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Pigeon Pox बीमारी ने रांची में दी दस्तक, मर रहे कबूतर और कौआ

Jharkhand. पिजन पॉक्‍स से मनुष्यों को संक्रमित होने का डर नहीं। इससे दूसरे पक्षियों को खतरा है। मच्छर व गंदा पानी इसकी वजह है। बचाव के उपाय से उपचार संभव है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Tue, 07 Apr 2020 10:32 AM (IST)Updated: Tue, 07 Apr 2020 09:09 PM (IST)
Pigeon Pox बीमारी ने रांची में दी दस्तक, मर रहे कबूतर और कौआ
Pigeon Pox बीमारी ने रांची में दी दस्तक, मर रहे कबूतर और कौआ

रांची, जासं। Ranchi Bird Flu and Pigeon Pox News कोरोना महामारी के बीच रांची में पिजन (कबूतर) पॉक्स नाम की बीमारी ने दस्तक दे दी है। इस बीमारी से रांची के अलग-अलग भागों में पिछले दो-तीन दिनों से बड़ी संख्या में कबूतर मरे मिले हैं। कई स्थानों पर बीमारी से पीडि़त कबूतर भी पाए गए हैं। कबूतरों से दूसरे पक्षियों में भी इस बीमारी के फैलने की आशंका जताई जा रही है। रांची के कुछ हिस्सों में पूर्व में बर्ड फ्लू फैलने की पुष्टि हो चुकी है। मंगलवार काे रांची के कोकर में कई कौवे मृत पाए गए। ये कौअे पिजन पॉक्‍स से मरे या फिर बर्ड फ्लू से, इसका पता अभी नहीं चल सका है।

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कोकर इलाके में सड़कों पर मरे मिले कई कौवे

कोरोना संक्रमण को लेकर पहले से कायम दहशत के बीच नई मुसीबत के बादल मंडरा रहे हैं। मंगलवार को रांची के कोकर इलाके की सड़कों कई कौअे मरे हुए पाए गए। सुबह जरूरी काम से निकले लोग इन्हें देख कर डर गए। बताया जा रहा है कि कौअे के मुंह में झाग निकला हुआ है। पक्षी विशेषज्ञों की माने तो ऐसा बर्ड फ्लू की स्थिति में होता है। हालांकि जांच के बगैर कोई कुछ कहने को तैयार नहीं। इससे पहले भी भगवान बिरसा मुंडा उद्यान में कई पक्षियों की मौत बर्ड फ्लू से हो गई है। इसके बाद भी बीमारी के फैलने की आशंका को लेकर प्रशासन सजग नहीं दिख रहा।

रांची पशु चिकित्सा महाविद्यालय के डीन डॉ. सुशील प्रसाद बताते हैं कि मौसम की स्थिति में बदलाव से कबूतरों में पिजन पॉक्स बीमारी हो सकती है। ये एक वायरल बीमारी है जो फाउल पॉक्स नाम के वायरस से होती है। उन्होंने बताया कि ऐसा कोई सबूत नहीं है कि यह मनुष्यों को संक्रमित कर सकता है इसलिए इससे सार्वजनिक स्वास्थ्य की चिंता नहीं है।

हालांकि अगर इससे एक पक्षी प्रभावित होता है तो उससे उस झुंड के सारे पक्षी संक्रमित हो जाते हैं। पक्षियों में यह बीमारी 7-10 दिनों तक और झुंड में आम तौर पर 5 से 7 सप्ताह तक रहता है। महाविद्यालय के पशु रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. एमके गुप्ता का कहना है कि यह बीमारी वायरस के कारण होती है जो मच्छरों और गंदे पानी से फैलती है। इस बीमारी से पक्षी के चेहरे, मुंह और पैरों के चारों ओर पॉक्स के निशान बन जाते हैं। मुंह में चेचक (पॉक्स) दिखने से मृत्यु दर अधिक होगी। यदि बाहरी शरीर पर चेचक देखा गया, तो उचित उपचार से पक्षियों को बचाया जा सकता है।

जू में पक्षी हैं सुरक्षित

इस बीमारी के भगवान बिरसा जैविक उद्यान में फैलने की संभावना से प्रबंधन ने साफ इन्कार कर दिया है। उद्यान के पशु चिकित्सक डॉ. अजय कुमार ने बताया कि पिजन पॉक्स बीमारी कबूतर में ही होती है। उद्यान में कबूतर हैं ही नहीं। ऐसे में उद्यान में यह बीमारी होने की संभावना नहीं है।

यह है उपचार

डॉ एमके गुप्ता बताते हैं कि पौष्टिक पूरक तरल द्रव्य को एजिथ्रोमाइसिन या टेट्रासाइक्लिन को ड्रापर या पाइप के माध्यम से देकर उपचार किया जा सकता है। कबूतर के रहने वाले स्थान पर रात को मच्छर मारने की अगरबत्ती को जलाकर तथा रहने वाली जमीन में सुबह मच्छरदानी लगाकर बीमारी से बचाव किया जा सकता है। साथ ही रहने वाले स्थान को 1 प्रतिशत पोटैशियम हाइड्रोऑक्साइड, 2 प्रतिशत सोडियम हाइड्रोऑक्साइड और 5 प्रतिशत फिनाइल को मिलाकर कबूतर घर/ बर्तन की सफाई करनी चाहिए।

क्या है बर्ड फ्लू

बर्ड फ्लू पिजन पॉक्स की तरह ही वायरस से होता है। मगर इन दोनों में काफी अंतर है। बर्ड फ्लू एवियन इंफ्लूएंजा (एच5एन1) वायरस से होता है। यह मुर्गा-मुर्गी सहित किसी भी पक्षी को हो सकता है। इसके बाद इस पक्षी के संपर्क में आने पर उससे किसी दूसरे मनुष्य में जानलेवा बीमारी का रूप ले सकता है। ये अपने प्राइमरी कैरियर से सेकेंडरी कैरियर में ज्यादा खतरनाक हो जाता है।


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