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सुनिए...श्री गौशाला का बोल: 100 वर्ष होने को आए पूछे न कोई मेरा हाल, कभी रंभाती थी गऊएं अब हालत बनी बदहाल

Palamu Shri Gaushala पलामू(Palamu) के जिला मुख्यालय मेदिनीनगर(Medininagar) स्थित श्री गौशाला(Shri Gaushala) की व्यथा कथा बेहद दयनीय है। भले ही इस गोशाला की उम्र सौ वर्ष पूरी होने वाली है। बावजूद इसकी बदहाली देखकर हर कोई दुखी हो जाता है।

By Sanjay KumarEdited By: Published: Wed, 08 Dec 2021 11:31 AM (IST)Updated: Wed, 08 Dec 2021 11:31 AM (IST)
सुनिए...श्री गौशाला का बोल: 100 वर्ष होने को आए पूछे न कोई मेरा हाल, कभी रंभाती थी गऊएं अब हालत बनी बदहाल
श्री गौशाला: 100 वर्ष होने को आए पूछे न कोई मेरा हाल, कभी रंभाती थी गऊएं अब हालत बनी बदहाल

पलामू (जासं)। Palamu Shri Gaushala: पलामू(Palamu) के जिला मुख्यालय मेदिनीनगर(Medininagar) स्थित श्री गौशाला(Shri Gaushala) की व्यथा कथा बेहद दयनीय है। भले ही इस गोशाला की उम्र सौ वर्ष पूरी होने वाली है। बावजूद इसकी बदहाली देखकर हर कोई दुखी हो जाता है। न‍िबंधन के अभाव में इसे कोई मदद नहीं म‍िल रही है। एक जमाने में यहां गायों की भरमार होती थी। गौ तस्करी में पकड़े गए मवेशी(Cattle) व लावारिस पशुधन(Unclaimed Livestock) को यहां जीवनदान म‍िलता था। आख‍िर ऐसी स्‍थ‍ित‍ि क्‍यों हैं, इसे बचाने के ल‍िए समाज आगे क्‍यों नहीं आ रहा है। सरकार मदद क्‍यों नहीं कर रही है। उनका भोजन-पानी कहां से आता है। गोशाला(Gaushala) की संपत्ति क‍ितनी है। इन तमाम बातों की पड़ताल करती गौशाला की व्यथा आधारित रपट।

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मैं पलामू का श्री गौशाला बोल रहा हूं..............

मैं पलामू का श्री गौशाला बोल रहा हूं। मेरी हालत बदतर और स्थिति बदहाल हो गई है। मेरे परिसर में उग आए झाड़- झंखाड़, कीचड़ भरा क्षेत्र प टूटे-फूटे जीर्ण शीर्ण कमरे मेरी उपेक्षा की कहानी कहते नजर आते हैं। कभी सैकड़ों पशुधन से गुलजार रहने वाला मेरा आंगन अब सुना सा रहने लगा है। सुबह शाम गउओं की रंभाने की आवाज अब नहीं सुनाई पड़ती। नन्हे मुन्हे बछड़ों की धमा- चौकड़ी देखने को मेरी आंखें तरसती है। 100 बरस होने को आए पर ऐसी स्थिति कभी नहीं देखी थी।

मेरा जन्म ब्रिटिश काल में 1925 में हुआ था। बारालोटा के तिवारी बंधुओं ने भूमि दान की थी। उस समय गौ सेवा लोग अपना धर्म समझते थे। दूध- दही की महत्ता थी। स्वाधीनता के दशकों बाद तक भी मेरी स्थिति सम्मानजनक रही। गौतस्करी में पकड़े गए, लावारिस व कृशकाय पशुधन मेरे यहां पनाह पाते थे। झारखंड बनने के बाद मेरी उपेक्षा का दौर शुरू हो गया। कई सरकारें आई-गई पर किसी ने मेरी और नहीं देखा।

सुना है प्रदेश में 27 गोशालाएं हैं। इसमें 20 को सरकार ने निबंधित कर लिया है। उन्हें सरकारी अनुदान भी मिलता है । 10.47एकड़ भूमि के बावजूद पता नहीं क्यूं मेरा निबंधन नहीं हो पा रहा है। शहर के धर्मभीरु युवाओं के समर्पण सेवा भाव से मेरे यहां के 16 गायों का का भरण पोषण हो रहा है। कुछ गोभक्त व समाजसेवी भी सहयोग करते हैं। अब देखें कब सरकार मुझ पर मेहरबान होती है।

गोवंश संरक्षण संवर्धन के लिए किसी से प्रत्यक्ष पहल नहीं:

गौशाला संचालन के लिए बकायदा एक कमेटी है। स्थानीय अनुमंडल पदाधिकारी पदेन अध्यक्ष होते हैं। कई लोगों की कमेटी से जुड़े होने के दावे प्रतिदावे भी हैं। गोसेवा के ढिंढोरे भी खूब पिटे जाते हैं। कई संस्थाएं गोपालन का दंभ भरती हैं। पलामू से कई लोग बड़े अधिकारी, विधायक मंत्री हुए पर सच यही है कि गोवंश संरक्षण संवर्धन के लिए स्थापित श्रीगौशाला के कल्याणार्थ किसी ने प्रत्यक्ष पहल नहीं की। आशा है 96 वर्ष की हमारी गौरशाली कृति का पताका पलामू में हमेशा फहराता रहेगा।


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