एक गलती और फैसला अलहदा, महाराष्ट्र में नप गए तो झारखंड में बच गए... पढ़ें सत्ता के गलियारे का हाल
जिसपर हाकिम का हाथ उसे छेडऩे की किसकी बिसात? उधर महाराष्ट्र वाले जिस मामले में एक्शन हुआ उसमें दो लक्जरी गाडिय़ों का रजिस्ट्रेशन झारखंड का ही है।
रांची, [प्रदीप सिंह]। अपना झारखंड ऐसे ही मशहूर नहीं है। भले ही धरती इधर से उधर हो जाए, लेकिन इसकी चाल नहीं सुधरती। कभी कभार ग्रह-गोचर सुधरने के भी संकेत मिलते हैं तो यह खुशी ज्यादा दिन नहीं टिकती। हालिया वाकया इसे और समझने के लिए काफी है। हाकिम के इशारे पर हुजूर ने बस में ठूंस-ठूंसकर भिजवा दी खेप ठिकाने पर। शुरुआत में लगा कि हुजूर अब गये कि तब, लेकिन जिसपर हाकिम का हाथ, उसे छेडऩे की किसकी बिसात? बस बात आई और गुम हो गई। उधर ऐसे ही एक केस में महाराष्ट्र सरकार ने एक बड़े साहब को चलता कर दिया। उनकी गलती बस इतनी थी कि डेढ़ दर्जन लोगों को पांच गाडिय़ों में जाने का परमिशन दे दिया। वैसे यह भी संयोग कहिए कि इसमें भी झारखंड कनेक्शन है। महाराष्ट्र वाले जिस मामले में एक्शन हुआ उसमें दो लक्जरी गाडिय़ों का रजिस्ट्रेशन झारखंड का ही है।
नहीं टूटा वनवास
अब इसे किस्मत कनेक्शन कहिए या संयोग, ऐसा लगा कि लालबाबू का 14 साल का वनवास खत्म हो गया, लेकिन यहां भी कील कांटे कम नहीं हुए। लंबा अरसा लगा कमल थामने में। पहले काफी दिनों तक नकारा। बाद में खुद संकेत दे दिया कि घर वापसी के लिए औपचारिकता कैसी। लेकिन दुश्मनों को इनकी अदा अच्छी नहीं लगी। पहले विधानसभा में पेंच फंसाया। बड़ी मुश्किल से मामला संभलता दिखा तो कोरोना के कारण सबकुछ गड़बड़ हो गया। अब वैश्विक लॉकडाउन में न इधर के रहे न उधर के। एक जलने वाले ने सुर्रा छोड़ा है कि आसार अच्छे नहीं दिखते इनके। इस जहरीले शख्स की खासियत है कि किसी को छोड़ते नहीं और सामने पडऩे पर पांव छूने में तनिक देर भी नहीं लगाते। ऐसे लोगों के चरित्र को नारायण नहीं भांप सकते तो तुच्छ मानव की क्या बिसात? देखें कि लालबाबू का क्या होता है।
कोरोना में खींचतान
दुनिया के लिए भले यह आफत हो, लेकिन राजनीति में इसे मौका कहते हैं। सवा सौ साल वाली पार्टी को किस्मत से कुर्सी जरूर मिली है, लेकिन हर बात में टांग अड़ाने की आदत नहीं गई। इसी आदत ने तो आल आउट करा दिया है। वह तो भला हो तीर-कमान का, वरना दूर-दूर तक वापसी के आसार नहीं थे। इनका कंपीटिशन ऐसा है कि कौन किसका गर्दन कब उतार ले, पता ही नहीं चलता। लालबत्ती को अभी सौ दिन हुए हैं, लेकिन रफ्तार ऐसी है कि पूछो मत। सब एक से बढकर एक। पांव जमीन पर ही नहीं हैं। एक को हिदायत मिल गई है ऊपर से लिमिट में रहने की। तब से रफ्तार ढीली पड़ गई है। राजधानी छोड़कर दूसरे जिलों का भी रूख कर रहे हैं हाकिम। भरोसा दिलाया है कि कोई कितना भी उकसाए, मुंह नहीं खोलेंगे। देखिए वे कब तक चुप बैठते हैं।
विशेषज्ञ हैं साहब
इनकी विद्या-बुद्धि का कभी ठीक से इस्तेमाल ही नहीं हुआ। ये साहब नहीं, हम कहते हैं। हुजूर को कभी कुर्सी का प्रेम नहीं रहा। बस इसे माया-मोह से ज्यादा समझते भी नहीं। ज्ञान भी अपार है, लेकिन कभी घमंड नहीं किया कसम से। एक बार बनाया था पोस्ट रिटायरमेंट प्लान, लेकिन दुश्मनों की नजर लग गई। सारे किये-कराए पर पानी फिर गया। साहब ने फिर भी हार नहीं मानी। बगलबच्चों ने समझाया था कि बड़ी कुर्सी आपके लिए ही बनी है, लेकिन बात बनने के बजाय बिगड़ गई। साहब इससे भी निराश नहीं हुए। कोरोना काल में अब वायरस पर ज्ञान का अविरल प्रवाह कर रहे हैं। कोई किसी विषय पर बात करे, वह कोरोना के अलावा कोई चर्चा ही नहीं करते। साहब के इस ज्ञान की महिमा आजकल सचिवालय के गलियारे में खूब हो रही है। जान-पहचान वाले भी दूर से देखकर कन्नी काट लेते हैं।