झारखंड में आदिवासी केंद्रित राजनीति पर रस्साकसी शुरू, BJP बदलती डेमोग्राफी तो JMM स्थानीयता को बना रही मुद्दा
राजनीति में लाभ-हानि देखकर मुद्दे तय किए जाते हैं। इसी के इर्द-गिर्द घेराबंदी होती है। सबसे ज्यादा कसरत उस समुदाय का वोट अपने पाने करने के लिए होता है जो सर्वाधिक प्रभावी है। इसी राजनीतिक फार्मूले को ध्यान में रखकर प्रमुख दल आदिवासी केंद्रित राजनीति पर फोकस करते रहे हैं।
राज्य ब्यूरो, रांची: अगले साल होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनाव के मद्देनजर इसपर अभी से रस्साकसी शुरू हो गई है। पक्ष-विपक्ष इसके लिए पूरा जोर लगा रहा है। सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा के तरकश में जहां 1932 की स्थानीयता नीति से लेकर सरना धर्म कोड का मुद्दा है, वहीं विरोधी दल भाजपा ने आदिवासी क्षेत्रों की डेमोग्राफी बदलने और उनकी आबादी घटने के आरोप लगाए हैं।
अमित शाह ने उठाया जनसंख्या का मुद्दा
शनिवार को देवघर में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी आदिवासियों की कम होती जनसंख्या का मुद्दा उठाकर राज्य सरकार पर निशाना साधा। उधर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अपनी सभाओं में लगातार भाजपा को आदिवासी विरोधी करार दे रहे हैं।
आदिवासियों का छीना जा रहा हक
मुख्यमंत्री यह भी बता रहे हैं कि स्थानीयता संंबंधी विधेयक को वापस कर कैसे राज्य के आदिवासी-मूलवासी का हक छीना जा रहा है। सरना धर्म कोड की मांग पुरानी है। राज्य विधानसभा से सर्वसम्मति से इससे संबंधित प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेजा जा चुका है।
केंद्र में भाजपा की सरकार को अगर आदिवासियों से जुड़ी इस मांग के प्रति सहानुभूति होती तो जनगणना के लिए अलग कालम का प्रविधान होता। अब इसी के आसपास चुनावों में एक-दूसरे की घेराबंदी होगी।
आदिवासी मतों को लुभाकर पहुंच सकते हैं सत्ता में
राज्य में सत्ता तक पहुंचने के लिए आदिवासी समुदाय का समर्थन आवश्यक है। एक मायने में यह कहा जा सकता है कि सत्ता का रास्ता इसी से होकर गुजरता है। राज्य विधानसभा में 81 में से 28 सीटें आदिवासियों के लिए सुरक्षित हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में झामुमो-कांग्रेस गठबंधन ने इनमें से 26 सीटों पर कब्जा जमाया। सत्ता की चाबी गठबंधन के हाथ में आ गई।
तेज होगा आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला
यही वजह है कि दल इनका समर्थन पाने की भरसक कवायद कर रहे हैं। आदिवासियों के मत को लुभाने के लिए आने वाले दिनों में राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला और तेज हो सकता है। राज्य में लोकसभा की 14 में से पांच भी जनजातीय समुदाय के लिए आरक्षित हैं।