यहां चलता है ग्राम सभाओं का राज, सरकार को खुली चुनौती
यहां ग्राम सभाओं का राज चलता है। इन ग्राम सभाओं की अपनी व्यवस्था है।
किशोर झा, रांची। झारखंड का प्रमुख पर्यटन स्थल है दशम फॉल। राजधानी रांची से मुश्किल से 40 किलोमीटर दूर मनमोहक प्राकृतिक दृश्यों से भरपूर यह क्षेत्र कहने के लिए झारखंड का हिस्सा है, लेकिन यहां ग्राम सभाओं का राज चलता है। इन ग्राम सभाओं की अपनी व्यवस्था है। वे संविधान का हवाला देकर केंद्र और राज्य सरकार को शोषक करार देती हैं और अपने अलग साम्राज्य की घोषणा करती हैं। यह घोषणा सड़कों के किनारे और गांवों में जगह-जगह खुलेआम दर्जनों की संख्या में लगाए गए बड़े-बड़े पत्थरों में लिखित रूप में दर्ज है।
ये ग्राम सभाएं अपने कामकाज में अशोक चिह्न का उपयोग करते हुए खुद को इलाके का मालिक घोषित करती हैं। इलाके में टैक्स वसूलना, व्यवस्था बनाए रखना तथा सरकारी योजनाओं के बारे में फैसला लेने का काम पूरे दमखम से करती हैं। इसी क्रम में दशम फॉल जाने वाले वाहनों से बाकायदा टैक्स वसूलती हैं, जिसकी रसीद भी उन्हें दी जाती है। मजाल है पुलिस-प्रशासन समेत किसी सरकारी अधिकारी की जो उन पत्थरों को छूने या ग्राम सभा के प्रतिनिधियों को टैक्स वसूलने से रोकने की हिम्मत कर सकें।
रांची और खूंटी जिले के करीब 30 वर्ग किलोमीटर इलाके में पूरी तरह से ग्राम सभाओं का राज है। उन्हीं के प्रतिनिधि आने-जाने वाले पर्यटकों से जगह-जगह बैरिकेडिंग कर टैक्स की वसूली करते हैं। इलाके में कुछ विकास कार्यो और योजनाओं के बारे में लगे सरकारी बोर्ड के अलावा सरकार के होने या न होने के अस्तित्व की अनुभूति नहीं होती है। रोजाना बड़ी संख्या में दशम फॉल जाने वाले पर्यटक लौटते समय इसी उधेड़बुन में रहते हैं कि केंद्र और राज्य सरकारों के अंदर यहां यह कैसी सरकार है? यह स्थिति अचानक या नई नहीं बनी है। पिछले कई वर्षो से यह सब कुछ चल रहा है। ग्रामीण क्षेत्र के कई युवा संगठित रूप से सरकार और उसकी व्यवस्था को खुलेआम चुनौती दे रहे हैं। वे सरकार की अधिकतर योजनाओं सहित स्वतंत्रता दिवस एवं गणतंत्र दिवस का बहिष्कार करते हैं।
हिंदू धर्म से जुड़ी पूजा एवं प्रसाद को लेने पर रोक लगाते हैं और बदले में अपनी व्यवस्था देते हैं। वे इन सारे कार्यो को संगठित रूप में संविधान और कानून के अधिकार पर सही करार देते हैं। सिक्के का दूसरा पहलू यह भी है कि इलाके के कई लोग ग्राम सभा की इस परिकल्पना का विरोध करते हैं, लेकिन उनकी संख्या कम है और उन्हें किसी का समर्थन भी नहीं मिल पा रहा है। सरकारी अधिकारी और कर्मचारी भीगी बिल्ली बने नजर आते हैं। सब कुछ जानते हुए भी पूरी तरह से चुप्पी साधे रहते हैं।
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