मौसमी खाएं, ये है इंम्युनिटी का बूस्टर डोज
राची देश में कोरोना वायरस के संक्रमण के मामले लगातार बढ़ते जा रहे
जागरण संवाददाता, राची : देश में कोरोना वायरस के संक्रमण के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे समय में इम्युन सिस्टम मजबूत होना बेहद जरूरी है। इसके लिए स्वस्थ जीवनशैली के साथ-साथ उचित खानपान का ध्यान रखना भी बेहद जरूरी है। ऐसे में चिकित्सक इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए मौसमी फल खाने की सलाह दे रहे हैं। नींबू प्रजाति का यह फल नींबू से कई गुणा अधिक फायदेमंद है। इस फल में अपेक्षाकृत शुगर कम होती है साथ ही यह विटामिन सी से भरपूर है। विटामिन सी हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में त्वरित व सक्रिय योगदान करता है। चिकित्सकों की सलाह है कि मौसमी या मोसम्मी का जूस लेने के बजाय, उसे खाना ज्यादा बेहतर रहता है। यूं तो विटामिन सी की मौजूदगी हमारे शरीर में कम समय तक रहती है। वहीं मौसमी की खासियत ये है कि इसमें उपलब्ध विटामिन सी की खासियत यह है कि वह शरीर में पर्याप्त समय तक उपस्थित रहता है और शरीर उसे अच्छी तरह से अवशोषित कर लेता है। इसके साथ ही इस फल में मौजूद फाइबर भी हमारे शरीर के लिए बेहद उपयोगी होता है। रोग प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाने के साथ ही मौसमी सास के रोग, दात के रोग, पित्त, विकार, अत्यधिक प्यास, दस्त, मूत्र रोग, मुहासे से छुटकारा आदि में उपयोगी होता है। थोक बाजार में कीमत 500-600 रुपये किलो
अभी थोक बाजार में मौसमी की कीमत 500 से 600 रुपये के बीच है। एक कैरेट में 18 से 19 किलो मौसमी आती हैं। खुदरा बाजार में यह 60 से 70 रुपये किलो की दर पर मिल रहा है। हरमू मंडी के फल व्यवसायी मो शहजाद ने बताया कि अभी मौसमी का सीजन चल रहा है। राची के बाजार में आध्रप्रदेश व तेलंगाना से मौसमी की आवक हो रही है। -------
श्वेत रक्त कोशिकाएं यानी व्हाइट ब्लड सेल्स आपके शरीर को सामान्य संक्रमणों और बीमारियों से बचाने के लिए जानी जाती है, लेकिन शरीर खुद इनका उत्पादन नहीं कर पाता है। विटामिन सी को सफेद रक्त कोशिकाओं के उत्पादन को बढ़ाने के लिए कारगर माना जाता है। विटामिन सी का सेवन बढ़ाने के लिए रोजाना खट्टे फल जैसे मौसमी या मौसम्मी का सेवन करना सेहत के लिए काफी फायदेमंद होता है। यह शरीर की इम्यूनिटी बूस्टअप में काफी मदद करता है। अगर कमजोर इंसान या मरीज इसे खाने में सक्षम नहीं है तो इसका जूस भी उनके लिए फायदेमंद है। इसमें विटामिन सी की मात्रा काफी ज्यादा होती है।
-डॉ अर्पिता रॉय, चिकित्सक, रिम्स।