दान, बंधक और बंटवारा 110 फीसद सरचार्ज से मुक्त
सात दशक पुराना बिहार मनोरंजन ड्यूटी, कोर्ट फीस एवं मुद्रांक (अधिभार संशोधन) अधिनियम ि
सात दशक पुराना बिहार मनोरंजन ड्यूटी, कोर्ट फीस एवं मुद्रांक (अधिभार संशोधन) अधिनियम निरस्त राज्य ब्यूरो, रांची : 2004 में ही जमीन-फ्लैट की खरीद-बिक्री से संबंधित निबंधित दस्तावेज (डीड) से सरचार्ज हटा चुकी सरकार अब दानपत्र के अलावा बंधक, बंटवारे आदि से संबंधित डीड को भी 110 फीसद के सरचार्ज (अधिभार) से मुक्त कर दिया है। इसके साथ ही लगभग सात दशक पुराना बिहार मनोरंजन ड्यूटी, कोर्ट फीस एवं मुद्रांक (अधिभार संशोधन) अधिनियम 1948 निरस्त हो गया है। इससे संबंधित झारखंड वित्त विधेयक 2018 शनिवार को सदन में पास हो गया। सरकार का दावा है कि इससे जहां एक ओर सरकार के राजस्व में वृद्धि होगी, वहीं जनता पर वित्तीय बोझ भी कम होगा।
बताते चलें कि 31 मई 2004 के प्रभाव से जमीन-फ्लैट की खरीद-बिक्री को 110 फीसद सरचार्ज से मुक्त करते हुए मुद्रांक शुल्क चार फीसद निर्धारित कर दिया गया था। इससे इतर दान, बंधक, बंटवारा आदि से संबंधित डीड पर पूर्व की ही तरह निर्धारित शुल्क के अलावा सरचार्ज लगता रहा। इसे इस तरह समझें दानपत्र से संबंधित 1001 से 10 हजार तक के मूल्य के डीड पर 42 रुपये प्रति हजार (4.2 फीसद) तथा 10 हजार से अधिक के डीड पर 63 रुपये (6.3 फीसद) राशि ली जाती थी, जो जमीन-फ्लैट की खरीद-ब्रिकी से संबंधित डीड के मुद्रांक शुल्क चार फीसद अधिक है।
इसी तरह बंधक और बंटवारे से भी संबंधित डीड पर 4.2 फीसद शुल्क लिया जाता रहा है। सरकार का तर्क है कि अगर 110 फीसद सरचार्ज नहीं हटाया जाता तो शहरी क्षेत्र में प्रभावी मुद्रांक (छह फीसद और उसपर 110 फीसद सरचार्ज) 12.6 फीसद और ग्रामीण क्षेत्रों में प्रभावी मुद्रांक (चार फीसद और उसपर 110 फीसद सरचार्ज) 8.4 फीसद हो जाता, इससे डीड की मुद्रांक दर दोगुनी हो जाती, जो व्यावहारिक नहीं होता।
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डेवलपर एग्रीमेंट पर 2.5 फीसद शुल्क
इस विधेयक में महत्वपूर्ण बात यह है कि बिल्डर, प्रमोटर या डेवलपर को अचल संपत्ति के विकास, निर्माण या विक्रय के लिए तय करार पर सरकार को 2.5 फीसद स्टांप शुल्क देना होगा।
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परिवार के सदस्य को दान करने पर अब तीन फीसद ही स्टाम्प शुल्क
परिवार के किसी सदस्य को कोई संपत्ति दान करने पर तीन फीसद स्टाम्प शुल्क लगेगा। पहले यह दर 6.3 फीसद थी।
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केंद्र से लौट गया था विधेयक
राज्य सरकार ने यह विधेयक 2016 में ही विधानसभा में पारित कराया था। जब इसे राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा गया तो भारत सरकार के आर्थिक मामलों के मंत्रालय द्वारा कुछ त्रुटियां गिनाते हुए वापस कर दिया गया। अब इस विधेयक को दोबारा राज्यपाल के माध्यम से राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा जाएगा।
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