आरएसएस के प्रांत प्रचारक रविशंकर ने कहा, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही सृष्टि की हुई थी रचना
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत प्रचारक रविशंकर ने कहा कि नव संवत्सर के दिन ही सृष्टि की रचना हुई थी। विशेषताओं से भरा है नववर्ष।
जागरण संवाददाता, रांची : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत प्रचारक रविशंकर ने कहा कि नव संवत्सर 2020 चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, 25 मार्च से प्रारंभ हो रहा है। यही हमारा नया वर्ष है। इस बार कोरोना वायरस के कारण अपने-अपने घरों में ही मनाएं। भारतीय नववर्ष कई विशेषताओं से भरा है। इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। ग्रंथों में लिखा है कि जिस दिन सृष्टि का चक्र प्रथम बार विधाता ने प्रवर्तित किया, उस दिन चैत्र शुदी एक रविवार था।
रविशंकर ने कहा कि हमारे लिए आने वाला संवत्सर 2077 बहुत ही भाग्यशाली होगा क्योंकि इस वर्ष भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को बुधवार है। हमारा नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को शरू होता है। इस दिन ग्रह और नक्षत्र में परिवर्तन होता है। हिदी महीने की शुरुआत इसी दिन से होती है। इसी दिन हमलोग उपवास एवं पवित्र रह कर नव वर्ष की शुरुआत करते हैं।
परम पुरुष अपनी प्रकृति से मिलने जब आते हैं तो सदा चैत्र में ही आते हैं। इसीलिए सारी सृष्टि सबसे ज्यादा चैत्र में ही महक रही होती है। वैष्णव दर्शन में चैत्र मास भगवान नारायण का ही रूप है। चैत्र का आध्यात्मिक स्वरूप इतना उन्नत है कि इसने वैकुंठ में बसने वाले ईश्वर को भी धरती पर उतार दिया। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का अवतार चैत्र शुक्ल नवमी को होता है चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि के ठीक नवें दिन था परंतु राज्याभिषेक प्रतिपदा को हुआ था।
संघ संस्थापक का जन्म इसी दिन हुआ था
उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य ने इसी दिन शकों को पूर्ण रूप से परास्त कर विक्रमी संवत आरंभ किया। महर्षि दयानंद ने आर्य समाज की स्थापना इसी दिन 1875 में की थी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार का जन्म भी इसी दिन हुआ था। चैत मास का वैदिक नाम है मधुमास
उन्होंने बताया कि चैत्र मास का वैदिक नाम, मधु मास है। मधु मास अर्थात आनंद बाटती वसंत का मास। यह वसंत आता तो है फाल्गुन में ही, पर पूरी तरह से व्यक्त होता है चैत्र में। सारी वनस्पति और सृष्टि प्रस्फुटित होती है। पके मीठे अन्न के दानों में,आम की मन को लुभाती खुशबू में गणगौर पूजती कन्याओं और सुहागिन नारियों के हाथ की हरी-हरी दूब में तथा वसंतदूत कोयल की गूंजती स्वर लहरी में। चारों ओर पकी फसल का दर्शन आत्मबल और उत्साह को जन्म देता है। नई फसल घर में आने का समय भी यही है। इस समय प्रकृति में उष्णता बढ़ने लगती है जिससे पेड़ -पौधे जीव-जंतु में नव जीवन आ जाता है। लोग इतने मदमस्त हो जाते हैं कि आनंद में मंगलमय गीत गुनगुनाने लगते हैं। नववर्ष पर अपने अपने घरों पर भगवा ध्वज लगाएं। शाम को घरों में दीपक जलाएं। दरवाजे पर रंगोली बनाएं। मिष्टान बनाएं एवं सभी को नववर्ष की शुभकामनाएं दें।