समझनी होगी जंगली हाथियों के व्यवहार में परिवर्तन की वजह
हाथियों के स्ट्रेस की वैज्ञानिक पहलुओं की जांच पर भी भविष्य में काम किया जाएगा। इसके लिए वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया जैसी संस्थाओं की भी मदद ली जाएगी।
रांची, जेएनएन। ओडिशा में बिजली के तार की चपेट में आने से सात हाथियों की दर्दनाक मौत हो गई। पड़ोसी राज्य में हुई इस दर्दनाक घटना से झारखंड को भी धक्का लगा है। हालांकि हाल के वर्षों में ऐसी घटनाएं झारखंड में तो नहीं हुई हैं, लेकिन मानव-हाथी टकराव की घटनाएं यहां भी आम है। जिससे जानमाल की क्षति होती रहती है। झारखंड में वन्य जीवों से टकराव को टालने और हाथियों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए चलाई जा रही योजनाओं पर दैनिक जागरण ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक संजय कुमार से बातचीत की। पेश है उनसे बातचीत के मुख्य अंश।
ओडिशा में सात जंगली हाथियों की मौत की घटना से झारखंड ने क्या सबक लिया है?
-ओडिशा में जो हुआ है वह दुखद है। झारखंड में इतने बड़े पैमाने पर हाथियों की मौत के मामले सामने नहीं आएं हैं। फिर भी हम सचेत हैं। हमने ऊर्जा विभाग से स्पष्ट कह रखा है कि संवेदनशील वन क्षेत्रों में इंसुलेटेड तारों का उपयोग करे। इसके अलावा भविष्य में वन क्षेत्रों में अंडर ग्राउंड वायरिंग के इस्तेमाल पर जोर दिया जाएगा।
बिजली के तारों के अलावा रेल की पटरियों पर हाथियों के साथ होने वाले हादसे आम बात है?
-इस मसले पर रेल विभाग के आला अधिकारियों के साथ कई दौर की वार्ता हो चुकी है। हमारी कोशिश है कि संवेदनशील क्षेत्रों में वन विभाग और रेलवे के बीच परस्पर संवाद हो। जिससे रेलवे का परिचालन भी सुगम हो और वन्य प्राणी भी सुरक्षित रहें। रेलवे बोर्ड के चेयरमैन ने भी इस बाबत रेलवे के अधिकारियों को दिशा निर्देश दिए हैं। संवेदनशील क्षेत्रों में ट्रेन की स्पीड कम की जा सकती है, वन विभाग भी समय रहते रेलवे को हाथियों के झुंड की सूचना दे सकता है, ताकि गैंग मैन को समय रहते एलर्ट किया जा सके।
हाथियों के मूवमेंट पर निगाह रखने का कोई व्यापक तंत्र अब तक नहीं बन सका है?
- ऐसा नहीं है। हाथियों के मूवमेंट पर बराबर निगाह रखी जा रही है। हमारा अपना इंफार्मेशन सिस्टम है, जिसके माध्यम से समस्याओं का समाधान भी किया जा रहा है। इस सिस्टम को और व्यापक और प्रभावी बनाने पर जोर दिया जा रहा है। गूगल मैप से भी इसे जोड़ा जाएगा ताकि हाथियों के मूवमेंट पर हर समय निगाह रखी जा सके। मसलन, हाथी कहां है, किधर और किस मकसद से जा रहा है, कहां कब जाएगा जैसी जानकारी समय रहते मिल सके। इस सूचना का उपयोग भविष्य में मानव-हाथी टकराव की घटनाएं रोकने में काफी उपयोगी होगा। इसके अलावा हमारी कोशिश है कि मानव-हाथी टकराव क्यों हो रहे हैं, इस पर एक उच्चस्तरीय शोध हो ताकि यह पता चल सके कि इस टकराव की मूल वजह क्या है? कहीं हाथी स्ट्रेस में तो नहीं है, इसकी व्यापक तहकीकात जरूरी है। हाथियों के स्ट्रेस की वैज्ञानिक पहलुओं की जांच पर भी भविष्य में काम किया जाएगा। इसके लिए वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया जैसी संस्थाओं की भी मदद ली जाएगी। हाल के दिनों में इनके साथ एक बैठक भी हुई है। इससे जंगली हाथियों के व्यवहार में परिवर्तन की वजह पता चलेगी।
आम सोच है कि हाथियों को जंगल में पर्याप्त भोजन व पानी नहीं मिलता। इस वजह से वे जंगलों के बाहर आते हैं और टकराव जैसी घटनाएं बढ़ती हैं?
- सिर्फ भोजन व पानी की तलाश में ही हाथी जंगल के बाहर नहीं आते हैं। पिछले वर्ष साहिबगंज में अगस्त में एक घटना घटी थी। मानव-हाथी टकराव में कई लोगों की मौत हो गई थी, जबकि पास के जंगल में पर्याप्त मात्रा में केले के पेड़ थे। बारिश का महीना था तो जाहिर है कि पानी की कमी भी जंगल में नहीं थी। इसलिए ऐसा कहना उचित नहीं होगा कि सिर्फ भोजन और पानी के कारण ऐसा हो रहा है। कई बार क्षेत्र की सही जानकारी न होने के कारण भी वन्यजीव भटक जाते हैं। वन्य जीवों के व्यवहार परिवर्तन की बातें भी सामने आई हैं, उनकी फूड हैबिट चेंज होने की बातें भी कही जाती हैं। फिर भी कुछ ऐसा किया जा रहा है जिससे हाथियों को भोजन पानी जंगलों में ही मिले और वे बाहर ही नहीं आएं। इस वर्ष कई वर्षों के बाद जंगलों में बांस-बखार की साफ-सफाई का कार्य शुरू किया गया है। बांस-बखार की सफाई होने से वहां फिर से प्राकृतिक रूप से उगने शुरू हो जाते हैं। जानकारी मिल रही है कि जहां सफाई हुई है, वहां 20-22 की संख्या में नए पौधे उग रहे हैं। फिलहाल, 1865 हेक्टेयर में यह काम शुरू किया गया है। इसके अलावा जहां कहीं भी नया पौधरोपण किया जा रहा है, हमारी कोशिश है कि अगर वह जगह बांस के रोपण के लिए उपयुक्त है तो वहां 10 फीसद बांस का रोपण किया जाए। बांस सिर्फ हाथियों का ही नहीं अन्य वन्य जीवों का भी आहार होता है। इसके अलावा बांस-बखार के पास प्राकृतिक रूप से मशरूम भी स्वत: उत्पन्न होना शुरू हो जाता है, यह भी कई जीवों का प्रिय आहार है। जंगलों के आसपास रहने वाले ग्रामीणों को भी इस बांस की खेती से फायदा हो इसके लिए ट्रेनिंग का व्यापक कार्यक्रम चलाया जाएगा।
वनों के सीमांकन का कार्य कहां तक पहुंचा है?
-वनों के सीमांकन के मामले में अन्य राज्यों से हमारी स्थिति बेहतर है। सभी वन क्षेत्रों के नक्शे हैं। अब डीजीपीएस सर्वे और स्थायी पिलर लगाने का कार्य किया जा रहा है। 20 फीसद तक कार्य पूरा किया भी जा चुका है। चूंकि डीजीपीएस सर्वे नई तकनीक है और अपडेट होता रहता है इसलिए जहां जरूरत पड़ रही है सर्वे का कार्य दोबारा किया जा रहा है।