लोगों का सवाल, राज्य में क्यों नहीं बनी खेल नीति!
रांची जागरण संवाददाता। दैनिक जागरण द्वारा चलाए जा रहे 16 साल 16 सवाल अभियान के तहत लोवाडीह के लोगों से सवाल पूछे गए। इस दौरान मौके पर मौजूद लोगों ने कहा कि महेंद्र सिंह धौनी से झारखंड की पहचान है। दीपिका कुमारी से राज्य की पहचान है और समय-समय पर यहां से अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी उभरते रहते हैं। राज्य गठन के 1
रांची, जागरण संवाददाता। दैनिक जागरण द्वारा चलाए जा रहे 16 साल, 16 सवाल अभियान के तहत लोवाडीह के लोगों से सवाल पूछे गए। इस दौरान मौके पर मौजूद लोगों ने कहा कि महेंद्र सिंह धौनी से झारखंड की पहचान है। दीपिका कुमारी से राज्य की पहचान है और समय-समय पर यहां से अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी उभरते रहते हैं। राज्य गठन के 18 वर्ष बीत गए हैं, लेकिन राज्य की अभी तक अपनी कोई खेल नीति नहीं है। वहीं लोगों ने यह भी कहा कि राज्य में जितने खिलाड़ी उभरे हैं, सभी अपने दम पर आगे बढ़े हैं। हर जिले में कम से कम एक अंतरराष्ट्रीय स्तर के स्टेडियम का निर्माण होना चाहिए। साथ ही जैसे स्वास्थ्य विभाग में सहियाओं की बहाली हुई है, वैसे ही हर जिले में खेल सहिया की बहाली होनी चाहिए।
- मंटू लाला किसी भी चीज के लिए पॉलिसी जरूरी है। लेकिन जो भी लोग पॉलिसी से जुड़े होते हैं, उन्हें खेल की समझ ही नहीं होती। इसीलिए खेल से जुड़े लोग पॉलिसी बनाएं। जिससे प्रतिभाओं की जरूरतों को समझा जा सके।
-वीरू साहू प्रखंडों में खेल पदाधिकारी नहीं हैं। फुटबॉल एकेडमी नहीं है। हॉकी एकेडमी नहीं है। कोई अंतरराष्ट्रीय एकेडमी नहीं है। तीरंदाजी का कोई अंतरराष्ट्रीय एकेडमी नहीं है। प्रतिभा कैसे निखरेगी।
-पुनीत राम अगर राज्य में इंफ्रास्ट्रक्चर और खिलाडि़यों को डेवलप किया जाए, तो ओलंपिक और एशियाड खेलों में झारखंड के खिलाड़ी हिन्दुस्तान के किसी भी राज्य के खिलाड़ियों से अधिक पदक लाएंगे।
- जितेंद्र कुमार रांची में इंफ्रास्ट्रक्चर तो है। लेकिन स्थानीय खिलाड़ियों को किसी कारण से उन सुविधाओं का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। - मिहिर कुमार झारखंड के खिलाड़ियों में अन्य राज्यों की तुलना में ज्यादा प्रतिभा है। लेकिन प्रतिभाएं मूलभूत सुविधाओं और सरकार की कमियों के कारण उभर नहीं पा रही हैं।
-पप्पू सिंह सोशल मीडिया से
हमें गर्व है कि हम उस झारखंड से हैं, जहा की मिट्टी ने महेंद्र सिंह धौनी, दीपिका कुमारी, निक्की प्रधान और मधुमिता जैसी विलक्षण प्रतिभाएं पैदा की हैं। लेकिन इन्हें तराशने में यहा की सरकारों का कोई योगदान नहीं रहा। झारखंड किक्रेट बोर्ड पर तो कई दफा पैसे लेकर खिलाड़ी खिलाए जाने का आरोप लग चुका है। वर्चस्व और सेटिंग-गेटिंग का खेल खेलने में जुटे यहा के खेल संघों का भगवान ही मालिक है। झारखंड के हर गाव में खेल प्रतिभाएं भरी पड़ी हैं लेकिन लाचारी, आर्थिक विपन्नता और बेहतर सुविधाएं न मिलने से वे आगे नहीं बढ़ पा रहीं। राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दमखम दिखा चुके खिलाड़ियों को आगे लाकर ही हम खेल का भला कर सकते हैं। राजनीतिक दलों और नेताओं का खेल संघों में दखल रोकना ही होगा।
-कृष्ण चंद्र दुबे