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जाति की राजनीति के दिन लदे, अब राष्ट्रवाद व विकास की होगी बात

रांची अब जाति की राजनीति करनेवाले मुंह की खाएंगे। यह वक्त है क्लास की राजनीति का यह बातें रांची विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. सुरेंद्र पांडेय ने कही।

By JagranEdited By: Published: Tue, 28 May 2019 05:45 AM (IST)Updated: Tue, 28 May 2019 06:34 AM (IST)
जाति की राजनीति के दिन लदे, अब राष्ट्रवाद व विकास की होगी बात
जाति की राजनीति के दिन लदे, अब राष्ट्रवाद व विकास की होगी बात

बिनीत भारती, रांची : अब जाति की राजनीति करनेवाले मुंह की खाएंगे। यह वक्त है क्लास की राजनीति का। देश जाति, धर्म की राजनीति से आगे विकासवाद व राष्ट्रवाद की ओर बढ़ चला है। इसे हम सांप्रदायिक राजनीति का अंतिम दौर भी कह सकते हैं। अब देश में राष्ट्रवाद सर्वोपरि है। ये बातें दैनिक जागरण कार्यालय में सोमवार को आयोजित जागरण विमर्श के दौरान रांची विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष सुरेंद्र पांडे ने कही। उन्होंने कहा कि देश का मूड व मिजाज बदल रहा है। अब राष्ट्रवाद सर्वोपरि है। 2014 से शुरू हुआ सफर 2019 आते-आते जातिवाद से ऊपर उठकर विकासवाद तक आ पहुंचा है। लोग अब जाति की नहीं विकास की बातें करने लगे हैं। इस समय विकासवाद जातिवाद पर पूरी तरह हावी है। और आने वाले 20 सालों तक इसका असर रहेगा। सत्ता में हिस्सेदारी के लिए शुरू हुई थी जाति आधारित राजनीति : उन्होंने कहा कि पहले सत्ता में हिस्सेदारी के लिए जाति की राजनीति शुरू हुई। इसके लिए आरक्षण व्यवस्था को लाया गया ताकि एससी-एसटी समुदाय के लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाया जा सके। इसके बाद से ही जाति की राजनीति ने जोर पकड़ना शुरू किया। दक्षिण भारत से होते हुए उतर व पूर्व की ओर आ पहुंचा। दलित जातियों की सत्ता में भागीदारी के लिए राजनीति तेज होती चली गई। 1921 में ब्राह्माणों के वर्चस्व को खत्म करने के लिए पेरियार में आंदोलन की शुरुआत हुई। एससी-एसटी के लोगों व ब्राह्माणों में टकराव हुए। इसके बाद यहां की राजनीति पूरी तरह बदल गई। धीरे-धीरे इस राजनीति पश्चिम भारत को अपने चपेट में ले लिया। यहां डॉ. भीमराव आंबेडकर ने दलितों के लिए आरक्षण व्यवस्था की आवाज को बुलंद किया। राजनीति में भागीदारी की बात की। इसके बाद यूपी में बसपा के संस्थापक कांशी राम ने इस अभियान को आगे बढ़ाया। तबतक बिहार व अन्य प्रदेशों में आरक्षण की मांग जोर पकड़ रही थी। राजनीतिक लाभ लेने के लिए जातियों की राजनीति शुरू हो गई। विकास पीछे छूट गया। लेकिन 2014 के बाद स्थितियां बदलने लगी जो 2019 तक आते आते पूरी तरह बदल गई। यह एक टर्निग प्वाइंट है। यहां से देश की दशा और दिशा दोनों बदलने वाली है। आनेवाले 20 सालों तक भाजपा का राष्ट्रवाद और विकासवाद हावी रहेगा। तेजी से आया विचारों में बदलाव : सुरेंद्र पांडे ने कहा कि पिछले एक दशक में विचारों में काफी बदलाव आया है। युवाओं में राजनीतिक चेतना पहले से परिपक्व हुई है। अब जाति की जगह विकास ने ले लिया है। अब जाति की राजनीति से ऊपर उठकर विकास की बात हो रही है।

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