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सत्ता का गलियारा : विद्वान नेताजी ने छेड़ी तान...मेरा नंबर कब आएगा

Raghubar Das. लोकसभा चुनाव की अधिसूचना अभी भले ही लागू नहीं हुई हो, परंतु संसद की राह पकडऩे की बेचैनी नेताओं को बेताब कर रही है।

By Alok ShahiEdited By: Published: Sun, 20 Jan 2019 04:52 PM (IST)Updated: Sun, 20 Jan 2019 04:52 PM (IST)
सत्ता का गलियारा : विद्वान नेताजी ने छेड़ी तान...मेरा नंबर कब आएगा
सत्ता का गलियारा : विद्वान नेताजी ने छेड़ी तान...मेरा नंबर कब आएगा

रांची, राज्‍य ब्‍यूरो। चुनावों की आहट के बीच झारखंड का राजनीतिक गलियारा भरी सर्दी में भी तपिश महसूस करा रहा है। एक से एक उद्भट, एक से एक विद्वान। कोई लंबी हांकने में माहिर तो किसी के महीन मिजाज का दूसरा कोई सानी नहीं। आइए देखें आखिर क्‍या चल रहा है सत्ता के गलियारे में...

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विद्वान नेताजी : आजकल दो नेताजी वित्तीय प्रबंधन और कुप्रबंधन पर अपने नॉलेज को बताने में कंपटीशन कर रहे हैं। जैसे वित्तीय जानकारी का पूरा खजाना इनके ही पास हो। बड़े-बड़े अर्थशास्त्री भी उनके सामने नहीं टिकते। सदन और सदन से बाहर ऐसे लच्छेदार बोलते हैं कि सुनने वाले उन्हें ही देखता रह जाए। एक सरकार के बेहतर वित्तीय प्रबंधन का बखान कर रहे हैं तो एक कुप्रबंधन का। वित्तीय प्रबंधन-कुप्रबंधन से ये आगे निकल ही नहीं पा रहे। अब उन्हें कौन समझाए कि जनता को इससे कोई मतलब नहीं है। उनकी समस्याएं कैसे दूर हो, इसी पर ही दोनों नेताजी काम कर लें तो उनका भला हो।

मेरा नंबर कब आएगा : दर्द ऐसा है कि किसी से साझा भी नहीं कर सकते। साझा करेंगे तो खिल्ली उड़ेगी लेकिन दर्द तो है। जो रह-रहकर उठता है। मंत्रालय के मुखिया होने के बावजूद इजरायल नहीं जा सके। किसानों की तीन खेप चली गई लेकिन माननीय का नंबर नहीं आया। राज्य के मुख्य सेवक के यहां जब महिला किसान मिलने आईं तो धीर धर यह भी पहुंचे। जब मुख्य सेवक ने कहा कि उनका मन भी इजरायल जाने का है तो तपाक से बोल पड़े, हम भी चलेंगे। मतलब हम साथ में चलेंगे। अब देखना है कि उनका नंबर कब आएगा। कहीं ऐसा न हो तमन्ना धरी ही रह जाए।

एक अनार सौ बीमार : चुनाव की अधिसूचना अभी भले ही लागू नहीं हुई हो, परंतु संसद की राह पकडऩे की बेचैनी नेताओं को बेताब कर रही है। पक्ष-विपक्ष के बीच शब्दों के बाण तो शुरू से ही चलते रहे हैं, सीटों के बंटवारे को लेकर विपक्षी  महागठबंधन की गांठ भी बहुत मजबूत नहीं दिख रही। अब कोडरमा का ही ड्रामा देखिए, एक अनार के लिए कई बीमार हो रहे हैं। सबकी अपनी डफली है, अपना राग अलाप रहे हैं। लाल बाबू का दावा, हम तो पहले ही झंडा लहरा चुके हैं, दावेदारी तो हमारी ही बनती है। फिर मोहतरमा कहा मानने वाली, कह रही कई बार अपने जनाधार का जलवा दिखा चुकी हूं, कोई हमें कमजोर न समझे। इधर, जहां के राजकुमार ने भी सबको लाल सलाम ठोंक दिया है। एक सीट पर तीन-तीन सवार देकर बगलगीर चुप है, हाथ उठाकर बुदबुदाता है, अब तो लॉटरी ही करा लो भाई।

धुलने लगा चुनरी का दाग : सत्ता की करीबी रहीं एक मैडम के चुनरी में दाग लगा तो पूरा महकमा हिल गया। यह दाग कंबल के धागों से निकलकर चुनरी तक पहुंच गया था। बात बढ़ी और सभी फंसते दिखे तो इससे उबारना भी उतना ही जरूरी था। अब सब मिलकर इस दाग को धोने में जुट गए हैं। जिन लोगों को जांच का जिम्मा दिया गया उन लोगों में से कुछ ने इस मामले में खुद को अक्षम बताते हुए जांच वैज्ञानिक से कराने तक की बात कह दी। कुछ ने जांच कर लीपापोती कर दी तो उन्हें शाबाशी भी मिली। अब एक पुराना पत्र आउट कर उन्हें बचाने की कोशिश की गई है और बताया गया है दोष तो दूसरों का था। खैर हम तो मैडमजी की खुशी में ही खुश हैं।


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