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लक्ष्य साधने को सावित्री साइकिल उठाकर रोज चढ़ती है 735 सीढ़‍ियां, ओलिंपिक पदक जीतना है सपना

Jharkhand Hindi News Archery Girl Sports News रांची की युवा तीरंदाज सावित्री रोज 10 किमी साइकिल चलाकर तीरंदाजी सेंटर पहुंचती है। राष्ट्रीय स्तर पर तीन स्वर्ण जीतने के बाद अब सावित्री का सपना ओलिंपिक पदक जीतने का है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Sun, 19 Sep 2021 06:04 PM (IST)Updated: Sun, 19 Sep 2021 07:42 PM (IST)
लक्ष्य साधने को सावित्री साइकिल उठाकर रोज चढ़ती है 735 सीढ़‍ियां, ओलिंपिक पदक जीतना है सपना
Jharkhand Hindi News, Archery Girl रांची में साइकिल उठाकर जोन्हा प्रपात की सीढ़‍ियां चढ़तीं तीरंदाज सावित्री। जागरण

रांची, [संजीव रंजन]। रांची से 40 किलोमीटर दूर स्थित और अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध जोन्हा जलप्रपात के झरने में कभी भगवान बुद्ध ने स्नान किया था। खुद में अनुपम सौंदर्य और अपार ऊर्जा समेटे इस झरने की श्वेत धवल जलधारा 150 फीट की ऊंचाई से निरंतर प्रवाहित होने के क्रम में रोज दो बार 19 साल की तीरंदाज सावित्री के संघर्ष, जुनून और बुलंद इरादे को कई वर्षों से करीब से महसूस करती है। यहां की सीढ़‍ियों पर भी सामान्य सी दिखने वाली सावित्री के जज्बे ने गहरी छाप छोड़ी है। तीरंदाजी का अभ्यास करने घर से प्रशिक्षण केंद्र जाने के क्रम में इस तीरंदाज को झरने के निचले हिस्से से ऊपर सड़क तक आने में अपनी साइकिल को सिर व कंधे पर उठाकर 735 सीढ़‍ियां चढ़नी होती हैं। शाम को घर वापस लौटते वक्त सीढ़‍ियां उतरने में भी यही प्रक्रिया दोहराई जाती है। 

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कठिनाई से नहीं डिगी 

जोन्हा के पास ही स्थित कोनारडीह गांव की रहनेवाली सावित्री हर दिन झरने से होकर गुजरती हैं। झरने के इस पार सावित्री का गांव है और 10 किलोमीटर दूर उस पार जोन्हा तीरंदाजी प्रशिक्षण केंद्र। साइकिल चलाकर झरने की सीढ़‍ियाें को पार नहीं किया जा सकता, इसलिए साइकिल ऊपर उठाकर यह सफर तय करना सावित्री की मजबूरी है। सीढ़‍ियाें की यात्रा तय करने की बाद वह साइकिल चलाकर आगे लक्ष्य की ओर बढ़ती हैं।

सेंटर पहुंचने में उन्हें रोज डेढ़ से दो घंटे लगते हैं। गरीब परिवार से आनेवाली सावित्री 11वीं कक्षा की छात्रा हैं और भविष्य में बड़ी तीरंदाज बनकर ओलिंपिक में अपने देश के लिए पदक लाने की इच्छा रखती हैं। उसकी आंखों में सफलता की बुलंदियां छूने का सपना दिखता है।

साइकिल उठाकर झरने की सीढ़‍ियाें पर चढ़ते-उतरते सावित्री को देखें तो पहली नजर में वह किसी भारोत्तोलक सी नजर आती हैं, लेकिन इसे दिनचर्या में शामिल कर चुकी सावित्री को यह कठिन नहीं लगता। वह कहती हैं कि बड़ी तीरंदाज बनने के लिए इससे भी ज्यादा मुश्किलें उठानी पड़ेंगी तो तैयार हैं। वह झारखंड की अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज दीपिका को अपना आदर्श मानती हैं। तीरंदाजी की प्रेरणा उन्हें अपनी बड़ी बहन से मिली।

