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Durga Puja 2020: 72 साल में पहली बार रांची में नहीं होगा रावण दहन, पाकिस्‍तान से आए पंजाबियों ने किया था शुरू

Dussehra 2020 रावण दहन के आयोजन स्थल में कई बदलाव हुए। बढ़ती भीड़ को देखते हुए अब मोरहाबादी में रावण दहन का भव्य आयोजन होता है। हालांकि इस बार कोरोना संक्रमण के कारण रांची में यह कार्यक्रम नहीं होगा।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Mon, 05 Oct 2020 11:28 AM (IST)Updated: Mon, 05 Oct 2020 12:50 PM (IST)
Durga Puja 2020: 72 साल में पहली बार रांची में नहीं होगा रावण दहन, पाकिस्‍तान से आए पंजाबियों ने किया था शुरू
साल 2019 में मोरहाबादी मैदान में रावन दहन कार्यक्रम। फाइल फोटो

रांची, [नीलमणि चौधरी]। रांची में रावण दहन के आयोजन का श्रेय पंजाबियों को जाता है। देश के विभाजन के बाद पश्चिम पाकिस्तान के कबायली इलाके से रिफ्यूजी बन कर आए पंजाबियों ने 1948 में सबसे पहले रावण दहन का आयोजन किया था। आज से 72 साल पूर्व किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि छोटे स्तर पर शुरू किया गया आयोजन वृहद रूप ले लेगा।

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रांची के रिफ्यूजी कैंप में रह रहे 12-15 परिवारों ने विजयादशमी के दिन रावण दहन के साथ पहला दशहरा मनाया। इसके बाद से यह आयोजन वृहद रूप लेने लगा। बाद में आयोजन स्थल में कई बदलाव हुए। बढ़ती भीड़ को देखते हुए अब मोरहाबादी में रावण दहन का भव्य आयोजन होता है। हालांकि, इस बार कोरोना संक्रमण को देखते हुए राज्य सरकार ने रावण दहन के सार्वजनिक कार्यक्रम पर रोक लगा दी है। इस कारण 72 वर्षों में पहली बार रावण दहन पर सार्वजनिक कार्यक्रम नहीं होगा।

पंजाबी हिंदू विरादरी के अध्यक्ष राजेश खन्ना के अनुसार सरकारी निर्देश का पालन करते हुए इस बार प्रतीकात्मक कार्यक्रम की तैयारी चल रही है। पुंदाग स्थित समाज के लाला लाजपत राय स्कूल परिसर में ही सात-आठ फीट के रावण का दहन किया जाएगा। कार्यक्रम की स्वीकृति के लिए उपायुक्त से अपील की जाएगी। मोरहाबादी के अलावा रावण दहन का आयोजन अरगोड़ा, टाटीसिलवे, एचईसी आदि इलाकों में भी होता है। हालांकि, अन्य स्थानों पर इस बार आयोजन नहीं होगा।

सबसे पहले मेन रोड डाकखाने के समीप किया गया रावण दहन

रावण दहन के आयोजन में स्व. लाला खिलदा राम भाटिया, स्व. मनोहर लाल, स्व. कृष्णा लाल नागपाल, स्व. अमीर चंद सतीजा, स्व. अशोक नागपाल आदि की प्रमुख रही। प्रथम रावण दहन का आयोजन तब के डिग्री कालेज (अब मेनरोड स्थित डाक विभाग आफिस के सामने) किया गया। इन्होंने अपने हाथों से 12 फीट का रावण तैयार किया था। यह पहला मौका था जब रांचीवासियों ने रावण दहन देखा। इसके बाद से प्रत्येक साल आयोजन होते रहा। खासबात ये है कि 1953 तक रावण का मुखरा गधे का बनाया जाता था। बाद में तत्कालीन केंद्र सरकार के अनुरोध पर मुखौटा बदल दिया गया।

आयोजन स्थल में कई बार हुए बदलाव

जैसे-जैसे भीड़ बढ़ती गई, आयोजन स्थल बदलते रहे। मेनरोड के बाद रांची रेलवे स्टेशन स्थित खजुरिया तालाब के रिफ्यूजी कैंप, इसके बाद यह आयोजन राजभवन के सामने होने लगा। और भीड़ बढ़ी तो इसका आयोजन मोरहाबादी में होने लगा।

अरगोड़ा मैदान में भी होता है भव्य आयोजन

मोरहाबादी के बाद 1967 में अरगोड़ा इलाके में रावण दहन का आयोजन आरंभ हुआ। अरगोड़ा दुर्गा पूजा समिति की ओर से प्रतिसाल इसका आयोजन भव्य रूप में किया जाता है। समिति के अध्यक्ष भोला राम साहू के अनुसार उस समय अरगोड़ा इलाके के लोगों खासकर महिलाओं को रावण देखने जाने में परेशानी होती थी।

तब गांव के ही स्व नानू साव, बैजनाथ साव, तारा प्रसाद साव, सागर प्रसाद साव आदि ने मिलकर दुर्गा पूजा और रावण दहन का आयोजन आरंभ किया। इसमें से कई अगुआ मेकान में काम करते थे। पहली बार मेकान से निकलने वाले रद्दी कागज से रावण का पुतला तैयार किया गया था। भोला राम साहू के अनुसार इस बार प्रतीकात्मक दुर्गा पूजा तो होगा, लेकिन रावण दहन नहीं होगा।


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