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हूल दिवस :: संताल परगना काश्तकारी अधिनियम सिदो-कान्हो के आंदोलन के परिणाम

स्वतंत्रता आंदोलन के इस विद्रोह में सिदो कान्हू अपने पिता भाइयों तथा बहनों के साथ शहीद हो गए

By JagranEdited By: Published: Tue, 30 Jun 2020 01:57 AM (IST)Updated: Tue, 30 Jun 2020 01:57 AM (IST)
हूल दिवस :: संताल परगना काश्तकारी अधिनियम सिदो-कान्हो के आंदोलन के परिणाम
हूल दिवस :: संताल परगना काश्तकारी अधिनियम सिदो-कान्हो के आंदोलन के परिणाम

- स्वतंत्रता आंदोलन के इस विद्रोह में सिदो कान्हू अपने पिता भाइयों तथा बहनों के साथ शहीद हो गए, लेकिन इस विद्रोह का परिणाम 1883 में संताल परगना क्षेत्र में रूप में आया जिसके लिए संताल परगना काश्तकारी अधिनियम लागू हुआ अंग्रेजों का अन्याय बढ़ता जा रहा था। 1784 के तिलका मांझी के विद्रोह के 71 वर्ष बाद पुन: दामिन-इ-कोह में विद्रोह का बिगुल बज उठा। इस बार साहेबगंज के भोगनाडीह के चुन्नी मांझी या चुनू मुर्मू के चारों बेटों एवं दो बेटियों फूलों और झानो ने इस संताल हूल विद्रोह का नेतृत्व किया जिसमें संतालों के साथ अन्य मूल निवासी भी सम्मिलित थे। अनुमानत: सिदो 1815 में, कान्हू 1820 में, चांद 1825 में तथा भैरव 1835 में जन्में थे। अंग्रेजी सरकार की शोषणपूर्ण नीति के खिलाफ लोग गोलबंद होने लगे। मालगुजारी न देने पर भूमि नीलाम कर दी जाती थी। अत: सिदो को 30 जून 1855 को भोगनाडीह में 20 हजार की सभा में राजा घोषित कर शोषण के विरुद्ध क्रांति का बिगुल फूंक दिया गया। वहीं, कान्हू को मंत्री, चांद को प्रशासक और भैरव को सेनापति बनाया गया। अंग्रेजी राज गया और अपना राज कायम हुआ की घोषणा हो गयी। अंग्रेज सरकार को मालगुजारी देना बंद हो गया।

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संताली वीरों ने कंपनी सरकार के दारोगा-सिपाहियों के मारना- काटना आरंभ कर दिया। भागलपुर के मजिस्ट्रेट इनके डर से राजमहल में सुरक्षित स्थान पर जा छुपे। भागलपुर के कमिश्नर ने विद्रोहियों की बढ़ती शक्ति को कुचलने की पूरी व्यवस्था की। मेजर एफ डब्ल्यू मॉरफ की सेना 10 जुलाई 1855 को सिदो के सहयोगियों से हार गई। सरकारी तथा स्टेशन के खजाने विद्रोहियों ने लूट लिए।

7वीं नेटिव इंफैंट्री की सेना ने 11-13 जुलाई 1855 को तीन हजार संताल विद्रोहियों को पराजित कर दिया। भोगनाडीह को लूट कर जला दिया गया। इसी दौरान चुनू मुर्मू की हत्या कर दी गई। इससे आंदोलन और उग्र हो गया। भागलपुर कमिश्नरी में मार्शल लॉ लगाने का आदेश हुआ। 10 नवंबर 1855 को कुछ गद्दारों ने कान्हू को गिरफ्तार करवाया था। सिदो, चांद और भैरव महशेपुर के युद्ध में शहीद हो गए। कान्हू जामताड़ा के निकट ऊपरबंधा गांव में पकड़ा गए। और उन्हें बरहेट में एक पेड़ पर फांसी दे दी गई। इस तरह इनकी क्रांति का अंत हो गया। कहते हैं कि इनकी बहनें फूलो और झानो भी इस क्रांति में भाग ली थीं। इसमें 30 हजार से अधिक लोग शहीद हुए थे और हजारों संताल व सदान हजारीबाग जेल में बंदी बनाये गए थे, जिसे बाद में 1853-58 के विद्रोह में सुरेंद्र शाही के नेतृत्व में टिकैत उमरांव सिंह, शेख भिखारी आदि ने आजाद कराया था। स्वतंत्रता आंदोलन के इस विद्रोह में सिदो कान्हू अपने पिता भाइयों तथा बहनों के साथ शहीद हो गए, लेकिन इस विद्रोह का परिणाम 1883 में संताल परगना क्षेत्र में रूप में आया जिसके लिए संताल परगना काश्तकारी अधिनियम लागू हुआ। गिरिधारी लाल गंझू,

साहित्यकार


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