पागल नहीं हूं, बस अपनों ने साथ छोड़ दिया; घरवालों के बाद अब रिम्स ने भी मुंह मोड़ा
Jharkhand. रिम्स के ऑथोपेडिक वार्ड के कॉरिडोर में बेबस लाचार बीमार पड़े रघु विश्वकर्मा कहते हैं कि हड्डी में दर्द का इलाज कराने के लिए सामाजिक संस्था ने एंबुलेंस से रिम्स पहुंचाया था।
रांची, अमन मिश्रा। रिम्स के ऑर्थोपेडिक विभाग का कॉरिडोर लावारिसों का ठिकाना बन चुका है। ये रिम्स में भर्ती कराए गए थे ताकि इलाज हो सके। लेकिन अब बगैर इलाज के वे कॉरिडोर में पड़े रहते हैं। कई तो समय की मार से विक्षिप्त हो गए हैं। वार्ड के कॉरिडोर में पड़े लावारिस जब पास से गुजर रहे लोगों से खाना मांगते हैं तो उन्हें पागल कहा जाता है। ऐसे ही एक लावारिस को जब लोगों ने पागल कहा तो वह झल्ला उठा। कहा-पागल नहीं हूं, अपनों का साथ छूटने से यह हाल हो गया है।
रघु विश्वकर्मा की उम्र 60 वर्ष हो चुकी है। उसने बताया कि वह अपने परिवार के साथ रातू रोड के चूना भट्टा स्थित घर में रहता था। रांची में 20 साल से ज्यादा समय से रह रहा है। कुछ साल पहले उसके परिजन उसे अकेला छोड़कर कहीं और जाकर बस गए। खाने-पीने का कोई माध्यम नहीं होने के कारण वह सड़कों पर धूमने लगा। महीने भर पहले किसी सामाजिक संस्था ने उसे इलाज कराने की बात कहकर एंबुलेंस से रिम्स में लाकर पर्ची कटाकर छोड़ दिया। वार्ड में जगह नहीं मिलने के कारण यहां बाहर कॉरिडोर में ही पड़ा रहा। देखभाल करने वाला नहीं रहने के कारण रघु विश्वकर्मा लावारिस बन गया।
कभी किसी डॉक्टर ने नहीं देखा
रघु ने बताया कि जब से वह रिम्स पहुंचा तब से उसे किसी डॉक्टर ने एक बार भी नहीं देखा। रघु की हड्डियों में दर्द रहता है। इसलिए उसे चलने-फिरने में परेशानी होती है। 10 दिन पहले इस हाल में देखकर एक आदमी ने उसका नाम पूछकर इलाज कराने की बात कही थी। लेकिन वह व्यक्ति दोबारा नहीं आया।
गंदगी के कारण कोई नहीं जाता नजदीक
रिम्स के कॉरिडोर में कई लावारिस पड़े हैं। उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है। बीमार हैं। दर्द से परेशान हैैं। लाचार हैैं। एक जगह से दूसरी जगह नहीं जा पाते। गंदगी व बदबू के कारण कोई उनके पास जाना नहीं चाहता। गंदगी में पड़ा देख इन्हें विक्षिप्त समझते हैैं लेकिन कोई इनके हाल को समझना नहीं चाहता।