कागज पर बने फार्मेसी कॉलेज के लिए खरीदी लाखों की स्टेशनरी
गुमला में आयुर्वेद का फार्मेसी कॉलेज भले ही नौ वर्षो में धरातल पर उतर नहीं पाया हो, लेकिन इसके नाम पर लाखों रुपये की बंदरबांट हो गई।
नीरज अम्बष्ठ, रांची। गुमला में आयुर्वेद का फार्मेसी कॉलेज भले ही नौ वर्षों में धरातल पर उतर नहीं पाया हो, लेकिन इसके नाम पर लाखों रुपये की बंदरबांट हो गई। नामांकन तो दूर कॉलेज भी महज कागजों पर ही था, लेकिन यहां लाखों रुपये की स्टेशनरी खरीद ली गई। खरीद में टेंडर प्रक्रिया का भी अनुपालन नहीं हुआ। सबसे बड़ी बात यह कि इसके लिए जिम्मेदार तत्कालीन प्राचार्यों डॉ. शक्तिनाथ झा (पूर्व आयुष निदेशक) तथा डॉ. मनोज कुमार सिन्हा के विरुद्ध कार्रवाई भी पांच सालों तक सिर्फ कागजों पर होती रही। स्थिति यह हो गई कि तत्कालीन दोनों प्राचार्यो से क्रमश: चार लाख व चालीस हजार रुपये की वसूली इस कारण नहीं हो पा रही है, क्योंकि दोनों के रिटायर होने के तीन साल से अधिक समय हो गए।
जानकारों के अनुसार, रिटायर होने के तीन साल बाद उनके पेंशन की राशि से वसूली नहीं की जा सकती। अब राज्य सरकार इन दोनों के विरुद्ध सर्टिफिकेट केस करने की तैयारी कर रही है। बताया जाता है कि विभागीय मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी ने इसकी स्वीकृति भी दे दी है।
अनावश्यक स्टेशनरी का क्रय, टेंडर प्रक्रिया भी नहीं हुई
स्वास्थ्य विभाग ने 2009-10 में इस प्रस्तावित कॉलेज के लिए 4 लाख रुपये आवंटित किए थे। दोनों तत्कालीन प्राचार्यों ने अनावश्यक स्टेशनरी (रजिस्टर, कागज, डस्टर, चॉक आदि तक) के क्रय में यह राशि खर्च कर दी। गुमला उपायुक्त द्वारा स्वास्थ्य विभाग को सौंपी गई जांच रिपोर्ट के अनुसार कॉलेज के लिए बिना जरूरत के आवश्यकता से अधिक स्टेशनरी क्रय कर सरकारी राशि का दुरुपयोग किया गया। सामग्री क्रय के लिए निविदा प्रक्रिया भी पूरी नहीं की गई। वित्त विभाग द्वारा अनुमोदित दर के आधार पर ही स्टेशनरी का क्रय कर लिया गया।
भाड़े के दो कमरों में खुले थे
कॉलेज 2013 में तत्कालीन उपायुक्त ने क्रय किए गए स्टेशनरी के भौतिक सत्यापन कराई तो पाया कि भाड़े में लिए गए दो कमरों में काफी अधिक संख्या में स्टेशनरी जैसे-तैसे रखे हुए थे। इसमें चूहे और दीमक का व्यापक प्रकोप था। खरीदी गई अधिकांश स्टेशनरी खराब हो गई थी।