इस मंदिर के सामने से कोई डोली या अर्थी कभी पार नहीं हो पाती, जानिए क्यों?
राजधानी रांची के समीपवर्ती खूंटी जिले के तोरपा में एक शिव मंदिर भक्तों के बीच अपनी पौराणिक मान्यताओं को लेकर खासा चर्चा में है। यहां दूर-दूर से भक्त पहुंच रहे हैं।
रांची, जेएनएन। राजधानी रांची के समीपवर्ती खूंटी जिले के तोरपा में एक शिव मंदिर भक्तों के बीच अपनी पौराणिक मान्यताओं को लेकर खासा चर्चा में है। यहां विराजमान शिवलिंग भक्तों की रक्षा कवच की तरह करता है। तोरपा के इस प्राचीन शिव मंदिर के बारे में कहा जाता है कि मंदिर के सामने से आज तक कोई अर्थी या डोली नहीं गुजरी। ग्रामीणों का ऐसा मानना है कि कोई डोली या कोई अर्थी मंदिर के सामने से गुजरने पर संबंधित लोगों पर बड़ी विपत्ति आन पड़ती है।
इस इलाके में आदिवासियों को छोड़कर किसी अन्य जाति या उपजाति के घर-मकान भी नहीं हैं। गांव वाले इसे भी किसी अनहोनी से जोड़कर देखते हैं। हाल के दिनों तक खपरैलनुमा इस मंदिर का अभी जीर्णोद्धार कराया गया है। तोरपा के उकड़ीमाड़ी ग्राम पंचायत के ईचा लुदमकेल गांव का यह शिव मंदिर सैंकड़ों वर्ष पुराना बताया गया है।
तोरपा प्रखंड मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर जंगली इलाके में स्थित लुदमकेल गांव के लोग बताते हैं कि इस शिव मंदिर के सामने से आज तक कोई भी हाथी नहीं गुजरा। इसके पीछे ग्रामीण कई हाथियों की मौत को कारण बताते हैं। सावन के अलावा शिवरात्रि के मौके पर यहां जुटने वाले भक्तों के बारे में लोगों ने बताया कि इस शिव मंदिर में आकर अपनी मनौती मांगने वाले दासों पर भोले बाबा की कृपा बरसती है।
महाशिवरात्रि में दूर-दूर से पहुंचते हैं भक्त
तोरपा के इस शिव मंदिर में महाशिवरात्रि के मौके पर भक्त दूर-दूर से पहुंचते हैं। यहां सच्चे मन से मांगी जाने वाली मन्नतें जरूर पूरी होती है। बताया गया कि आदिवासी छोड़कर दूसरी जाति के कई लोगों ने यहां घर बनाने की कोशिश की, लेकिन किसी कारणवश उनका मकान पूरा नहीं हो पाया। यहां शिव मंदिर की पूरी व्यवस्था आदिवासी ही संभालते हैं। भगवान शिव की विधि-विधान से नियमित पूजा-पाठ के लिए आदिवासियों ने अपने बीच से पुजारी भी बहाल कर रखा है।