रांची में तीरंदाजी का अभ्यास करतीं सावित्री। जागरण

बांस के तीर-धनुष से शुरू किया अभ्यास

तीरंदाजी में सावित्री अपने छोटे से करियर में अभी तक राष्ट्रीय स्तर पर चार स्वर्ण जीत चुकी हैं। वह कहती है कि मेरा सपना देश का प्रतिनिधित्व करना है। इसके लिए परिश्रम कर रही हूं। सावित्री बताती हैं कि वर्ष 2017 में बांस के तीर-धनुष से अभ्यास करना शुरू किया था। अब भी उनके पास अच्छी क्वालिटी का धनुष नहीं है। सेंटर जाकर अभ्यास करने से कुछ खिलाड़‍ियों का साथ और जोन्हा आर्चरी सेंटर के प्रशिक्षक रोहित कोयरी का मार्गदर्शन मिल जाता है।

मिल चुके हैं कई पदक

तीरंदाजी की कई प्रतियोगिताओं में सावित्री को मेडल मिले हैं। वर्ष 2019 में आंध्रप्रदेश के कटप्पा में आयोजित स्कूल नेशनल चैंपियनशिप में एक स्वर्ण, एक रजत और एक कांस्य पदक मिला था। वहीं, वर्ष 2020 में झारखंड अंडर-19 स्पर्धा में एक स्वर्ण, दो रजत व एक कांस्य मिला था। 2020 में ही देहरादून में हुई जूनियर नेशनल चैंपिशनशिप में उन्हें एक स्वर्ण और एक कांस्य पदक मिला था। इससे पहले वर्ष 2018 में आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में हुई मिनी नेशनल चैंपियनशिप में दो रजत व एक कांस्य पदक हासिल किया था। वह कहती हैं कि घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। पिता मंगल महतो खेती व अन्य काम से किसी तरह परिवार का भरण-पोषण करते हैं। अभी वह सीनियर टीम में चयनित होने के लिए अभ्यास कर रही हैं।

सेंटर पहुंचने में लगते हैं दो घंटे 

क्षमता, आत्मविश्वास, मेहनत और लगन से भरपूर झारखंड की प्रतिभाएं कभी भी संसाधनों की मोहताज नहीं रही। खेल के क्षेत्र में तो संकल्प के बूते यहां की प्रतिभाओं ने लगातार अपने-दम-खम का लोहा मनवाया है। ऐसी ही प्रतिभाओं में सावित्री भी शुमार है। वह पांच बहनों में सबसे छोटी हैं। सावित्री बताती हैं कि कई बार वह खाली पेट ही अभ्यास करने के लिए घर से चल देती हैं। सेंटर पहुंचने में दो घंटे लगते हैं। इसलिए घर से काफी पहले निकलना पड़ता है। सावित्री चैंपियन बनने के साथ नौकरी भी करना चाहती हैं, ताकि परिवार के भरण-पोषण में माता-पिता का सहयोग कर सकें और अन्य भाई-बहनों की भी मदद कर सकें।

जोन्हा जलप्रपात की सीढ़‍ियों पर पड़ते सावित्री के तेज कदम खेल के प्रति उनके जुनून और संकल्प को दर्शाते हैं। विकास की चमक-दमक और साधन-सुविधाओं से दूर, लेकिन अपार क्षमता से भरपूर झारखंड की बेटियां कमोबेश ऐसी ही हैं। यहां पगडंडियों पर दौड़कर और बांस की हाकी स्टिक व धनुष से अभ्यास कर बेटियां बड़ी से बड़ी प्रतिस्पर्धाओं में मैदान मार लेती हैं। विषम परिस्थितियों में रह रही सावित्री जैसी चैंपियन बेटियों को मौका, सहयोग और प्रोत्साहन मिले, तो ये पदकों का ढेर लगा सकती हैं।

'सावित्री काफी प्रतिभावान खिलाड़ी है। वह कठिनाइयों से हारने वाली नहीं है। वह तीरंदाजी में कुछ करना चाहती है। उसके जुनून व लगन को देख लगता है कि वह अवश्य अपना स्थान बनाने में सफल रहेगी।' -रोहित कोयरी, सावित्री के खेल प्रशिक्षक।

'बेटी को तीरंदाजी का शौक शुरू से ही रहा है। पहले तो मैं भी इस पर ज्यादा ध्यान नहीं देता था, लेकिन धीरे-धीरे वह अच्छा कर रही है। उसके कोच भी प्रशंसा कर रहे हैं। बेटी अच्छा करे, यही मेरा आशीर्वाद है। उससे उम्मीद है कि वह झारखंड का व देश का नाम रोशन करे।' -मंगल महतो, सावित्री के पिता।


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