नवजात बच्चों की रुके हत्या, हर मामले थाने में किए जाएं दर्ज
समाज में भ्रूण हत्या पर कथित रोक के बाद पनपी नवजात बच्चों की हत्या संबंधित मुद्दे पर रांची में परिचर्चा का आयोजन किया गया।
By Edited By: Published: Wed, 13 Mar 2019 06:42 AM (IST)Updated: Wed, 13 Mar 2019 06:45 AM (IST)
रांची : समाज में भू्रण हत्या पर कथित रोक के बाद पनपी नवजात बच्चों की हत्या संबंधित मुद्दे पर पा-लो-ना और सिटिजंस फाउंडेशंस के संयुक्त तत्वावधान में मंगलवार को एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। इसी कड़ी में पहली बार ओवरब्रिज स्थित सिटिजंस फाउंडेशन के कार्यालय में शिशु हत्या और शिशु परित्याग के कानूनी पक्षों पर जानकारों ने अपनी राय रखी। इस पर रोक लगाने की आवाज बुलंद भी हुई। इस जघन्य अपराध पर थानों में मामले दर्ज कर दोषियों को सजा दिलाने और नवजातों की जिंदगी बचाने का संकल्प भी लिया गया। इस दौरान आइसीपीएस (इंटीग्रेटेड चाइल्ड प्रोटेक्शन स्कीम) के डायरेक्टर डीके सक्सेना ने कहा कि हमारा मौजूदा सिस्टम शिशु हत्या और परित्याग को रोकने के लिए कितना सक्षम है, हम उसका बेहतर इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं, इस लड़ाई में हमारे स्टेकहोल्डर्स कौन-कौन हो सकते हैं, ये तय करना जरूरी है। सक्सेना ने इस विषय पर काम करने, इसे खंगालने के प्रति प्रतिबद्धता जाहिर की। इससे पूर्व चर्चा की शुरूआत दिवंगत वरिष्ठ पत्रकारों ललित मुर्मू और पुष्पगीत की आत्मा की शाति के लिए दो मिनट का मौन रखकर की गई। पा-लो-ना की फाउंडर मोनिका गुंजन आर्य ने शिशु हत्या और परित्याग के विभिन्न पक्षों, विशेषकर कानूनी पहलुओं, पा-लो-ना मुहिम, इसकी गतिविधियों, इसके परिणामस्वरूप आए बदलावों के बारे में विस्तार से प्रकाश डाला। ज्वलंत मुद्दा है शिशु परित्याग : झारखंड राज्य बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष आरती कुजूर ने कहा कि शिशु परित्याग ज्वलंत मुद्दा है। इस गंभीर विषय पर काम करने के लिए आयोग हर तरह से साथ है। खाद्य आयोग से जुड़ीं रंजन चौधरी ने कहा कि बच्चों को त्यागने वाले माता-पिता की जिम्मेदारी और जवाबदेही तय करनी होगी, उन्हें छोड़ देना सही नहीं है। बाल शाखा की ओर से कार्यक्रम में भाग लेने के लिए पीयूष सेनगुप्ता ने पुलिस के द्वारा एफआइआर दर्ज करने में होने वाले आनाकानी को लेकर जानकारी दी और जेजे एक्ट के सेक्शन 38 (1) में संशोधन की जरूरत पर बल दिया। कार्यक्रम के दौरान वरिष्ठ पत्रकार कृष्ण बिहारी मिश्रा ने कहा कि पा-लो ना द्वारा एकत्रित आकड़ों से पता चलता है कि शिशु परित्याग के मूल में केवल जेंडर नहीं है, बल्कि ये खतरा लड़कों पर भी मंडरा रहा है। परिचर्चा के दौरान उपस्थित अतिथियों के द्वारा कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए गए। इस समस्या के निदान को लेकर एक प्रपोजल तैयार कर सरकार को सौंपा जाएगा, यह भी सहमति बनी। मोनिका आर्य ने कहा कि उनका मकसद इस गंभीर समस्या को लेकर विभिन्न स्टेकहोल्डर्स को एक मंच पर लाना था, अब आगे इसे सिस्टम को संभालना होगा। डॉ सुनीता यादव ने सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम में बाल कल्याण समिति सदस्य श्रीकात, तनुश्री सरकार, साहित्यकार संगीता कुजारा टाक, एडवोकेट रेणुका त्रिवेदी, रश्मि साहा, पूर्व सीडब्लूसी सदस्य त्रिभुवन शर्मा, राजा दुबे, सीता स्वासी, आदि ने भी विचार रखे। इसे सफल बनाने में प्रोजेश दास, प्रशात कुमार झा, अमित कुमार, अतुल, अभिलाषा, अनमोल, प्रभजोत कौर का विशेष योगदान रहा।
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