ मिलकर उसका जमकर मुकाबला किया। लॉकडाउन से प्रभावित लोगों की सेवा में हजारों स्वयंसेवकों ने जहां भोजन कराने, राशन पहुंचाने से लेकर रोग निरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए काढ़ा पिलाने तक का काम किया, वहीं सुदूर क्षेत्र के बच्चों की पढ़ाई बाधित न हो, ऑनलाइन शिक्षा तक की व्यवस्था की। अब जबकि सीमा पर चीन के साथ खटास परवान पर है, स्वयंसेवक सेना की मदद व दुश्मनों के छक्के छुड़ाने को तैयार हैं।

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इंतजार है तो बस सरकार व संघ का निर्देश मिलने का। आरएसएस झारखंड के सह प्रांत शारीरिक प्रमुख व विभाग प्रचारक कुणाल कुमार के अनुसार सरकार को जब भी जरूरत पड़े यहां के हजारों स्वयंसेवक सीमा पर जाने की रजामंदी जता चुके हैं। 1962 की जंग में भी स्वयंसवकों ने भारत-चीन सीमा पर अपनी सेवा दी थी। सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत भी कई बार कह चुके हैं कि संघ के स्वयंसेवक अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए हंसते-हंसते बलिदान होने को सदैव तैयार रहते हैं।

अभाविप के 10000 से अधिक कार्यकर्ता हैं एनसीसी प्रशिक्षित

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के झारखंड प्रदेश संगठन मंत्री याज्ञवल्य्क शुक्ल के अनुसार पूरे देश में अभाविप के 10000 से अधिक कार्यकर्ता एनसीसी से प्रशिक्षित हैं। सभी को एसएलआर (सेल्फ लोडिंग राइफल) तक चलाने का अनुभव है। ये ऐसे कार्यकर्ता हैं, जो एक सूचना पर देश की रक्षा के लिए घर से निकल जाने वाले हैं। ये सभी दुश्मन के सीने में गोली उतारना और भारत मां की रक्षा के लिए हंसते-हंसते गोली खाना जानते हैं।

1962 के युद्ध में स्वयंसेवकों के कार्य से नेहरू हुए थे प्रभावित

आरएसएस झारखंड के सह प्रांत कार्यवाह राकेश लाल ने कहा कि चीन के साथ 1962 के युद्ध के समय संघ के स्वयंसेवकों ने सीमा पर सेना के लिए राशन पहुंचाने के साथ-साथ जिस रास्ते से सेना की गाड़ी जाती थी, उसकी सुरक्षा का जिम्मा संभाला था। स्वयंसेवकों के कामों से प्रभावित होकर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 26 जनवरी 1963 को गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया और सैकड़ों स्वयंसेवकों ने उस परेड में भाग लिया।

सभी स्वयंसेवक चीनी उत्पादों का करें बहिष्कार

सह प्रांत कार्यवाह ने कहा कि अभी चीन पर आर्थिक रूप से चोट करने की जरूरत है। इसलिए भारत में चीनी उत्पादों का जहां तक संभव हो सके बहिष्कार करना होगा। संघ के सभी स्वयंसेवक अपने घरों से इसकी शुरुआत करें। इसके बाद पड़ोस के लोगों को इसके लिए प्रेरित करें। यही समय है कि हम चीन को आर्थिक रूप से क्षति पहुंचाकर सबक सीखा सकते हैं। ऐसे जो भी सामान, जिसकी उपलब्धता भारतीय बाजार में नहीं है, उसे देश में ही तैयार करने की जरूरत है।


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