खूंटी में पांव पसार रही समानांतर सरकार, पत्थलगड़ी के बाद अब कुटुंब परिवार
Jharkhand. यहां के लोग राष्ट्रपति व राज्यपाल को ही सिर्फ संवैधानिक पद मानते हैं। कोई भी फैसला नन ज्यूडिशियल स्टांप पर जारी करते हैं।
रांची, [दिलीप कुमार]। खूंटी जिले में पत्थलगड़ी के बाद अब एक नई विचारधारा तेजी से पांव पसार रही है। इसका नाम दिया गया है कुटुंब परिवार। इससे संबद्ध ग्रामीण खुद को आदिवासी भारत बताते हैं और कहते हैं कि वे आदि मानव हैं। वे खुद शासक हैं, इसलिए उनपर कोई शासन नहीं कर सकता है। ऐसे गांव के सभी लोगों के नाम के पहले एसी लिखा होता है। इसका मतलब वे बताते हैं कि एसी माने ईसा पूर्व।
दैनिक जागरण ने खूंटी के पोसेया तेलाईडीह व मरंगहादा के गुडबुरू गांवों में जब हकीकत का जायजा लिया तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। भोले-भाले आदिवासियों को कौन बरगला रहा इस पर वे चुप्पी साधे हैं, कहते हैं ज्यादा जानकारी चाहिए तो गुजरात जाओ। यहां के ग्रामीणों को सरकार का कोई पहचान नहीं चाहिए। उन्हें आधार कार्ड, राशन कार्ड, जॉब कार्ड, मतदाता पहचान पत्र नहीं चाहिए।
उनका कहना है कि उन्हें सरकार की कोई योजना नहीं चाहिए, क्योंकि वे राजा हैं। यही कारण है कि ग्रामीण एक-एक कर अपने सभी सरकारी दस्तावेज वापस करने लगे हैं। वे दस्तावेज भी वापस करने किसी मुख्यालय में नहीं जाते हैं, बल्कि एक लिफाफे में भरकर राज्यपाल के नाम पोस्ट कर देते हैं। खूंटी जिले में गांव के गांव सरकारी व्यवस्था का बहिष्कार करने लगे हैं।
इनका कहना है कि हम यहां के मूल निवासी हैं न कि भारतीय नागरिक। ब्यूरोक्रेट्स हमारे सेवादार हैं। हम सिर्फ राष्ट्रपति व राज्यपाल को ही मानते हैं। सिर्फ कुदरती रूलिंग व्यवस्था से संचालित होते हैं। केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार भारतीय ज्यूडिशियल व्यवस्था से संचालित होते हैं। भारतीय ज्यूडिशियल व्यवस्था के बनाए कानून एवं प्रमाण पत्र उनके किसी काम के नहीं, क्योंकि उनका कानून इससे अलग है।
कोई भी फैसला नन ज्यूडिशियल स्टांप पर करते हैं जारी
कुटुंब परिवार की विचारधारा वाले ग्रामीण प्रेस विज्ञप्ति से लेकर आदेश-निर्देश तक भी नन ज्यूडिशियल स्टांप पर जारी करते हैं। उनका कहना है कि पूरा भारत आदिवासी भारत है, इसके बाद ही कोई और है। वे आदि मानव हैं, इसलिए उन्हें दूसरा उनका सेवादार (डीसी-एसपी व प्रशासन) उनका प्रमाण पत्र कैसे बना सकता है।
खतियान ऑनलाइन शुरू होने के बाद से ही गहराया शक
उन्हें इस तरह की जानकारी किसने दी, इसपर ग्रामीण कुछ बताते नहीं हैं। कहते हैं कि उनकी जमीन के खाते ऑनलाइन होने और आधार से लिंक होने शुरू हुए तो उनका शक गहराया। इसके बाद जब उनलोगों ने आधार कार्ड पर पढ़ा कि उस पर आम आदमी का अधिकार लिखा है तो वे आक्रोशित हो गए। विरोध शुरू किया कि वे आम आदमी तो हैं नहीं।
ज्यादा जानना है तो गुजरात जाओ
कुटुंब परिवार की विचाराधारा पर सवाल करने पर ग्रामीण कहते हैं कि ज्यादा जानकारी लेनी है तो वे गुजरात चले जाएं। गुजरात में कुंवर केशरी हैं, जो इस संबंध में पूरी जानकारी देंगे। ग्रामीणों से बातचीत के बाद यही लगा कि गुजरात के इस कुंवर केशरी ने ग्रामीणों के मन-मस्तिष्क में एक नई विचारधारा को जन्म दे दिया है, जिससे हर युवा व बच्चा-बच्चा तक सरकारी व्यवस्था से बागी हो चुका है।