सत्ता का गलियारा : अब चुनाव आयो रे...अपने-पराए को साथ लायो रे...
Politics. सत्तापक्ष और क्या विपक्ष के नेता अपनी गोटी सेट करने में लगे हैं। सभी अपनी संभावनाएं तलाशते हुए गुणा-भाग में जुट गए हैं।
रांची, राज्य ब्यूरो। जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहा है, झारखंड की वादियों में भी राजनीतिक तपिश बढ़ती जा रही है। क्या सत्तापक्ष और क्या विपक्ष। सभी अपनी गोटी सेट करने में लगे हैं। विभिन्न राजनीतिक दलों के छोटे-बड़े नेता भी अपनी संभावनाएं तलाशते हुए गुणा-भाग में जुट गए हैं। सत्ता के गलियारे में अपनी धमक बढ़ाने को हर कोई मानो पूरी तरह से तैयार है। अलग-अलग गलियारे में गणना जारी है...
अब चुनाव आयो रे... : सत्ता सुख बैठे-बैठे हासिल नहीं होता। तीन राज्यों के परिणाम के बाद कमल दल को यह बात समझ आ गई है। सो उसने अपने तमाम बयान बहादुरों को जिलों का रुख अख्तियार करने का फरमान जारी कर दिया। साफ ताकीद किया गया है कि बहुत हो गया आराम, अब जुट जाओ काम पर। बेचारे ठंड में बोरिया बिस्तर बांध अलग-अलग जिलों में भटक रहे हैं और सरकार की उपलब्धियां गिनाते फिर रहे हैं। सत्ता के गलियारों में चर्चा है कि सुख भरे दिन बीते रहे भईया अब चुनाव आयो रे।
आखिर कौन गायब कर रहा डोली : डंडा टोली वाले साहब इन दिनों फिल्म जानी दुश्मन के भूत को तलाशने के नाम पर नाटक करने में जुटे हैं। इस साहब को सब पता है कि रास्ते से 'डोली' कौन गायब कर रहा है। खदान से निकले काले हीरे को लेकर जाने वाली 'डोली' रेलगाड़ी तक पहुंचने से पहले ही गायब हो रही है। दिल्ली के दरबार का डंडा जब साहब पर पड़ता है तो मंद-मंद मुस्कुराते हैं और गाते रहते हैं 'चलो रे डोली उठाओ कहार, पिया मिलन की रुत आई। रास्ते से डोली उड़ाने वाला भूत तो इस साहब का दोस्त ही है, फिर साहब उसपर अपने डंडा-टोपी का जोर क्यों दिखाएं। डोली में लदे काले हीरे का शौक उस भूत को ही नहीं, इस साहब को भी है। सब एक साथ हमाम में उतर चुके हैं, कौन किसको डांटे? दिल्ली दरबार चाहे जितनी चाबुक चला ले, कोई फर्क नहीं पड़ता।
छिटक रहे अपने : भैया की पार्टी से उनके अपने छिटक रहे हैं। राज्य की सबसे बड़ी पंचायत के हुए चुनाव में राष्ट्रीय दल से दोस्ताना बढ़ाया कि उनके कई अपने ही दूसरे के हो गए। जीतकर दर्द भी दिया। उस समय का माहौल कुछ और था। अब नए माहौल में उनके एक और अपने छिटक रहे हैं। इसे देखते हुए कड़ी कार्रवाई की तो आरोपों की झड़ी ही लग गई। जो भी हो, भैया की पार्टी के लिए तो यह बड़ा झटका ही है। सत्ता के गलियारे में चर्चा यह भी है कि यह नेताजी कोई बड़ा काम कराने के लिए पार्टी पर दबाव बना रहे थे। हकीकत क्या है वह तो नेताजी ही बता सकते हैं।
हाथ आया दर्द भरा तराना : तीन राज्यों के परिणाम से पूरे जोश में आ चुकी हाथ-वाली पार्टी के हाथ दर्द भरा तराना लग गया है। आखिर हो भी क्यों नहीं। मोर्चा नामधारी दो-दो पार्टियों के साथ इतराती इस पार्टी को बड़े मोर्चा ने धोखा दे दिया। जिससे मोहब्बत की उसी से लड़ाई हो गई। सामने चुनाव था सो कहीं रोया भी नहीं लेकिन लोगों की जुबान पर सनम बेवफा का गाना छा गया। अब इसका लाभ तो दूसरे लेंगे ही। एक बड़े नेता ने और भी बड़ी बात कह दी - यह चाचा को मोर्चा नहीं रहा, भतीजा तो सिर चढ़कर नाचेगा।