चल रही डायलिसिस, फिर भी नहीं रुकती कक्षाएं
दृढ़ व मजबूत इच्छाशक्ति के साथ समाज के लिए कुछ बेहतर करने का जज्बा होना चाहिए। जिला स्कूल के प्राचार्य ऐसे हैं जिनकी प्रत्येक सप्ताह डायलिसिस होती है। लेकिन कक्षाएं नहीं रुकती है।
जागरण संवाददाता रांची : दृढ़ व मजबूत इच्छाशक्ति के साथ समाज के लिए कुछ बेहतर करने का जज्बा हो तो हम विपरीत परिस्थितियों में भी खुद को बेहतर साबित कर सकते हैं। जिला स्कूल, रांची के प्राचार्य आशुतोष कुमार सिंह पिछले तीन वर्षों से किडनी की समस्या से पीड़ित हैं। उनकी हर सप्ताह डायलिसिस होती है। इन सबके बावजूद वे कभी भी बीमारी की बात कह स्कूल से अनुपस्थित नहीं रहते हैं। कई बार ऐसा होता है जब अस्पताल में डायलिसिस के लिए उन्हें सुबह में समय दिया जाता है तो उस समय वे सीधे मना कर देते हैं। सुबह की जगह शाम में समय लेते हैं ताकि बच्चों के बीच रह सकें। उन्हें अपनी सेहत के चिंता कम और छात्रों के भविष्य की अधिक रहती है। आशुतोष कुमार स्कूल के बाद गरीब छात्रों को नि:शुल्क पढ़ाते भी हैं। कोरोना संक्रमण के दौर में भी छात्रों की पढ़ाई बाधित न हो इसके लिए स्वयं स्टडी मैटेरियल्स तैयार कर छात्रों को ऑनलाइन उपलब्ध कराते हैं। गंभीर बीमारी के बावजूद शिक्षा के प्रति इनके समर्पण के कारण ये छात्रों के साथ शिक्षकों में भी लोकप्रिय हैं।
पढ़ाने की भूख ने लौटा दी आवाज
जागरण संवाददाता, रांची : उनके बोलने की शक्ति चली गई थी, पर पढ़ाने की इच्छा शक्ति कम नहीं हुई। एक संकल्प लिया और दोबारा जिदगी जीने की मजबूत इच्छा शक्ति के साथ खड़ा हो उठे। दृढ़शक्ति की वजह से डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार और जियोलॉजी विभाग के एचओडी रह चुके डॉ. एन डी गोस्वामी अपनी खोई हुई आवाज को वापस पाया और दोबारा शिक्षा जगत में वापसी की। एक शिक्षक के तौर पर 42 साल का अनुभव रखने वाले डॉ एनडी गोस्वामी वर्ष 2009 में वोकल कोड में पारालाईटिकल अटैक के कारण अपनी आवाज खो बैठे थे। चिकित्सकों ने भी उम्मीद छोड़ दी थी, हाथ खड़े कर दिए थे। छात्रों को पढ़ाने की इच्छा शक्ति पाले गोस्वामी ने योग का सहारा लिया। बस थोड़े ही दिनों में उम्मीद की किरण जाग उठी। उनकी खोई हुई आवाज धीरे-धीरे वापस आने लगी। ठीक होते ही अपने एजेंडे पर लग गए। छात्रों के बीच पहुंचे और पढ़ाने लगे। हाल ही में डॉक्टर एनडी गोस्वामी विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त हुए हैं, लेकिन आज भी बच्चों को पढ़ाने के लिए निशुल्क सेवा देने को तैयार हैं। पढ़ाने की इनकी भूख कम नहीं हुई है।