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बिहारी इतने भारी कि कुर्सी भी नहीं उठा पा रही वजन... पढ़ें पुलिस महकमे की अंदरुनी खबर

Jharkhand Bureaucracy Gossip News. तीन महीने में ही खुफिया विभाग वाली कुर्सी क्या टूटी उन्हें हाउसिंग प्रोजेक्ट के नए असाइनमेंट पर भेज दिया गया।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Sat, 04 Jul 2020 12:53 PM (IST)Updated: Sat, 04 Jul 2020 02:46 PM (IST)
बिहारी इतने भारी कि कुर्सी भी नहीं उठा पा रही वजन... पढ़ें पुलिस महकमे की अंदरुनी खबर
बिहारी इतने भारी कि कुर्सी भी नहीं उठा पा रही वजन... पढ़ें पुलिस महकमे की अंदरुनी खबर

रांची, [दिलीप कुमार]। सत्ता का चोला क्या बदला, खाकी वाले विभाग के चेहरे भी बदलने शुरू हो गए। जो कभी तीसमार खां थे, आज उन्हें कोई पूछ नहीं रहा है। जो हाशिए पर थे, वे मुख्यधारा में आ गए हैं। राजधानी में अखिलेश व सुरेंद्र जहां पुलिसिंग में मैथिल संस्कृति का रंग भरने जा रहे हैं, वहीं राजस्थान से आने वाले मुरारी जी अब खुफियागिरी करेंगे। मल्लिक साहब तो बिहारी ठहरे। इतने भारी निकले कि कोई भी कुर्सी ज्यादा दिन तक उनका वजन उठाने की स्थिति में नहीं रहती। तीन महीने में ही खुफिया विभाग वाली कुर्सी क्या टूटी, उन्हें हाउसिंग प्रोजेक्ट के नए असाइनमेंट पर भेज दिया गया। अपराधियों के पीछे दौड़-दौड़ कर थक चुके रांची के कप्तान साहब अब चैन की वंशी बजाएंगे। झंझट से दूर डोरंडा के मैदान में दौड़ लगाएंगे। खुद भी दौड़ेंगे और दूसरों को भी दौड़ाएंगे।

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परेशान हैं बाबा

खाकी वाले विभाग में चार साल तक एक ही कुर्सी पर जड़वत रहे बाबा इन दिनों परेशान हैं। सेवानिवृत्ति के बाद सोचा था कि सपनों के आशियाने में चैन की वंशी बजाएंगे, पर ऐसा हो न सका। पहले घर पर नजर लगी, जमाबंदी तक रद होने की तैयारी है। इससे उबरे भी नहीं थे कि सुख-चैन को पलीता बहू ने लगा दिया है। वैसे अपने स्वर्णिम दिनों में आधी आबादी को बाबा ने खूब इज्जत दी, लेकिन न जाने किसकी आह लग गई। बागी बनी बहू को बेटे से तलाक दिलवाकर घर से बाहर क्या निकाला, वह तो ज्योति से ज्वाला बन गई। इज्जत को ऐसा पलीता लगाया कि नजर तक नहीं मिला पा रहे हैं किसी से। सब समय की लीला है। खाकी से खादी अपनाने की जुगत में लगे थे, जोगिया वस्त्र धारण करने की नौबत आ गई है। समय से सबकुछ छीन लिया है। लेकिन, बाबा भी कम नहीं हैं। कहते हैं, घर में पति-पत्नी और वो का नाटक कब तक होने देते। दावा करते हैं विवाद को मुकाम तक पहुंचाएंगे, चाहे जितने दांव आजमाने पड़े।

खिलाए कि डकारे, दें हिसाब

देश-दुनिया का चैन लूटने वाले कोरोना वायरस के चलते हर कोई परेशान है लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो लहरों की गिनना जानते हैं। इनकी झोली हर परिस्थिति में भरी ही रहती है। समाज सेवा के नाम पर कुछ माल दबा लेने में इन्हें कहीं कोई पाप नजर नहीं आता है। अब इसी छूट की खोज शुरू हो गई है। गरीबों-असहायों को सबसे ज्यादा निवाला पहुंचाने वाली खाकी से हिसाब-किताब मांगा गया है। लेखा-जोखा रखने वाले, माल डकारने वालों की तोंद को इंच-टेप से नाप रहे हैं। अन्न के एक-एक दाने का हिसाब मांग रहे हैं। गणित की परीक्षा में फिसड्डी रहने वाले साहेब अब पाई-पाई का हिसाब मिला रहे हैं और कोरोना की घड़ी को कोस रहे हैं।

अपना-अपना पावर

सरकार में भ्रष्टाचारियों को पकडऩे वाले विभाग अपना-अपना पावर दिखा रहे हैं। आरोप कितना भी बड़ा हो, जांच के पहले बिरादरी देखी जा रही है। आज तेरी, तो कल मेरी बारी, का भय जब सताने लगा तो निगरानी रखने वालों ने नियम व कानून को ही बदल डाला। कितनी मेहनत से जिम में पसीना बहाकर अपने हाथ को मजबूत किया था कि भ्रष्ट लोकसेवकों की गर्दन पकड़ेंगे, लेकिन कौरव सेना के सामने चल नहीं रही। सभी चक्रव्यूह में फंसाकर उस हाथ के पीछे पड़े हैं, ताकि उसे गर्दन दबोचने के पहले ही काट सकें। पर, ऐसा होता दिख नहीं रहा है। उन्हें नहीं पता कि यह महाभारत काल की लड़ाई नहीं है। जिसके पीछे वे पड़े हैं, वह धु्रवतारा है, जो हर वक्त चमकते हैं। लाख कोशिश कर लें, उनकी चमक फीकी नहीं होगी। संभलकर, हाथ कट भी गया तो गम नहीं, वह भ्रष्टाचारियों को तो अपनी तेज से मार डालेंगे।


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