नक्सलियों में कोरोना का खौफ, अपने कैंप के आसपास वाले घरों को बनाया आइसोलेशन सेंटर
कोरोना संक्रमण के दौर में आम नागरिकों के साथ-साथ नक्सली संगठन बीमारी से बचने के लिए पूरी सावधानी बरत रहे हैं। संक्रमण से बचाव के लिए नक्सलियों ने अपना आइसोलेशन सेंटर तैयार कर लिया है। जंगल झाड़ियों के बीच कैंपों के आसपास के घरों को आइसोलेशन सेंटर में बदल दिया।
रांची [फहीम अख्तर] । कोरोना संक्रमण के दौर में आम नागरिकों के साथ-साथ नक्सली संगठन बीमारी से बचने के लिए पूरी सावधानी बरत रहे हैं। संक्रमण से बचाव के लिए नक्सलियों ने अपना आइसोलेशन सेंटर तैयार कर लिया है। जंगल झाड़ियों के बीच स्थित कैंपों के आसपास के घरों को आइसोलेशन सेंटर में बदल दिया गया है। इन सेंटरों में पर्याप्त मात्रा में दवाएं और बचाव के सभी जरूरी संसाधनों के इंतजाम किए गए हैं। नक्सलियों की पहली प्राथमिकता है कि वह कोरोना संक्रमण से बचे रहें। कोरोना संक्रमित होने की स्थिति में उन्हें अस्पताल जाना पड़ेगा। अस्पताल में भर्ती होने पर पुलिस के हत्थे चढ़ने का खतरा कहीं अधिक बढ़ जाएगा।
संक्रमण की आशंका को देखते हुए शहर और गांवों के संपर्क में रहने वाले दस्ते के सदस्य अलग-अलग चक्र में क्वारंटाइन नियमों का पालन कर रहे हैं। दस्ते के बीच पहले एक थाली में खाना, एक दूसरे के कपड़े पहनना आम बात थी। अब खाने में अलग थाली, नहाने वाला साबुन और कपड़े भी अलग कर लिया है। इसके साथ ही पर्याप्त मात्रा में सैनिटाइजर और मास्क मंगाकर रखे गए हैं। कैंपों के आसपास वाले घरों में बने आइसोलेट सेंटर की सुरक्षा की जवाबदेही गांव के लोगों को दी गई है। लिहाजा अब तक सुरक्षा बलों की ओर से कहीं भी छापेमारी नहीं हो सकी है। सुरक्षा एजेंसियों के पास इस बात की पक्की सूचना है कि उग्रवादी महामारी की चुनौती से निपटने के लिए अलर्ट मोड पर हैं।
कैंप से बाहर जाने वाले किए जा रहे क्वारंटाइन
नक्सली क्वारंटाइन नियमों का पूरा पालन कर रहे हैं। इन दिनों नक्सलियों ने अलग-अलग दस्ता बनाकर अलग-अलग कामों को बांट लिया है। किसी दस्ते का काम लेवी वसूलना है, किसी दस्ते का काम फोन करना, तो किसी दस्ते का काम स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराना है। जिस दस्ते के जिम्मे कैंप से बाहर निकलकर लेवी वसूली का है उसके लौटने के बाद उसे 14 दिनों तक के लिए क्वारंटाइन किया जा रहा है। दूसरी बार निकलने के लिए अलग दस्ते को लगाया जा रहा है। इस नियमित प्रक्रिया से नक्सली अपना सिस्टम चला रहे हैं। जहां नक्सलियों ने अपना आइसोलेशन सेंटर बनाया है वहां स्थानीय लोग भी नियमित रूप से सामान्य तौर पर रह रहे हैं। ताकि नक्सलियों के बारे किसी को पता ना चल पाए। स्थानीय लोगों की मदद से कोरोना से बचाव में उपयोग की जाने वाली सामग्रियों को मंगवाया जा रहा है। हालांकि संबंधित जगहों पर पुलिस की पहुंच नहीं हो पा रही है।
बड़े नक्सली सुरक्षित ठिकानों पर, छोटे नक्सलियों को बचने का निर्देश
इस संक्रमण के दौर में बड़े नक्सली अब भी अपने सुरक्षित ठिकानों पर हैं। वे टेलिफोनिक संपर्क और अपने अर्थ तंत्र के सिस्टम से ही लेवी वसूली के पैसे मंगवा रहे हैं। जबकि बड़े नक्सलियों ने एरिया कमांडर और उससे नीचे स्तर के नक्सलियों को संक्रमण से बचाव केहर नियमों का अनुपालन करने का निर्देश दिया है। अपने आलाकमान के निर्देशों के अनुसार सभी नक्सली संक्रमण से बचाव का अनुपालन कर रहे हैं। खुद को आइसोलेट करने का भी सिस्टम बना लिया है।
रिकॉर्ड में न आ जाएं, इसलिए कोविड-19 टेस्ट से बच रहे नक्सली
नक्सलियों में कोरोना के थोड़े भी लक्षण दिखाई देने पर वे टेस्ट कराने से बच रहे हैं। किसी भी हाल में वह अपना कोविड-19 टेस्ट नहीं करवाना चाहते। क्योंकि नक्सलियों को डर है कि कोरोना टेस्ट करवाने पर उनके रिकॉर्ड पुलिस तक पहुंच जाएगी और वह पकड़े जा सकते हैं। इसलिए कोरोना संक्रमण के थोड़े भी लक्षण दिखाई देने पर खुद को आइसोलेट कर अपना इलाज कर रहे हैं। इलाज में अपने संपर्क के डॉक्टरों और रूरल मेडिकल प्रैक्टिशनर्स (आरएमपी) से भी परामर्श ले रहे हैं। चूंकि शुरुआत से ही ये नक्सली आरएमपी के भरोसे ही सामान्य बीमारियों का इलाज कराते रहे हैं।
रांची जिले से सटे बॉर्डर इलाके और नक्सल प्रभावित इलाकों में नक्सलियों की हर गतिविधियों पर नजर रखी जा रही है। सूचनाएं मिलने पर सर्च ऑपरेशन चलाया जा रहा है। फिलहाल आसूचनाएं संकलित की जा रही है। - नौशाद आलम, ग्रामीण एसपी रांची।