हाथ ने डाले हथियार, राज्यसभा चुनाव में कैसे होगा बेड़ा पार...
Jharkhand. अल्पसंख्यक कार्ड खेलते हुए उतार तो दिया उम्मीदवार कुछ उम्मीद भी रही होगी लेकिन मध्य प्रदेश वालों ने सारा हौसला तोड़ दिया।
रांची, [आनंद मिश्र]। मध्य प्रदेश से आने वाली हवाओं ने यह बता दिया कि राज्यसभा में हाथ वालों की राह आसान नहीं है। वहां मजबूत माने जाने वाले कमलनाथ का कमल तक कमल दल वाले ले उड़े। सरकार भी गई और इज्जत भी। अब जब इतने मजबूत नेता का किला ढह सकता है तो यहां तो हाथ वालों की बिसात ही क्या। जोड़तोड़ कर कुल जमा 18 का कुनबा है।
अल्पसंख्यक कार्ड खेलते हुए उतार तो दिया उम्मीदवार, कुछ उम्मीद भी रही होगी लेकिन मध्य प्रदेश वालों ने सारा हौसला तोड़ दिया। नाउम्मीदी कुछ इस कदर भारी हो चली है कि मुंह से बोल तक नहीं फूट रहे हैं। कईयों ने तो कोरोना का सहारा ले अपना मुंह तक ढक लिया है। चर्चा बड़े सदन की करो तो कोरोना पर ज्ञान देना शुरू कर देते हैं। जाहिर है, चुनाव से पहले ही हाथ वालों ने हथियार डाल दिए हैं।
माननीयों की पीड़ा
नेता भी आम इंसान होता है। उसकी चमड़ी उतनी मोटी कतई नहीं होती जितनी बताई जाती है। किसी भी वायरस का असर उन पर उतना ही होता है, जितना आम इंसान पर। लेकिन यह किसी को समझ ही नहीं आ रहा है। कोरोना ने बसों व ट्रेनों के पहिये तक थाम दिए हैं लेकिन झारखंड विधानसभा का बजट सत्र चालू है। अब माननीय किससे कहें अपनी पीड़ा।
सत्ता पक्ष सत्र को समय से पहले स्थगित करने की पहल करे तो कहा जाएगा कि जनता के सवालों से सरकार भाग रहे हैैं। विपक्ष मांग करें तो तोहमत लगेगी कि वो सदन में अपनी भूमिका का निर्वाह करने से कतरा रहा है। जनता-जनार्दन का मान रखने को बेचारे रोज डरते-डरते सदन पहुंच रहे हैं। आमने-सामने बैठ एक दूसरे का मुंह ताक रहे हैं, इस इंतजार में कि कोई तो आवाज उठेगी जो कहेगी कि गिलोटिन लाओ, बजट पास कराओ और सदन में ताला लगाओ।
तेवर हुजूर के
जमीदारी भले चली गई हो लेकिन तेवर नहीं जाते। ऊपर से अगर 484 मौजा के मालिक हों और पलामू के पानी की गर्मी, तो बात ही क्या। वैसे भी इनका कोई सानी नहीं है। कमल क्लब में शामिल हुए छह महीना भी नहीं हुआ है, जनाब पूरी पलटन के नेता बने हुए हैं सदन में। कमल फोर्स इनके इशारे पर मूव करती है, इन दिनों। इशारा हुआ नहीं कि युवा सदस्य वेल में, इशारे पर ही वापस।
अब क्या जरूरत थी छोटे नवाब को पंगा लेने की। आंखों से तरेरा और समेट ली आर या पार के लिए बाहें। पीछे सारठ नरेश ने चंदबरदाई की भूमिका निभाते हुए शुरू कर दिया पृथ्वीराज रासो का पाठ। सदन हल्दीघाटी के मैदान में तब्दील होना ही था। एक न एक खेत रहता अगर हाथ वालों के कुछ हाथ थाम न लेते हुजूर को।
पटेल का पावर
छोटा कद देखकर इनके बारे में गलतफहमी पालने की गलती भी मत करिएगा। हरा गमछा कंधे में डाले जब ये चलते हैैं तो दुश्मनों के दिल जलते हैैं। जब से तीर-धनुष छोड़कर कमल थामा है, तब से चाल भी थोड़ी अलग हो गई है। ऐसा लगता है कि सामने वाले को ध्वस्त कर देंगे। सदन में खूब आवाज भी गूंजती है, लेकिन इनको कोई सीरियसली ले नहीं रहा।
नौसिखिये बाजी मार ले जाते हैैं और ये रह जाते हैैं देखते। सामने ससुर जी से भी वास्ता पड़ता है तो और सकपका जाते हैैं। दोनों की राह अलग हुई तो किस्मत भी दगा दे रही है। ससुर जी को भी कुर्सी नहीं मिली, सो बगलबच्चे इन्हीं को जिम्मेदार ठहरा रहे हैैं। वैसे सच्चाई जानने वाले जानते हैैं कि यह तो पुराने कर्म का नतीजा है जिससे कुर्सी को लगी है नजर। अब इनकी नजर उतरे तो बात बने।