सीवरेज पाइप बिछाने का तरीका और तकनीक दोनों गड़बड़
राज्यसभा सदस्य ने कहा 12 साल पुराने डिजायन और डीपीआर पर हो रहा काम
राज्य ब्यूरो, राची : राज्यसभा सदस्य महेश पोद्दार ने राची नगर निगम क्षेत्र में सीवरेज पाइपलाइन बिछाने के तरीके और तकनीक पर कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने मुख्य सचिव सुधीर त्रिपाठी को पत्र लिखकर इस परियोजना से जुड़ी सभी एजेंसियों की कार्यप्रणाली की जाच और कार्रवाई की माग की है। उन्होंने 21 जुलाई को इस परियोजना के क्रियान्वयन में संलग्न अधिकारियों के साथ हुई बैठक का हवाला भी अपने पत्र में दिया है।
रास सदस्य ने पत्र में जिक्र किया है कि 12 साल पुरानी डिजाइन और डीपीआर पर काम हो रहा है। ड्रेनेज परियोजना 2006 में शुरू हुई थी और तभी सिंगापुर की मैनहर्ट कंपनी ने डिजाइन और डीपीआर तैयार किया था। करीब 12 साल बाद भी पुरानी डिजाइन और डीपीआर के आधार पर ही टेंडर हो गया और परियोजना का क्रियान्वयन हो रहा है। परियोजना की प्राक्कलित राशि 359 करोड़ रुपये है किन्तु अब कन्फर्मेटरी सर्वे के साथ नए तथ्य और डाटा जुड़ रहे हैं, उसके हिसाब से ही परियोजना राशि में भी परिवर्तन हो रहा है। परियोजना में लगी पूरी टीम में से किसी को पता नहीं कि इसमें कुल कितनी राशि लगेगी। जब निविदा निष्पादित हुई थी तो प्रस्तावित सीवरेज लाइन की कुल लंबाई 192 किलोमीटर थी जो अबतक बढ़कर 280 किलोमीटर हो चुकी है। --------
काम सिर्फ सीवरेज का
महेश पोद्दार ने जिक्र किया है कि परियोजना कहने को तो सीवरेज-ड्रेनेज की है लेकिन काम केवल सीवरेज का ही हो रहा है। नगर निगम की टीम ने जो जानकारी उपलब्ध कराई उसके अनुसार मात्र 3.5 किलोमीटर लंबे ड्रेनेज का ही निर्माण हो रहा है। यह समझना कठिन नहीं कि बगैर ड्रेनेज के सीवरेज सिस्टम भी निष्प्रभावी साबित होगा और शहर की सड़कों व गलियों की स्थिति भी आनेवाले समय में नारकीय होगी।
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जिम्मेवारी लेने को कोई तैयार नहीं राज्यसभा सदस्य के मुताबिक दिलचस्प तथ्य यह है कि इस परियोजना से आधा दर्जन एजेंसिया जुड़ी हुई हैं लेकिन जिम्मेवारी लेने को कोई भी तैयार नहीं दिखता। परियोजना के क्रियान्वयन का तरीका अत्यधिक निराशाजनक है। परियोजना का बेसिक काम अर्थात सीवरेज ट्रीटमेंट प्लाट का निर्माण अबतक हुआ ही नहीं है। ---------------
खोदकर छोड़ दी गई हैं सड़कें, गलियों में भरा कीचड़ शहर में एक साथ जगह-जगह बरसात के मौसम में सड़कें खोदकर छोड़ दी गई हैं। कई जगहों पर सीवर के पाइप डालकर उन्हें केवल मिट्टी से ढककर छोड़ दिया गया है। इस वजह से सड़कें और गलियों में कीचड़ जमा है और चलना मुश्किल हो गया है। बताया गया है कि एजेंसी के पास अपेक्षित चौड़ाई का रोलर है ही नहीं लेकिन करीब 100 किलोमीटर लंबी सीवर लाइन का निर्माण पूरा हुआ बताया जा रहा है। जब एजेंसी के पास वाछित विशिष्टता का रोलर ही नहीं है तो 100 किलोमीटर लंबी सीवरेज लाइन की कॉम्पेक्टिंग कैसे हो गई, यह सवाल उठता है। आनेवाले समय में जब बिना कॉम्पेक्टिंग की सड़क धंसेगी तो क्या हाल होगा, इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।
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काम कर रही एजेंसी अमृतसर में ब्लैक लिस्टेड
महेश पोद्दार के मुताबिक चिंता का विषय यह भी है कि जिस एजेंसी को यह कार्य आवंटित हुआ है वह अमृतसर में ब्लैक लिस्टेड हो चुकी है। अभी इस एजेंसी को हर हेड का अलग -अलग भुगतान किया जा रहा है। एजेंसी केवल सड़कें खोदकर पाइप डालकर उसे मिट्टी, गिट्टी और सीमेंट से ढंक देती है और उस हिस्से की मापी के हिसाब से भुगतान पा लेती है। संभवत: इसी वजह से एजेंसी की सारी दिलचस्पी सड़कें खोदने और पाइप डालने में ही है। सीवरेज ट्रीटमेंट प्लाट के निर्माण में अपेक्षाकृत कम दिलचस्पी ली जा रही है। सड़कें खोदने और पाइप डालने का काम भी बिखरा-बिखरा हो रहा है। कई सड़कें या गलिया ऐसी हैं जहा सीवरेज लाइन के बीच में पत्थर आ गए हैं, उन्हें छोड़ दिया गया है। एजेंसी को अबतक करीब 74 करोड़ रुपये का भुगतान हो चुका है। परियोजना की कुल लागत 359 करोड़ है।