कामेडियन राजू श्रीवास्तव ने रांची के लोगों को गुदगुदाया
दैनिक जागरण के सौजन्य से शनिवार की रात रांची में राजू श्रीवास्तव ने अपनी शानदार प्रस्तुति से लोगों को मन मोह लिया। रिम्स सभागार ठहाकों से गूंज उठा।
जागरण संवाददाता, रांची :
रविवार की शाम रिम्स सभागार में राजू श्रीवास्तव ने अपनी मिमिक्री से खूब हंसाया। हंसने के बहाने होने चाहिए। बात-बात में हंसी। हंसी भी अपने आस-पास से ली हुई चीजों से। हंसाने वाले ढूंढ ही लेते हैं। अपने आस-पास हंसी के कितने नगीने बिखरे पडे़ हैं, लेकिन हम उसे ढूंढ नहीं पाते। पर, राजू ने ट्रेन, टैंपों, कार, क्रिकेट में हंसी के स्रोत ढूंढ लिए। लोगों ने खूब आनंद लिया।
लोकल ट्रेन की सवारी : राजू जब मंच पर नमूदार हुए तो पूरा हाल तालियों से गूंज उठा। इसके बाद अपने रौ में आए। फिर तो पूछना ही नहीं। राजू ने मुंबई के लोकल ट्रेन की सैर कराई। कहा, मुंबई के लोकल ट्रेन में चढ़ने-उतरने की जो फैशलिटी है, वह दुनिया के किसी भी ट्रेन में नहीं। बस, गेट पर खड़े हो जाओ, कुछ करने की जरूरत ही नहीं। फिर अंदर भीड़ का खाका खींचा। कुछ लोग हैंडल पकड़के बॉडी ढीला छोड़ देते हैं।
उनको मालूम है कि बगल वाला संभालेगा। दुनिया की पहली व्यवस्था है, जहां जीते जी चार लोग कंधा देते हैं। आपको सोने का दिल कर रहा है, इसके कंधे पर सिर रखकर सो जाओ, वो कुछ नहीं बोलेगा, क्योंकि उसने भी अपनी मुंडी किसी और पर रखी है। और देखिए, ऐसी भीड़ में आपको खुजली लगे तो ढूंढना पड़ता है, शरीर कहां है? अच्छा, जब आप खुजाते हो तो बगल वाला बोलता है, भैया अपना खुजाओ। क्रम आगे बढ़ा.. आप डब्बे में लोगों को गिन नहीं सकते कि कितने लोग हैं। यह काम पंखा करता है। अब राजू पंखे की तरह मुंह करके बताया।
दुबई में मैट्रो का सफर : इसी तरह राजू ने एक किस्सा सुनाया। कहा, दिल्ली के मैट्रो में कभी बैठने का सौभाग्य नहीं मिला। दुबई गया था प्रोग्राम करने। सोचा, यहां की मैट्रो देख लें। मैं प्लेटफार्म पर खड़ा मित्र से गपशप कर रहा था कि ट्रेन कब आएगी, तभी हवा का झोंका आया। मित्र बोला- ट्रेन आ गई। हमें आदत थी, अपने देश की ट्रेन की। अब राजू ने अपने देश के ट्रेन की आवाज निकाली। राजू ने दीवार के डायलॉग भी बोले।..आपको मालूम नहीं नहीं मेरी मां ने इसमें मजदूरी की है अपने सर पे ईट गारा बालू ढोया है। आज बिल्डिंग खरीदकर मां को गिफ्ट करना चाहता हूं। ये बिल्डिंग मुझे हर हाल में चाहिए..अच्छा.तो आजकल तुम्हारी मां कहां है, इधर रांची में दो-दिन बिल्डिंगे और बन रही हैं। अब हंसी का पूछना ही क्या? बात रांची की शुरू हुई तो यहां के बच्चों की प्रतिभा पर अटक गई।
बोले, रांची के जो बच्चे हैं, उनको प्रणाम करते हैं। एक बच्चे से पूछा-तुम्हारे पापा क्या करते हैं? मालूम नहीं, हम जल्दी सो जाते हैं। अच्छा बेटा, 15 फलों के नाम बताओ-ओरेंज, ओरेज, ग्रैप्स, मैंगो और एक दर्जन केला.शार्ट में निपटा दिया।
पहले के गीत लिखे गए गलत: अब गीतों की बारी थी। कहा, पहले लोग कैसे-कैसे गीत लिखे जाते थे। सुनाया, लिखे जो खत तुझे वो तेरी याद में, सारे पढ़ लिए पापा ने रात में.. सवेरा जब हुआ तो जूते पड़ गए। अब दूसरे गीत की बारी थी। पूरे लय में सुनाया, जादूगर सैंया, छोड़ो मोरी बैंया, हो गई आधी रात, अब घर जाने दो, जादूगर सैंया.। मेरा मानना है, तू इतनी रात तक रुकी क्यों? गाना लिखा ही गलत है, आप लोग गलत मत समझिए।
आया सावन झूम के : राजू आगे बढ़े। बोले, अपने देश में पेंटर भी तरह-तरह की बात गाड़ियों पर लिखते हैं। अब एक टैंपो पर लिखा था-सावन को आने दो। तब तक एक दूसरा टैंपों जोर का टक्कर मारा-उसके पीछे लिखा था-आया सावन झूम के।
खूब लिया मजा : राजू ने बंगाली से लेकर बिहारियों का खूब मजा लिया। बंगाली के बारे में कहा, इनके पास ओ अफरात है। वे जल को जोल बोलेंगे। एक बार इसी तरह एक बंगाली ने निमंत्रण दिया। बोलो-घर आओ भोजन पर। मैं उसके घर आया। फिर एक घंटा बीता, फिर दो, पूछा भोजन कहा है? उसने दूसरे घर की ओर इशारा करके बोला-उधर भोजन हो रहा है। पता चला, लोग भजन कर रहे हैं।