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नजर लागी राजा तोरे बंगले पर... माननीय के पैतरे से सत्ता के गलियारे में खलबली

अब फिर से बेफिक्री के दिन आएंगे। जालिमों ने उनको भी नहीं छोड़ा जिनकी नजर में चढ़ने के लिए चुनाव का रिजल्ट आने के पहले बेकरार रहते थे। खैर वक्त का फेर है। अच्छे दिन फिर लौट आएंगे।

By Alok ShahiEdited By: Published: Sun, 09 Feb 2020 07:36 AM (IST)Updated: Mon, 10 Feb 2020 06:52 AM (IST)
नजर लागी राजा तोरे बंगले पर... माननीय के पैतरे से सत्ता के गलियारे में खलबली
नजर लागी राजा तोरे बंगले पर... माननीय के पैतरे से सत्ता के गलियारे में खलबली

रांची, [प्रदीप सिंह]। सत्‍ता बदलते ही झारखंड की आबो-हवा पूरी तरह बदल गई है। आम लोगों की बात छोड़ भी दें तो कल तक दूसरे नेताओं के मुलाजिम रहे कर्मी भी अब उनकी ओर एक नजर ताकने तक को तैयार नहीं है। इधर सत्‍ता की हनक ऐसी कि मंत्री जी के बेटे बेरोकटोक पुराने वाले मंत्री जी के घर में घुस जा रहे हैं। नए विधायक से लेकर मंत्री तक अपने पसंद के बंगले हथियाने के लिए गिद्धदृष्टि लगाए बैठे हैं। राज्य ब्यूरो प्रभारी प्रदीप सिंह से जानिए झारखंड की सत्ता के गलियारे का हाल... 

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बड़े पैमाने पर उलटफेर

झारखंड में सरकार बदलने के साथ ही नौकरशाही में बड़े पैमाने पर उलटफेर संभावित है। इसके कयास भी लगाए जा रहे थे। पूर्व की सरकार में प्रभावी रहे कुछ वरीय अधिकारी समेत चुनिंदा अफसर फिलहाल पदस्थापना की प्रतीक्षा में हैं। इससे इतर, हाकिमों का एक बड़ा कुनबा ऐसा है, जो नए सिरे से ट्रांसफर-पोस्टिंग के इंतजार में है, ताकि कामकाज में तेजी लाई जा सके। फिलहाल उलटफेर की संभावना से इनका काम में मन नहीं लग रहा है और वे ज्यादा ध्यान सियासी गलियारे में चल रही गतिविधियों पर केंद्रित कर रहे हैं। हालांकि, सरकार ने जिला उपायुक्तों के लिए फरमान जारी कर दिया है कि वे स्थानीय स्तर पर जनता दरबार लगाकर लोगों की समस्याओं का समाधान करें, लेकिन इसमें भी ज्यादा तेजी नहीं देखी जा रही है। कई उपायुक्त जनता दरबार में दिलचस्पी से ज्यादा राजधानी में आकर खास लोगों की दरबारी में समय बिता रहे हैं। ऐसे में जबतक अटकलों पर विराम नहीं लगता, तबतक स्थिति में ज्यादा बदलाव होता नहीं दिखता। इस बीच वर्दी वाले एक बड़े साहब की कमान कट चुकी है, बस औपचारिक अधिसूचना ही शेष है। हुजूर पर चुनाव आयोग की टेढ़ी नजर तो पहले से ही थी, अब रही-सही कसर भी नई सरकार में पूरी हो जाएगी। 

बंगले पर नजर

वाकई समय बड़ा बलवान है। समय रहते कोई इस सच्चाई को गांठ बांध ले तो ज्यादा दुख नहीं होता। लेकिन, जो कुर्सी को परमानेंट मान लेता है, उसकी खुशी भी टेंपररी हो जाती है। अब जरा उन माननीयों के बारे में सोचिए, जो चुनाव में टिकट पाने में भले सफल हो गए, लेकिन जनता ने टिकट कंफर्म ही नहीं किया। ऐसे तीन दर्जन से ज्यादा हैं हुजूर, लेकिन कुछ को तो बंगले इतने बड़े मिल गए थे कि मन का मोह हट ही नहीं रहा था। अब चाकरी करने वाले तो ठहरे हुक्म के गुलाम, वे तो सत्ता का हुक्म बजाते हैं। बहरहाल  नोटिस भेज दिया है उन तमाम माननीयों को, जिनके बंगले पर नजर लग गई दुश्मनों की। अब फिर से बेफिक्री के दिन आएंगे। जालिमों ने उनको भी नहीं छोड़ा जिनकी नजर में चढऩे के लिए चुनाव का रिजल्ट आने के पहले बेकरार रहते थे। खैर, बस वक्त का फेर है। कमल वालों ने तो फिर से कहना शुरू कर दिया, अच्छे दिन फिर लौटकर आएंगे।               

बस एक पद चाहिए...

झारखंड में सत्ता का ठिकाना ऐसा बदला कि कल तक सीधे मुंह बात नहीं करने वाले अब जबर्दस्ती सुबह-शाम नमस्कार कर रहे हैं। इन्हें एक अदद नेता तक नहीं मिला सो जिन्हें सालों पहले मजबूर कर दिया था बेआबरू होकर निकलने को, उन्हीं बाबूलाल मरांडी में अब तारणहार नजर आ रहे हैं। ज्यादा दिन नहीं बीते, जब भाजपा के प्रवक्ता इन्हें वोटकटवा से लेकर सारी उटपटांग उपाधियां देते फिरते हैं, लेकिन अब इनके लब सिल गए हैं। कुछ तो यह दुहाई देते फिर रहे कि हम तो बस तन से इधर थे, बाकी मन तो हमेशा बाबूलाल जी के साथ ही रहा। ऐसे मौका देखकर पलटने वालों की भाजपाई जमात अब यहां दिन-रात अपनी पैरवी पहुंचाने में लगी है। कह रहे हैं, बस एक अदद पद चाहिए...। बड़ा नहीं तो छोटे पद से भी काम चलेगा। जब मनमाफिक जवाब नहीं मिलता है तो मेलजोल के लिए चुपके से मिलने की भी मिन्नते कर रहे हैं। बातचीत में एक खास नेता को कोसने से जरा भी नहीं हिचकते। फोन काटते-काटते कह ही देते हैं- सारा गुडग़ोबर हो गया उनके कारण, वरना ये दिन नहीं देखने पड़ते।

रिश्तेदारों की बारी

कभी राजपाट में हनक रखने वाले साहबों के किस्से आजकल खूब चल रहे हैं। कोई अफसोस जता रहा तो कोई खुन्नस निकाल रहा है। पहले कहने के पहले आसपास देख लेते थे कि कहीं कोई रिकार्ड तो नहीं कर रहा। बता रहे हैं कि सारे करीबी रिश्तेदारों को बुला लिया था मैडम ने। अब बेचारे साहब करते भी क्या। मैडम के आसपास वालों के जलवे थे। अब सबकुछ हाथ से निकलने के बाद रिश्तेदारों की विदाई का भी मौका आ चुका है। वे भी बस गिनती गिन रहे हैं कि बोरिया-बिस्तर लेकर निकल जाएं। कहीं तीर-कमान वाले को ज्यादा चुभ गए तो भागने का भी मौका नहीं मिलेगा झारखंड से।


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