भाजपा में जिंदा हो गई हीरा-मोती की जोड़ी...सियासत में साकार हुए प्रेमचंद; पढ़ें खरी-खरी
हाथवालों ने तो हद ही कर दी पचास टका रखनेवालों को टिकट दे दिया। अरे जिद कर रहे थे तो दे देते किसी फिल्म का टिकट। 3 घंटे मन भी बहल जाता। आखिर उच्च सदन के टिकट की कोई वैल्यू होती है
रांची, राज्य ब्यूरो। झारखंड में राज्यसभा चुनाव को लेकर बिसात बिछ गई है। जीत तय मानकार झामुमो और भाजपा ने अपने उम्मीदवार उतारे तो कांग्रेस ने भी अपना प्रत्याशी दे दिया। 27 विधायकों के वोट से जीत का आंकड़ा तय होने वाले इस चुनाव में इधर जेएमएम सुप्रीमो शिबू सोरेन तो उधर हैं भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश। कांग्रेस ने अरसे से दावेदार रहे फुरकान अंसारी की अनदेखी कर शहजादा को उतारा है। मुकाबला रोचक होने की उम्मीद बन रही है, हालांकि कांग्रेस के कुछ विधायकों के तेवर तल्ख दिख रहे हैं। यहां पढ़ें झारखंड की सियासत पर नजदीकी नजर डालते दैनिक जागरण के राज्य ब्यूरो प्रधान संवाददाता आनंद मिश्र की खरी- खरी...
रूठे थैलीशाह
राज्यसभा चुनाव में इस बार एक भी थैलीशाह नहीं ...! चुनाव का कोई स्टैंडर्ड ही नहीं रहा। कैसे-कैसे लोग चार्टर्ड से उतरते थे। क्या शान थी उनकी। टिप भी दे दें तो दिन फिर जाएं। झारखंडी थैलीशाहों ने भी चुनाव का स्टैंडर्ड बना कर रखा था। शान ऐसी कि पैसों से भरी गाडिय़ां सड़कों पर छोड़ दी जाती थीं। कमी हम में ही होगी जो वे रूठ गए। ऊपर से हाथ वालों ने तो हद ही कर दी। पचास टका रखने वालों को टिकट दे दिया। अरे जिद कर रहे थे, तो दे देते किसी फिल्म का टिकट। तीन घंटे मन भी बहल जाता। आखिर उच्च सदन के टिकट की कोई वैल्यू होती है। कोई बता भी रहा था कि राष्ट्रीय घोटाले वाले साहब दोबारा एंट्री के लिए अपना निजी हेलीकाप्टर उतारना चाहते थे लेकिन अंतिम समय में मना कर दिया गया। कितनों को धक्का लगा होगा अंदाजा लगाया जा सकता है।
दो बैलों की जोड़ी
दिन फिरते देर नहीं लगती, फिर इनके नाम के साथ तो प्रकाश जुड़ा है। रोशनी को बिखरने से कौन रोक सकता था। फैल ही गई और ऐसी बिखरी कि कईयों की आंखें चौंधिया गईं, मोतियाबिंद की नौबत आ गई है। आंखों वाले डाक्टर को दिखाना होगा। कमल दल के मुखिया के साथ-साथ भाई साहब दिल्ली दरबार की भी शोभा बनेंगे, यह भी तकरीबन तय हो गया है। कभी हटिया की छोटी सी हठ की थी, मना कर दिया था तख्त पर काबिज लोगों ने। किसी से दुखड़ा कहा नहीं कभी। बस मन मसोस कर रह गए थे। पुराने साथी की वापसी से दिन फिर गए। लोग दो बैलों की जोड़ी बता रहे हैं। बैलों की जोड़ी ने जुताई भी शुरू करने के संकेत दे दिए हैं। मौसम भी अनुकूल है। तमाम लोग दीपक के आसपास पतंगे की तरह मंडराने लगे हैं। ताप में जलने का डर भी है, बच गए तो कुछ तो मान-सम्मान मिल ही जाएगा।
जोर का झटका
बिजली का झटका सिर्फ आम लोगों को ही नहीं लगता, कभी-कभी सरकारों को भी हलकान कर देता है। डीवीसी वालों ने बत्ती गुल कर जो झटका दिया, उसका करंट रग-रग में दौड़ गया हाकिमों के। थमा दिया भारी-भरकम बिल। 70 दिनों पुरानी सरकार चकरा कर रह गई। खजाने की लाल बत्ती वैसे ही जली हुई है। जले हुए को और जलाया जा रहा है। विपक्ष की ओर देखते हैं तो वे आंखें तरेरने लगते हैं। तंज अलग कस रहे हैं, और दो 100 यूनिट फ्री। करे कोई, भरे कोई। किसी तरह हाथ-पैर जोड़कर, टोकन एमाउंट देकर मनाया है। बत्ती जल गई लेकिन मीटर चालू है। बिल ऐसा कि दिल को भेद रहा है। अल्टीमेटम भी मिला है, अगली किश्त समय पर मिल जाए। इधर, चुटकी लेने वाले भी चुटकी ले रहे हैं। अब तो डबल इंजन रहा नहीं, आगे-आगे देखिए कितने झटके लगते हैं।
बदल गए झंडे
कहते हैैं कि घूरे के भी दिन फिरते हैैं और यह प्रजाति तो ठहरी नेताओं-अफसरों के आसपास मंडराने वाली। जिसके पास सत्ता रही, उससे ऐसे ही सटे रहते हैैं जैसे गुड़ से चींटी। जैसे ही सत्ता पलटी, ये दोगुनी तेजी से पलट भी जाते हैैं। जबतक कमल दल का पावर था, इनकी कार कमल वाले झंडे के साथ फर्राटे भरती थी। जब राजपाट बदला तो इनके झंडे भी बदल गए हैैं और रंग भी हरा हो गया है। इसके कहते हैैं वक्त के साथ बदलना। धरती पर यही प्रजाति फलती-फूलती है। राजपाट भले किसी का हो, लेकिन ये सदा रहते हैैं मौज में। इस प्रजाति की खास बात हर बात में हां-हां मिलाना होता है और यस मैन तो सबको चाहिए। बस इसी फेर में ये सबके राजपाट में फल-फूल रहे हैैं।