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मिलावटी खाद्यान्न खाने को मजबूर हैं झारखंड के लोग

खाद्य पदार्थो में मिलावट रोकने को लेकर किए जानेवाले उपायों में झारखंड एक बार फिर फिसड्डी साबित हुआ है। इस मामले में झारखंड देश के विभिन्न राज्यों में 27वें पायदान पर है। सिर्फ अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम ही इस मामले में झारखंड से पीछे है। केंद्र शासित प्रदेशों में भी लक्षद्वीप को छोड़कर सभी झारखंड से आगे हैं। ऐसे में झारखंड के लोग मिलावटी खाद्य पदार्थ खाने को मजबूर हैं जिसका बुरा असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 10 Oct 2020 12:40 AM (IST)Updated: Sat, 10 Oct 2020 12:40 AM (IST)
मिलावटी खाद्यान्न खाने को मजबूर हैं झारखंड के लोग
मिलावटी खाद्यान्न खाने को मजबूर हैं झारखंड के लोग

रांची : खाद्य पदार्थो में मिलावट रोकने को लेकर किए जानेवाले उपायों में झारखंड एक बार फिर फिसड्डी साबित हुआ है। इस मामले में झारखंड देश के विभिन्न राज्यों में 27वें पायदान पर है। सिर्फ अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम ही इस मामले में झारखंड से पीछे है। केंद्र शासित प्रदेशों में भी लक्षद्वीप को छोड़कर सभी झारखंड से आगे हैं। ऐसे में झारखंड के लोग मिलावटी खाद्य पदार्थ खाने को मजबूर हैं, जिसका बुरा असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है।

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मिलावट पर रोक लगाने के विभिन्न मानकों से संबंधित फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथारिटी आफ इंडिया (एफएसएसएआइ) की गत जून माह में जारी फूड सेफ्टी इंडेक्स की दूसरी रिपोर्ट (वर्ष 2019-20) में झारखंड को 100 में से महज 39.15 अंक मिले हैं। हालांकि पिछले वर्ष की तुलना में इसमें आंशिक सुधार हुआ है। 2018-19 में झारखंड को महज 33 अंक ही मिले थे। रिपोर्ट के अनुसार शिकायतों के निपटारे में ही झारखंड का प्रदर्शन कुछ बेहतर रहा है। इसमें निर्धारित कुल 30 अंकों में झारखंड को 14 अंक मिले हैं। इसी तरह खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता की समझ और संबंधित कानूनों की जानकारी के मामले में भी झारखंड के लोग काफी पीछे हैं। इस मामले में लोगों को सशक्त बनाने में झारखंड को 20 अंकों में महज पांच अंक मिले हैं।

इतना ही नहीं, खाद्य पदार्थों की जांच के लिए उपलब्ध संरचनाओं के मामले में भी झारखंड का प्रदर्शन खराब रहा है। एफएसएसएआइ ने राज्य सरकार से संबंधित रिपोर्ट साझा करते हुए बताया है कि किसी भी राज्य से 60 फीसद से अधिक अंक की अपेक्षा की जाती है, लेकिन झारखंड इससे काफी पीछे है। एफएसएसएआइ ने मिलावट रोकने के लिए गठित राज्य स्तरीय समिति के साथ बैठक कर इस दिशा में आवश्यक कदम उठाने को कहा है। बता दें कि झारखंड में स्थित एकमात्र फूड टेस्टिग लेबोरेट्री में संसाधनों की घोर कमी है। यहां कई पदों का सृजन तो हुआ है लेकिन अबतक नियुक्ति नहीं हुई है। राज्य गठन के बाद पहली बार पिछले वर्ष खाद्य सुरक्षा पदाधिकारियों की नियुक्ति हुई, जिससे झारखंड के अंकों आंशिक ही सही, सुधार हुआ है।

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उत्तर प्रदेश सहित 11 राज्यों को 60 फीसद से अधिक अंक, बिहार के अंकों में गिरावट

मिलावट रोकने से संबंधित मानकों के आकलन में महज दो राज्यों ने 75 फीसद से अधिक अंक हासिल किए। इनमें गोवा तथा गुजरात शामिल हैं। पिछले वर्ष सात राज्यों ने 75 फीसद से अधिक अंक प्राप्त किए थे। इनमें केरल, गोवा, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र तथा तमिलनाडु शामिल थे। इस तरह केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र तथा तमिलनाडु के अंकों में गिरावट आई। इस बार गुजरात तथा गोवा सहित 11 राज्यों ने 60 फीसद या इससे अधिक अंक हासिल किए। इनमें तमिलनाडु, महाराष्ट्र, केरल, पंजाब, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, दिल्ली भी शामिल हैं। पिछले वर्ष 12 राज्यों ने यह उपलब्धि हासिल की थी, जिसमें बिहार भी शामिल था। इस बार बिहार को सौ में 46.9 अंक ही मिले।

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झारखंड को किसमें कितने अंक

इंडेक्स कुल अंक 2018-19 में मिले अंक 2019-20 में मिले अंक

- मानव संसाधन की उपलब्धता 20 07 10

- शिकायतों का निपटारा 30 12 14

- खाद्य पदार्थों की जांच के लिए उपलब्ध संरचनाएं 20 08 5.9

- प्रशिक्षण तथा क्षमता विकास 10 02 4.25

- कंज्यूमर इम्पावरमेंट 20 04 05

- कुल 100 33 39.15

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राज्यों की रैंकिग के अनुसार मिले अंक (कुल सौ अंकों में)

गोवा : 83.50, गुजरात : 78.25, तमिलनाडु : 74.90, महाराष्ट्र : 72.75, केरल : 71.60, दिल्ली : 68.00, पंजाब : 65.35, मणिपुर : 64.00, कर्नाटक : 62.30, मेघालय : 60.50, उत्तर प्रदेश : 60.20, प. बंगाल : 59.35, तेलंगाना : 56.80, मध्य प्रदेश : 54.80, राजस्थान : 54.50, हिमाचल प्रदेश : 53.40, ओडिशा : 53.15, त्रिपुरा : 52.50, छत्तीसगढ़ : 48.40, बिहार : 46.90, हरियाणा : 46.05, उत्तराखंड : 44.65, आंध्र प्रदेश : 42.80, सिक्किम : 42.50, नगालैंड : 42.00, असम : 39.60, झारखंड : 39.15, अरुणाचल प्रदेश : 33.50, मिजोरम : 22.00

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