31 मई तक पीएम टेन एनालाइजर्स नहीं लगे तो उद्योगों में लटकेंगे ताले
वायु प्रदूषण रोकने के लिए झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद ने कड़ा फैसला लिया है। जिन उद्योगों में पीएम 10 एनालाइजर नहीं लगेंगे उन्हें बंद किया जाएगा।
By Edited By: Published: Wed, 17 Apr 2019 02:23 AM (IST)Updated: Wed, 17 Apr 2019 02:29 AM (IST)
जागरण संवाददाता, रांची : वायु प्रदूषण रोकने के लिए झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद ने कड़ा फैसला लिया है। पर्षद ने वायु प्रदूषित करने वाले राज्य के उद्योगों को 31 मई तक पीएम (पर्टिकुलेट मैटर) टेन एनालाइजर्स लगाने का आदेश दिया है। निर्धारित तिथि तक ऐसा नहीं करने वाले कारखानों में ताला लगा दिया जाएगा। पर्षद ने मंगलवार को पत्र जारी कर आदेश दिया है कि छोटे-छोटे धूलकण से वायु प्रदूषित करने वाले कारखानों को पीएम टेन एनालाइजर्स हर हाल में लगाना होगा। वायु में बढ़ रहे प्रदूषण के कारण पर्षद ने यह सख्त कदम उठाया है। प्रदूषण बढ़ने से लोगों को सांस और फेफड़े की बीमारी हो सकती है। जिस क्रशर में दस हजार सीएफटी से ज्यादा उत्पादन हो रहा है वहां इसे लगाना अनिवार्य है। इसके अलावा हार्ड कोक, रेलवे साइडिंग में सर्टिफाइड पीएम टेन एनलाइजर्स लगाने को कहा गया है। पर्षद के सदस्य सचिव राजीव लोचन बक्शी ने बताया कि 31 मई के बाद टीम इसका निरीक्षण करेगी। वायु प्रदूषित करने वाले कारखानों में अगर यह लगा हुआ नहीं मिला तो उसे बंद कर दिया जाएगा। क्या है पीएम मैटर पीएम मैटर यानी पर्टिकुलेट मैटर। दरअसल यह वातावरण में मौजूद ठोस कणों और तरल बूंदों का मिश्रण है। हवा में मौजूद कण इतने छोटे होते हैं कि आप नग्न आखों से भी नहीं देख सकते। कुछ कण इतने छोटे होते हैं कि इन्हें केवल इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप का उपयोग करके पता लगाया जा सकता है। इसमें पीएम 2.5 और पीएम 10 शामिल हैं जो बहुत खतरनाक होते हैं। पीएम 2.5 वायुमंडलीय कण पदार्थ है जिसमें 2.5 माइक्रोमीटर से कम व्यास होता है, जो मानव बाल के व्यास के लगभग तीन प्रतिशत है। इतना मानक है सुरक्षित हवा में पीएम 2.5 की मात्रा 60 और पीएम 10 की मात्रा 100 होने पर ही हवा को सास लेने के लिए सुरक्षित माना जाता है। पर्टिकुलेट मैटर के ये हैं स्त्रोत प्राइमरी स्त्रोत में ऑटोमोबाइल उत्सर्जन, धूल और खाना पकाने का धुआ शामिल हैं। सेकेंडरी सोर्स सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे रसायनों की जटिल प्रतिक्रिया हो सकती है। ये कण हवा में मिश्रित हो जाते हैं और इसको प्रदूषित करते हैं। इनके अलावा, जंगल की आग, लकड़ी के जलने वाले स्टोव, उद्योग का धुआ, निर्माण कायरें से उत्पन्न धूल वायु प्रदूषण आदि और स्त्रोत हैं। स्वास्थ्य पर प्रभाव -फेफड़ों की बीमारी। लगातार खासी और अस्थमा के दौरे। -उच्च रक्तचाप, दिल का दौरा, स्ट्रोक। -बच्चों और बुजुगरें के स्वास्थ्य पर बुरा असर। -सास लेने में दिक्कत। - आखें, नाक और गले में जलन - छाती में खिंचाव
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