झारखंड सरकार ने कहा, सभी शिक्षकों को एकसमान वेतनमान व्यावहारिक नहीं
राज्य सरकार ने प्रस्तावित राष्ट्रीय शिक्षा नीति में सभी स्तरों के शिक्षकों को एकसमान वेतन व्यावहारिक नहीं है।
राची । राज्य सरकार ने प्रस्तावित राष्ट्रीय शिक्षा नीति में सभी स्तरों के शिक्षकों को एकसमान वेतनमान देने को अव्यावहारिक बताया है। केंद्र को सौंपे गए अपने सुझाव में राज्य सरकार ने कहा है कि प्रस्तावित नीति में कक्षा एक से बारह तक के सभी स्तर के शिक्षकों को एक समान वेतनमान देने का प्रावधान है, जो कई दृष्टिकोण से व्यावहारिक प्रतीत नहीं होता है।
राज्य सरकार ने प्रदेश में अलग-अलग स्तरों के शिक्षकों के लिए अलग-अलग शैक्षणिक अर्हता निर्धारित होने का हवाला देते हुए कहा है कि एकसमान वेतनमान लागू होने से उच्च स्तर पर कार्यरत उच्च योग्यताधारी शिक्षकों में अनावश्यक रूप से असंतोष उत्पन्न होगा। यह भी बताया है कि झारखंड मेंविभिन्न श्रेणी के शिक्षकों के लिए अलग-अलग वेतनमान निर्धारित है, इसलिए वर्तमान व्यवस्था को बनाए रखना ही श्रेयस्कर है। राज्य सरकार ने अपने सुझाव में डेमोस्ट्रेशन तथा साक्षात्कार से शिक्षकों की नियुक्ति के प्रावधान राष्ट्रीय शिक्षा नीति में होने की सराहना की है। नियुक्ति में इसे अनिवार्य करने की वकालत भी की है।
एसएमसी नहीं कर सकती शिक्षकों का मूल्यांकन :
राज्य सरकार ने अपने सुझाव में यह भी कहा है कि विद्यालय प्रबंधन समिति (एसएमसी) शिक्षकों के कार्यो का मूल्यांकन नहीं कर सकती, क्योंकि समितियों के पास इस स्तर की क्षमता वर्तमान में नहीं है। प्रस्तावित शिक्षा नीति में शिक्षकों के कार्यो का मूल्यांकन विद्यालय प्रबंधन समिति से कराए जाने का प्रावधान है। राज्य सरकार ने सुझाव दिया है कि राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) शिक्षकों के मूल्यांकन को लेकर एक मानक तैयार करे, जो पारदर्शी और वस्तुनिष्ठ हो। शिक्षक स्वमूल्यांकन कर सकें, इसकी व्यवस्था हो।
हालांकि, सुझाव में यह भी कहा गया है कि विद्यालय प्रबंधन समितियों की क्षमता के विकास पर कार्य हो, ताकि वे शिक्षकों के मूल्यांकन का दायित्व निभा सकें।
अच्छे शिक्षकों का अभाव, नहीं भर पाते पद :
राज्य सरकार ने अपने सुझाव में यह भी कहा है कि राज्य में योग्य शिक्षकों का अभाव है। इस कारण नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने के बाद लगभग 50 फीसद पद नहीं भर पाते। कुल बजट की 16 फीसद राशि शिक्षा पर खर्च करने के बावजूद शिक्षकों के पद बड़ी संख्या में रिक्त हैं।
स्कूलों में छह मासिक परीक्षा संभव नहीं :
राज्य सरकार के अनुसार, 42 लाख बच्चों के लिए छह मासिक परीक्षा का आयोजन एवं प्रबंधन केंद्रीयकृत रूप से करना संभव नहीं है। इसी तरह, सेमेस्टर सिस्टम को लागू करना भी व्यावहारिक नहीं है। उच्च माध्यमिक स्तर पर 24 विषयों में पठन-पाठन का प्रस्ताव प्रासंगिक नहीं है तथा वर्तमान च्वाइस बेस्ड मॉडल ही बेहतर विकल्प है। इससे विद्यार्थियों पर अनावश्यक बोझ नहीं पड़ेगा। प्रस्तावित नीति में कक्षा तीन, पांच एवं आठ के स्तर पर प्रत्येक छह माह पर केंद्रीयकृत परीक्षा का प्रावधान किया गया है।
राज्य सरकार ने ये सुझाव भी दिए
- मिड डे मील में ब्रेकफास्ट वैकल्पिक हो तथा इसे ग्रामीण क्षेत्रों में ही लागू किया जाए।
- स्कूलिंग प्रोग्राम में हेल्थ प्रोग्राम भी लागू हो।
- झारखंड जैसे जनजातीय बहुल राज्य में बहुभाषी शिक्षा नीति लागू हो।
- 'साक्षर भारत' कार्यक्रम फिर से शुरू हो।