Big Action: सहारा इंडिया पर एक लाख रुपये जुर्माना... 85 एकड़ जमीन पर दावा खारिज... झारखंड हाईकोर्ट ने की कार्रवाई
Sahara India Company News झारखंड हाईकोर्ट ने धनबाद में 85 एकड़ जमीन पर सहारा इंडिया के दावे को खारिज कर दिया है। इतना ही नहीं सहारा इंडिया पर एक लाख रुपये जुर्माना भी लगा दिया है। अदालत ने कहा कि अवैध तरीके से मामले को सहारा इंडिया ने लटकाया।
रांची, राज्य ब्यूरो। झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस गौतम चौधरी की अदालत ने धनबाद के रंगुनी मौजा के 85 एकड़ जमीन पर सहारा इंडिया के दावे को खारिज कर दिया है। अदालत ने मामले को अवैध तरीके से लंबित रखने के लिए सहारा इंडिया पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। साथ ही अदालत ने राज्य सरकार के भी उस जमीन पर दावे को खारिज करते हुए कहा कि उक्त जमीन प्रार्थी पाल ब्रदर्स की है। उक्त जमीन पर अशरफी अस्पताल बन गया है। सरकार ने वर्ष 2019 में 11 एकड़ जमीन अस्पताल की दी थी। अदालत ने अस्पताल को यह छूट देते हुए कहा है कि वह राज्य सरकार से क्षतिपूर्ति मांग सकते हैं। इस मामले में अदालत ने पूर्व में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
निचली अदालत के आदेश के खिलाफ अपील की थी
इस मामले में सहारा इंडिया की ओर से हाई कोर्ट में निचली अदालत के आदेश के खिलाफ अपील दाखिल की गई थी। सहारा इंडिया ने दावा किया कि उक्त जमीन वर्ष 2004 में निभाई चंद्र दत्ता सहित अन्य से खरीदी थी। इसलिए इस पर उनका हक था। इस बीच इस मामले में राज्य सरकार ने कहा था कि उक्त जमीन गैराबाद (सरकारी) जमीन है। वर्ष 2019 में राज्य सरकार ने अशरफी अस्पताल को 11 जमीन दे दी। पाल ब्रदर्स की ओर से अधिवक्ता लुकेश कुमार ने अदालत को बताया कि वर्ष 1925 और 1931 में 85 एकड़ जमीन मोरगेज शूट के बाद खरीदा था। इस बीच वर्ष 2004 में उक्त जमीन के साथ-साथ अन्य संपत्ति को दत्ता परिवार ने सहारा इंडिया व अन्य को बेच दिया। इसके बाद पाल ब्रदर्स ने निचली अदालत में टाइटल शूट दाखिल किया। जहां से उनके पक्ष में फैसला आया। इसके बाद सहारा इंडिया हाई कोर्ट में अपील दाखिल की। इस मामले में अदालत ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि उक्त जमीन न तो सहारा इंडिया की और न ही राज्य सरकार की है। इसपर मालिकाना हक पाल ब्रदर्स का है।
सभी महिलाओं को मिलेगा मातृत्व अवकाश
उधर, झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस डा. एसएन पाठक की अदालत में मातृत्व अवकाश के दौरान मानदेय नहीं देने के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई हुई। सुनवाई के बाद अदालत ने माना कि मातृत्व अवकाश सभी कामकाजी महिलाओं के लिए लिए है, इसलिए प्रार्थी को उक्त समय के मानदेय का भुगतान सरकार करे। अदालत ने प्रार्थी को ब्याज के साथ 3.48 लाख रुपये भुगतान करने का आदेश दिया है। इसके बाद अदालत ने याचिका को निष्पादित कर दिया। इस संबंध में मोनिका देवी ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की है। सुनवाई के दौरान प्रार्थी के अधिवक्ता राधाकृष्ण गुप्ता और पिंकी साव ने अदालत को बताया कि प्रार्थी देवघर के समाज कल्याण विभाग में महिला पर्यवेक्षिका के पद पर कार्यरत हैं। वह छह मार्च 2018 से 18 अगस्त 2018 और फिर एक जनवरी 2021 से 13 जून 2021 तक मातृत्व अवकाश पर थीं। इस दौरान उन्हें मातृत्व अवकाश का मानदेय नहीं दिया गया। उनकी ओर से सुप्रीम कोर्ट के नगर निगम दिल्ली बनाम महिला वर्क के केस में पारित आदेश का हवाला दिया गया। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मातृत्व अवकाश अधिनियम 1961 की धारा (पांच) में सभी तरह की काम करने वाली महिलाओं को मातृत्व अवकाश का लाभ मिलेगा। इस पर अदालत ने प्रार्थी की बहस को स्वीकार करते हुए मातृत्व अवकाश के दौरान बकाया भुगतान करने का आदेश दिया है।