राज्यसभा सदस्य महेश पोद्दार ने कहा-राची स्टेट कैपिटल रीजन विकसित करें सीएम रघुवर दास
राज्यसभा सदस्य महेश पोद्दार ने मुख्यमंत्री रघुवर दास को पत्र लिखकर राजधानी क्षेत्र विकसित करने की मांग की है।
रांची, राज्य ब्यूरो। राज्यसभा सासद महेश पोद्दार ने मुख्यमंत्री रघुवर दास को पत्र लिखकर राजधानी राची के आसपास के क्षेत्रों को शामिल कर राची स्टेट कैपिटल रीजन (एससीआर) विकसित करने का आग्रह किया है।
प्रथम चरण में उन्होंने पतरातू, रामगढ़ होते हुए जैनामोड़ तक के क्षेत्र को राची एससीआर के तौर पर चिह्नित कर राजधानी के विस्तार और विकास की समुचित योजना तैयार करने का सुझाव दिया है। इस मसले पर सैद्धातिक सहमति बनने की स्थिति में विशेषज्ञ संस्थाओं को इस काम की जिम्मेदारी सौंपने का सुझाव दिया है।
राज्यसभा सदस्य ने कहा है कि शहरी विकास की योजना दीर्घकालिक लक्ष्यों और जरूरतों को ध्यान में रखकर ही बनाई जाती हैं। जिस हिसाब से राजधानी राची की आबादी बढ़ रही है और नए इलाके विकसित हो रहे हैं, आसपास के कई नए इलाके स्वत: इस शहर से जुड़ते चले जायेंगे। यदि यह विकास अनियोजित तरीके से हुआ तो भविष्य में कई समस्याओं को जन्म देगा। ऐसी कई समस्याओं का साक्षात्कार होना शुरू हो चुका है। इससे इतर अगर यह विकास वैज्ञानिक तरीके से हुआ तो रांची देश और दुनिया के लिए नया उदाहरण पेश कर सकती है।
रामगढ़ छावनी परिषद क्षेत्र में नागरिक स्वशासी नगर निकाय के गठन की वकालत
राज्यसभा सदस्य ने एक अन्य पत्र के जरिये मुख्यमंत्री से रामगढ़ छावनी परिषद क्षेत्र में नागरिक स्वशासी नगर निकाय के गठन का अनुरोध किया है। पत्र में उन्होंने संविधान के 74वें संशोधन में निहित प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा है कि राज्य के प्रत्येक नगरीय क्षेत्र में इसका गठन अनिवार्य है।
रामगढ़ शहर की जनता आशिक तौर पर ही सही इस संवैधानिक अधिकार से वंचित है, क्योंकि यह शहर छावनी परिषद् क्षेत्र है। यह सही है कि छावनी परिषद में भी स्थानीय नागरिकों को सीमित अधिकारों व दायित्वों के साथ शामिल किया जाता है, किन्तु 74वें संविधान संशोधन के अनुरूप एवं नगर विकास विभाग द्वारा परिभाषित निर्वाचित जन प्रतिनिधि के सारे अधिकार इन्हें प्राप्त नहीं होते।
इस संदर्भ में एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि स्वयं सेना मुख्यालय ने रक्षा मंत्रालय को देश के सभी कैंटोनमेंट एरिया से नागरिक क्षेत्रों को अलग रखने का प्रस्ताव भेजा है। इसके तहत सेना का कार्यक्षेत्र अपने कैंप एरिया तक सीमित रहेगा तथा नागरिक क्षेत्रों को स्थानीय नगर निकायों को सौंप दिया जाएगा। इससे सेना को भी अनावश्यक आर्थिक बोझ और प्रशासनिक दायित्वों से छुटकारा मिलेगा।