सत्ता का गलियारा : हमीं से मोहब्बत... हमीं से लड़ाई..., यही राजनीति है मेरे भाई
झारखंड की सियासत में नरमी-गरमी तो चलती रहती है, लेकिन भाजपा सरकार पर अभी चारों ओर से अंदर-बाहर निशाने साधे जा रहे हैं।
रांची, राज्य ब्यूरो। ढुलमुल का कीचड़ : कमल कीचड़ में ही खिलता है। थोड़ा बहुत कीचड़ तो विश्व की सबसे बड़ी पार्टी में भी पहुंच ही चुका है। कोयलांचल की धरती पर पार्टी के कई सूरमा कीचड़ मथने में लगे हुए हैं। कीचड़ एक-दूसरे पर फेंकने में, उछालने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही। महिलाएं तक सामने आ चुकी हैं -आरोप लगाने।
अब इसकी जांच का जिम्मा एक अधिकारी को दिया गया तो उनकी भी सुन लीजिए। जांच से पहले ही एक महिला के साथ उनकी तस्वीर वायरल कर दी गई। छोटे भाई लक्ष्मण परेशान हैं -भैया कीचड़ तो फैलता ही जा रहा है। अब इसे किसी तरह से रोकना है। सो, अब सख्ती से काम चलेगा कोई ढुलमुल नीति नहीं चलेगी।
हमीं से मोहब्बत, हमीं से लड़ाई... : खाद्य वाले साहब को हर उस इंसान से लेना-देना है जो कुछ खाता-पीता है। भले ही वह चारा क्यों न खाता हो। अभी साहब के शुरुआती दिनों के दोस्त जेल के रास्ते रिम्स पहुंचे हैं तो साहब उनकी भी खबर रख रहे हैं। खबर इतनी कि जिसे आधी उम्र चारा चोर कहते रहे, उनकी बीमारी को लेकर चिंतित हो गए। चाह रहे कि किसी तरह से पुराने दोस्त का बेहतर इलाज हो।
अब यह बात सभी को समझ में नहीं आ रही। लोग तो इन्हें आपस में पक्का दुश्मन मान चुके थे। इतना दुश्मन कि दोस्त को जेल पहुंचाने में इनका हाथ होने की जानकारी सभी को थी। अब दोस्ती की बातें देखकर लोगों को समझ में नहीं आ रहा है कि पुरानी दोस्ती आखिर उभर कैसे गई। खैर, खबरनबीस इस बात का इल्म रखता है कि किसी बीमार की मदद करना कर्तव्य भी है और धर्म भी...। सो, सब ठीक है।
हमसे का भूल हुई, जो ये सजा हमका मिली : 'हमसे का भूल हुई, जो ये सजा हमका मिली...। अब तो चारों ही तरफ बंद है दुनिया की गली। डंडा-टोपी वाले एक साहब इन दिनों यह गीत तब से गुनगुना रहे हैं, जब उन्हें बिना वजह के ही नए घर का सुख भोगे बगैर पुराने घर में ही वापस कर दिया गया। दोस्त, सहयोगी, साथी, सीनियर सबसे उनका एक ही सवाल है कि आखिर उन्हें कौन से जुर्म की सजा दी गई है। सबकुछ तो बेहतर चल रहा था।
अब इस साहब को कौन बताए कि 'बाबा की कु-दृष्टि जिसपर पड़ी, उसके सभी बेहतर कार्य लॉबी के चक्कों में पिसकर नष्ट हो गए। इस साहब के भाषा वाले तो पहले ही बाबा को खटकते रहे हैं। इससे पहले भी इसी साहब के इलाके से ताल्लुक रखने वाले एक बड़े साहब ने विरोध क्या कर दिया, बाबा ने देश की राजधानी भेज दिया। अब इस साहब पर भी अपनी कु-दृष्टि डाल दिए, चंद महीने में ही इन्हें पुराने खंडहर में वापस करवा दिया।
काली कोट पर भारी पड़ी खादी : अब तक काली कोट वाले खादी वालों को बचाते आए हैं, लेकिन राज्य में समय ने करवट ली, तो कानूनी राय देने वाले खादी वालों के निशाने पर आ गए हैं, जब इनके मुखिया पर हर ओर से आवाज उठने लगी तो काली कोट वाले इसे न्याय के मंदिर का अपमान बताने लगे।
बात-बात पर कानूनी सीख देने वालों ने खादी वालों को लाल पत्र भेजने की तैयारी कर ली, लेकिन इस काम में खाकी वाले ही ज्यादा होशियार निकले। इनपर मामला उछाला अलग से और जांच के लिए आवेदन दिया अलग से। हर तरफ इसकी चर्चा हो रही कि सबको कानून बताने वालों की जब अपने पर आई है तो आगे करेंगे क्या।