Move to Jagran APP

अपनों का पता नहीं, पराए लुटा रहे प्यार

रिम्स में एक दर्जन लावारिस करा रहे इलाज, गार्ड व कर्मी करते हैं देखभाल, कई का नहीं है पता ठिकाना, लेकिन अपनों से मिलने की आस अभी तक जीवित।

By JagranEdited By: Published: Mon, 18 Jun 2018 04:49 PM (IST)Updated: Mon, 18 Jun 2018 04:49 PM (IST)
अपनों का पता नहीं, पराए लुटा रहे प्यार
अपनों का पता नहीं, पराए लुटा रहे प्यार

कंचन कुमार, रांची : राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान (रिम्स) में लगभग एक दर्जन लावारिस मरीज इलाज करा रहे हैं। कई लोगों का कोई ठिकाना नहीं। देखभाल करने वाला कोई सगा नहीं। लेकिन रिम्स के गार्ड, नर्सेज एवं कर्मी उन्हें अपना समझकर पूरी देखभाल करते हैं। गैर होकर भी अपनों से ज्यादा प्यार लुटा रहे हैं। समय से खाना, दवा एवं अन्य जरूरतों का पूरा ख्याल रखते हैं। ये लावारिस मरीज यहा 2 से 8 माह से रह रहे हैं। बगल के मरीजों के बदलने के साथ ही सप्ताह एवं माह-दो माह में इनके 'रिश्तेदार' भी बदल जाते हैं।

loksabha election banner

एक महिला लगभग सात माह से यहां रह रही है। अपना नाम तिला बताती है। एक्सीडेंट हुआ था। इसमें पैर टूट गया। अब जख्म पूर्णत: सूख चुका है। लेकिन ठीक से खड़ी नहीं हो पाती है। वह बताती है कि उसके दो बेटे हैं-विकेश और रूपेश। एक दुकान चलाता है, जबकि दूसरा वाहन चालक है। लेकिन इतने दिनों में उससे मिलने कोई नहीं आया। वह अपनों से मिलने के लिए बेताब है। कहती है- घिसटते हुए भी अपने बेटों के पास जाना चाहती है।

लेकिन कहां जाना है, उसे भी पता नहीं। एक महिला लगभग 20 दिनों पूर्व आई हैं। एक्सीडेंट में घायल होने के बाद किसी ने रिम्स पहुंचा दिया था। वह ¨हदी नहीं बोल पातीं। कोई पता-ठिकाना पूछता है तो बिलख पड़ती हैं। कुछ भी पता नहीं। कोई कुछ पूछता है, तो आंखें भर आती हैं। सभी से हाथ जोड़कर घर पहुंचाने का आग्रह करती हैं। लेकिन पहुंचाना कहां है, यह पता नहीं। लोग उनके खाने-पीने तथा ससमय दवा देने का पूरा ख्याल रखते हैं।

कपड़े नहीं थे। सिस्टर ने साड़ी-ब्लाउज एवं अन्य वस्त्र ला कर दिए। समय से दवा दी जा रही है। अगल-बगल लोग उन्हें भाड़े की गाड़ी लेकर घर पहुंचाने को तैयार हैं। लेकिन पता ठिकाना सही नहीं मिल पाया है। विशेश्वर पातर पांच माह से यहां पड़े हैं। महामाया होटल रांची में काम करते थे। वाहन के धक्के से घायल हो गए। होटल वाले ने ही रिम्स में भर्ती कराया। फिर कोई देखने नहीं आया। कहते हैं कि उनके परिवार में बेटा पतोहू एवं पोते-पोतियां हैं। लेकिन आज तक कोई नहीं आया।

राजकिशोर नामक युवक कई माह से रिम्स में भर्ती है। पता-ठिकाना ठीक से नहीं बता पाता। होटल में काम करता था। दुर्घटना में घायल होने पर किसी ने यहां भर्ती करा दिया। वह बताता है कि परिवार में कई लोग हैं। लेकिन कोई लेने नहीं आता। एक वृद्ध कई माह से भर्ती हैं। नाम पूछने पर खोड़ा बंगाल बताते हैं। कहते हैं परिवार में एक बेटी एवं अन्य सदस्य हैं। खेती- बाड़ी भी है। लेकिन आज तक परिवार वालों ने खैरियत नहीं ली।

इन लावारिसों का रिम्स में सगा कोई नहीं है। लेकिन सभी कर्मी एवं आसपास के मरीजों के परिजन उन्हें अपना समझते हैं। दवा खाई कि नहीं, खाना एवं नाश्ता लिया या नहीं, क्या तकलीफ है- पूरा ख्याल लोग रखते हैं। इनका मन बहलाने के लिए कभी हंसी ठिटोली कर लेते हैं तो कभी संग बैठकर घर परिवार की बाते पूछते हैं। मरीज बदलने के बाद उनके रिश्तेदार भी बदल जाते हैं। जो दूसरे आते हैं, वे उनका ख्याल रखने लगते हैं। आधा दर्जन ऐसे मरीज ऑर्थो विभाग में रह रहे हैं।

इन मरीजों की देखभाल करने वाले अपना श्रेय भी नहीं लेना चाहते। बस निस्स्वार्थ भाव से सेवा में लगे हैं।

'लावारिस मरीजों का ख्याल रखा जाता है। कुछ मरीज ठीक होने के बाद भी यहां बने रहते हैं। ऐसे लोगों के लिए सरकार स्तर से व्यवस्था होनी चाहिए।'

डॉ. आरके श्रीवास्तव, प्रभारी निदेशक, रिम्स।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.