Move to Jagran APP

साथ आने के पहले ही जुदा हुए बंधु तिर्की और सालखन मुर्मू

एकता के मसले पर दोनों नेताओं सहित अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं की होने वाली बैठक चुपके से टाल दी गई।

By Sachin MishraEdited By: Published: Fri, 07 Jul 2017 03:49 PM (IST)Updated: Fri, 07 Jul 2017 03:49 PM (IST)
साथ आने के पहले ही जुदा हुए बंधु तिर्की और सालखन मुर्मू
साथ आने के पहले ही जुदा हुए बंधु तिर्की और सालखन मुर्मू

आशीष तिग्गा, रांची। अलग झारखंड बनने के साथ डोमिसाइल आंदोलन में साथ रहे पूर्व शिक्षामंत्री बंधु तिर्की और भाजपा के पूर्व सांसद सालखन मुर्मू के रास्ते साथ होने के पहले ही जुदा हो गए। एकता की पहल को इनके ही कार्यकर्ताओं की नजर लग गई। दरअसल, दोनों के कार्यकर्ता अपने-अपने कारणों से एक-दूसरे को पसंद नहीं करते। इसी 28 जून को एकता के मसले पर दोनों नेताओं सहित अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं की होने वाली बैठक चुपके से टाल दी गई। इससे एकता की लंबी कवायद पर पानी फिर गया।

loksabha election banner

राज्यपाल द्वारा सीएनटी-एसपीटी संशोधन विधेयक को वापस करने और बाद में राज्य सरकार द्वारा भी इससे पीछे हटना भी इसका एक कारण है। दरअसल सीएनटी-एसपीटी और स्थानीय नीति को लेकर चर्च संगठन भी आंदोलन को हवा दे रहा था। उनकी दलील थी कि किसी दल या नेता को वे प्रोजेक्ट नहीं करेंगे। आंदोलन के लिए सारे एकजुट हों।बहरहाल, सालखन और बंधु ने एकता पर अपने कार्यकर्ताओं के विरोध, दबाव और मूड को देखते हुए साझा आंदोलन के विचार को ठंडे बस्ते में डाल दिया।

पूर्व में आदिवासी आंदोलनों को इन दोनों नेताओं के मिलने से जिस धार और आदिवासी आंदोलन के विस्तार की उम्मीद की जा रही थी, वह धरी रह गई। अब पूर्व सांसद और सेंगेल अभियान के मुख्य संयोजक सालखन मुर्मू, पूर्व मंत्री थियोडोर किड़ो, पूर्व आइपीएस अधिकारी डॉ. अरुण उरांव ने साथ मिलकर आदिवासी आंदोलन को आगे ले जाने की कवायद शुरू की है। इस अभियान को ताकत देने राष्ट्रीय मुस्लिम मोर्चा के शकील खान व वामसेफ के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. बी. पासवान ने भी हाथ थामा है। इस खेमे की आठ जुलाई को एचपीडीसी हॉल में संयुक्त बैठक बुलाई गई है। जिसमें आगे की रणनीति तय की जाएगी।

जानिए, क्या था मामला:

सीएनटी-एसपीटी एक्ट के संशोधन के विरोध में विभिन्न संगठनों ने रघुवर सरकार के खिलाफ अलग-अलग मोर्चा खोल रखा था। बार-बार आरोप लग रहा था कि आदिवासी आंदोलन चर्च प्रायोजित है। इस पर बिझान कैथोलिक बिशप्स ने आपत्ति की थी। कहा था कि चर्च किसी भी पार्टी विशेष-व्यक्ति विशेष को बढ़ावा नहीं देगा। वह सभी को साथ में लेकर आंदोलन में चलेगा।

चर्च ने सभी पार्टी व नेताओं को नसीहत दी थी कि एक मंच पर आकर आंदोलन करे। इसके बाद से बंधु तिर्की, सालखन मुर्मू सहित अन्य संगठनों को एक मंच में लाने की कवायद शुरू की गई थी। जिसकी जिम्मेदारी सामाजिक कार्यकर्ता दयामनी बारला, फादर स्टेन स्वामी सहित अन्य लोगों को सौंपी गई थी। एक प्रकार से बंधु और सालखन के जुदा रास्ते ने चर्च की पहल को भी झटका दिया है। 

यह भी पढ़ेंः झारखंड में झामुमो ने भाजपा को दी चुनौती, सबूत है तो करें कार्रवाई

यह भी पढ़ेंः झारखंड में भाजपा के निशाने पर शिबू सोरेन का कुनबा


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.