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मोबाइल और इंटरनेट बना रहा मानसिक बीमार

इन दिनों बच्चों और युवाओं में इंटरनेट और मोबाइल गेमिंग का खास क्रेज है। पर यह खतरनाक बनता जा रहा है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 19 Feb 2020 09:25 PM (IST)Updated: Wed, 19 Feb 2020 09:25 PM (IST)
मोबाइल और इंटरनेट बना रहा मानसिक बीमार
मोबाइल और इंटरनेट बना रहा मानसिक बीमार

जागरण संवाददाता, रांची : इन दिनों बच्चों और युवाओं में इंटरनेट और मोबाइल गेमिंग का खास क्रेज है। छोटे बच्चे भी मोबाइल और इंटरनेट की लत से बच नहीं पा रहे हैं। इंटरनेट पर कई ऐसे एप हैं जो युवाओं को अपनी पसंद की गेम और फनी वीडियो देखने का प्लेटफॉम देती हैं। वहीं कुछ ऐसे एप हैं जहां वो खुद अपना आकर्षक वीडियो बना सकते हैं। आज कई ऐसे युवा हैं जो इन वीडियो प्लेटफॉर्म पर अपना वीडियो बनाकर सेलिब्रिटी फेम पा चुके हैं। वहीं कुछ युवा और बच्चे इसकी लत में फंसकर अपनी जान तक गवां चुके हैं। इंटरनेट पर कई ऐसे गेम और चैलेंज है, जो आपको घातक टास्क करने के लिए प्रेरित करते हैं। मोबाइल गेमिंग बिगाड़ रहा दिमाग का संतुलन-

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लोग अपने बच्चों को आसानी से मोबाइल खेलने के लिए दे देते हैं। इससे बच्चे भी एक जगह बैठकर आराम से इंटरनेट पर वीडियो या गेम खेलते रहते हैं। यही नहीं युवाओं में भी गेमिंग काफी लोकप्रिय है। मगर उन्हें इस बात का पता ही नहीं चलता कि कब वो इंटरनेट और गेमिंग के लत के शिकार हो गए। पिछले कुछ सालों में मोबाइल गेमिंग और इंटरनेट की लत के शिकार बच्चों और युवाओं में मानसिक बीमारी एक महामारी के रूप में उभरी है। रिनपास के पूर्व मनोचिकित्सक डॉ एके नाग बताते हैं कि इंटरनेट और गेमिंग की लत एक नशे की तरह है जो युवाओं को अपना गुलाम बना रही है। कई ऐसे गेम हैं जो ऊंचाई से कूदकर अपना सिर जमीन से टकराने के लिए कहते हैं। ऐसे में ज्यादातर केस में मौत संभव होती है। ऑनलाइन शॉपिंग भी है घातक-

ऑनलाइन स्टोर पर पहले साल में एक-दो बार मिलने वाले डिस्काउंट अब हमेशा मिलते हैं। ऐसे में ये ग्राहकों को अपनी तरफ आकर्षित कर रही है। ऐसे लोगों की संख्या भी अच्छी खासी है जिनके लिए ऑनलाइन शॉपिंग करना एक आदत या लत बन चुकी है। एक रिसर्च में पाया गया है कि ऑनलाइन शॉपिंग की यही लत एक तरह की मानसिक बीमारी है। इस बीमारी को बायइंग शॉपिंग डिसऑर्डर (बीएसडी) कहते हैं।

03 में एक बच्चा साइबर बुलिंग का शिकार हो रहा है स्कूल से जारी हो रहे हैं अलर्ट-

कई ऐसे बच्चें हैं जो स्कूल में भी मोबाइल लेकर जाते हैं। ऐसे बच्चे अपने साथ दूसरे बच्चों को भी प्रभावित करते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक हर तीन में से एक बच्चा साइबर बुलिंग का शिकार होता है। ऐसे में स्कूल के द्वारा अभिभावकों को लगातार इसके लिए अलर्ट मेसेज भेजा जा रहा है। कुछ स्कूल ऐसे भी हैं जहां क्लास में मोबाइल लेकर आने पर बच्चों पर कड़ी कार्यवाई की जाती है। एप पर परोस रही अश्लीलता-

मोबाइल पर कई ऐसे एप हैं जहां पर केवल अश्लीलता ही परोसी जा रही है। जिसका इस्तेमाल 18 साल से कम उम्र के बच्चे कर रहे हैं। कुछ वीडियो एप जैसे टिक टॉक और विवाइड को डाउनलोड करके उसके यूजर की उम्र कंर्फम की जाती है। मगर इसके बाद भी इसे बच्चे आसानी से इस्तेमाल कर रहे हैं। इसका असर सीधे बच्चों की मानसिकता पर पड़ता है। ऐसे में वो एक मानसिक बीमारी साइकोसिस का शिकार हो रहे हैं। जिसमें बच्चे अपनी वास्तविक दुनिया से दूर होते चले जाते हैं। इसके साथ ही उनका व्यवहार भी आक्रामक होता चला जाता है।

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बच्चों के साथ युवा इंटरनेट और एप के शिकार हो रहे हैं। इससे बच्चे जहां बुलिंग के शिकार हो रहे हैं। वहीं युवाओं के साथ ठगी के मामले भी सामने आ रहे हैं। एप डेवलपर इसके लिए कई चेक प्वांइट लगाते हैं। मगर वो उन्हें रोकने के लिए काफी नहीं हैं।

प्रकाश दुबे, साइबर एक्सपर्ट

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पिछले तीन-चार सालों में बच्चों और युवाओं में मनोरोग की समस्या काफी ज्यादा बढ़ी है। इसके तह में जाने पर पता चलता है कि वो किसी न किसी रूप में इंटरनेट और मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल कर रहे थे। बच्चे और युवा अपनी लाइफ की छोटी-छोटी जरूरतों के लिए इंटरनेट पर निर्भर रह रहे हैं। ऐसे में किसी काम के लिए निर्णय लेने की क्षमता काफी कम हो जाती है। ये भी एक गंभीर मनोवैज्ञानिक समस्या है।

डॉ नवीन कुमार, बाल मनोवैज्ञानिक ------------------------

इन एप का हो रहा है सबसे ज्यादा इस्तेमाल-

टिक-टॉक, स्नैप चैट, इंस्टाग्राम, फेसबुक, ओकेक्यूपिड, शेयरचैट, लाइक एप, सबवे सफर, रम्मी, बबल शूटर आदि

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बच्चों की प्रतिक्रिया

इंटरनेट का इस्तेमाल कम लोग टाइमपास के लिए ज्यादा कर रहे हैं। कई लोगों की आदत होती है मोबाइल थोड़े-थोड़े देर में देखने की।

अनिल कुमार राणा, छात्र मार्केट में लोग टिक-टॉक के दीवाने हैं। इसमें वीडियो बनाकर शेयर करना एक आदत बन गयी है। कुछ लोग इसी को अपनी आय का साधन बना रहे हैं। मगर इसका खराब प्रभाव भी अब हमारे सामने आने लगा है।

अविनाश कुमार प्रधान, छात्र


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