Emergency in India: आपातकाल का वह दौर, जब मुस्लिम बंदियों के लिए सेहरी बनाते थे स्वयंसेवक
Emergency in India. आपातकाल के समय गया सेंट्रल जेल में आरएसएस और जमात-ए-इस्लामी के कार्यकर्ता बंद थे। झारखंड के पूर्व सीएम रघुवर दास भी बीस वर्ष की उम्र में जेल गए थे।
रांची, [एम. अखलाक]। आपातकाल के दौरान गया (बिहार) सेंट्रल जेल में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के कार्यकर्ता मुसलमान बंदियों के लिए रमजान के पवित्र महीने में रात दो बजे उठ कर सेहरी बनाया करते थे। यही नहीं नमाज के वक्त उनका भरपूर सहयोग भी करते थे। यह ऐसा दौर था जब आरएसएस के विचारों के बारे में कई राजनीतिक दलों में फैली गलतफहमियों को दूर करने में मदद भी मिली। यह संस्मरण झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने बुधवार को दैनिक जागरण से बयां की।
आपातकाल का अनुभव साझा करते हुए रघुवर दास कहते हैं कि बीस साल की उम्र में आइएससी के छात्र थे। 25 जून की आधी रात दोस्तों के साथ पूर्वी सिंहभूम जिले के जमशेदपुर के भालूवासा किशोर संघ मैदान में छात्र संघर्ष समिति का कार्यालय बना रहे थे। तभी एक राहगीर ने कहा कि जल्दी भागो, इमरजेंसी लग गई है। पुलिस पकड़ लेगी। इतना सुनते ही सभी युवक भाग खड़े हुए। थोड़ी देर बाद पुलिस आई। उजाड़ कर सबकुछ लेती गई।
खैर, भूमिगत होकर अपने साथियों के साथ जेपी आंदोलन के लिए काम करने लगे। छह जुलाई की रात दो बजे पुलिस के हत्थे चढ़ गए। दरअसल, हुआ यह कि उस दिन झमाझम बारिश हो रही थी। इस उम्मीद में दूसरे के घर पर सो रहे थे कि इतनी बारिश में भला पुलिस कैसे आएगी। लेकिन रात दो बजे पुलिस धमक पड़ी। उन्हेंं डीआइआर के तहत जेल भेज दिया गया।
जेल में कई नेताओं से मुलाकात हुई। इनमें जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठन के कार्यकर्ता भी थे। जेल में नारा गूंजने लगा- जेल का फाटक टूटेगा, जयप्रकाश नारायण छूटेगा...। इसके बाद 14 अगस्त की रात आठ बजे आंदोलनकारियों को गया सेंट्रल जेल भेज दिया गया। यहां भी जेल में आंदोलन जारी रहा। एक मर्तबा जेल में पगली घंटी बजी तो छात्रों की खूब पिटाई हुई। खैर, जेल में एकसाथ रहने से सभी को अपनी विचारधाराओं पर खुल कर चर्चा करने का मौका मिला। आरएसएस को मुसलमानों का शत्रु बताने की कांग्रेस की कोशिशों की कलई भी खुल गई।
जमात-ए-इस्लामी के कई कार्यकर्ताओं ने जब खुद देखा कि स्वयंसेवक कितने सहयोगी व मानवीय हैं तो चकित रह गए। जमात-ए-इस्लाम के नेता व कार्यकर्ता भी जेल में सभी आयोजनों में हिस्सा लेते थे। संघ के प्रति इनका नजरिया अगल था, लेकिन साथ रहते-रहते और स्वयंसेवकों के व्यवहार से इनका नजरिया बदल गया। डीआइआर में जमानत मिलने का जब प्रावधान हुआ तो जमशेदपुर के वरिष्ठ वकील एके सरकार ने पैरवी की। कोर्ट से जमानत मिली। घर आते ही पुलिस ने फिर मीसा के तहत गिरफ्तार करने के लिए छापेमारी शुरू कर दी। अंतत: भूमिगत हो गया।