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सरयू राय बोले, झारखंड में अवैध खनन की जांच सीबीआइ या एसीबी से हो

मुख्यमंत्री कार्यालय को सौंपा स्मार-पत्र राज्य गठन से अब तक की घटनाओं का दिया हवाला

By JagranEdited By: Published: Tue, 08 Dec 2020 01:48 AM (IST)Updated: Tue, 08 Dec 2020 01:48 AM (IST)
सरयू राय बोले, झारखंड में अवैध खनन की जांच सीबीआइ या एसीबी से हो
सरयू राय बोले, झारखंड में अवैध खनन की जांच सीबीआइ या एसीबी से हो

राज्य ब्यूरो, रांची : भ्रष्टाचार के मामलों पर बेबाकी से अपनी बात रखने वाले निर्दलीय विधायक सरयू राय ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से पूरे प्रकरण की सीबीआइ या एसीबी जांच कराने का अनुरोध किया है। मुख्यमंत्री कार्यालय को सौंपे स्मार-पत्र में सरयू राय ने राज्य गठन से लेकर अब तक के लौह अयस्क के अवैध खनन और इस संदर्भ में हुई जांच पड़ताल का विस्तृत ब्यौरा दिया है। राय ने पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास पर भी गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि तत्कालीन मुख्यमंत्री ने लौह अयस्क के अवैध खनन को प्रोत्साहित किया जिससे राज्य सरकार को अरबों की चपत लगी है।

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राय ने तत्कालीन महाधिवक्ता की भूमिका को भी कठघरे में खड़ा किया है। राय ने पूरे मामले की जांच भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) से कराने तथा अवैध खनन के के षड्यंत्र में शामिल दोषियों एवं षड्यंत्रकारियों को दंडित करने की मांग की है।

प्रेषित पत्र में सरयू राय ने पूरे प्रकरण को विस्तार से बताया है। कहा, वर्ष 2000 से 2011 के बीच झारखंड में बड़े पैमाने पर लौह अयस्क का अवैध खनन हुआ था। अवैध खनन की जांच के लिए केंद्र की तत्कालीन यूपीए सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश एमबी शाह (अवकाश प्राप्त) की अध्यक्षता में 22 नवंबर 2010 को एक उच्च शक्ति प्राप्त जांच आयोग का गठन किया था, जिसने अक्टूबर 2013 में अपना प्रतिवेदन भारत सरकार को सौंप दिया। आयोग ने अपनी जांच में सिद्ध किया कि उक्त अवधि में झारखंड में बड़े पैमाने पर लौह अयस्क का अवैध खनन हुआ था। आयोग ने झारखंड में लौह अयस्क पट्टाधारियों पर अवैध खनन की मात्रा के हिसाब से कुल 14,541 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था। यह जुर्माना अवैध खनन कर निकाले गए लौह अयस्क की कीमत और इसपर ब्याज की राशि को जोड़कर था। पट्टाधारी इसके विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय गए तो सर्वोच्च न्यायालय ने जुर्माना पर ब्याज की राशि माफ कर दी और आदेश दिया कि पट्टाधारियों को जुर्माना की मूल राशि का भुगतान एकमुश्त करना होगा। इस निर्णय से अवैध खनन करने वालों पर लगाई गई जुर्माना की राशि 14,541 करोड़ से घटकर 7133 करोड़ रुपये हो गई। इसके बाद खननकर्ताओं से जुर्माना वसूल करने का काम झारखंड सरकार को करना था। साथ ही अवैध खनन करने के दोषी पाए गए पट्टाधारियों के खनन पट्टों को नियमानुसार रद्द करने की कार्रवाई के बारे में निर्णय लेने का दायित्व भी झारखंड सरकार पर था। राय ने लिखा है कि जिस समय शाह आयोग का प्रतिवेदन आया उस समय झारखंड में यूपीए की सरकार थी जिसके मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन यानी आप स्वयं थे। तत्कालीन सरकार ने जुर्माना वसूलने के लिए त्वरित कार्रवाई आरंभ की। इसके लिए 9 जून, 2014 को एक उच्चस्तरीय समिति गठित की। इस समिति ने 20 सितंबर 2014 को प्रतिवेदन दे दिया। समिति ने बताया कि झारखंड में लौह अयस्क का खनन करनेवाले खननकर्ताओं में से किस-किस ने किन-किन नियमों का उल्लंघन कर अवैध खनन किया है। इसके बाद झारखंड सरकार को अवैध खनन करने वालों पर नियमानुसार कार्रवाई करनी थी, जुर्माना वसूलना था और उनका खनन पट्टा रद्द करने की कार्रवाई शुरू करनी थी। इसके कुछ ही दिन बाद झारखंड में विधानसभा के आम चुनावों की घोषणा हो गई। चुनाव के बाद आपके नेतृत्व वाली यूपीए सरकार बदल गई। इसकी जगह एनडीए की सरकार बनी। रघुवर दास इस सरकार के मुख्यमंत्री बने। अब इस नवगठित सरकार को पूर्ववर्ती सरकार द्वारा तय किए गए जुर्माने की राशि को अवैध खननकर्ताओं से वसूलना था, लेकिन इसके उलट रघुवर सरकार ने अवैध खनन के दोषियों को बचाने का षड्यंत्र आरंभ कर दिया। तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास स्वयं इस षडयंत्र के सूत्रधार बन गए और अवैध खनन करने वालों के विरूद्ध कार्रवाई करने तथा उनसे जुर्माना वसूलने का मामला ठंडे बस्ते में पड गया।

षडयंत्र का पहला कदम आरंभ हुआ जुर्माना की राशि वसूलने की कार्रवाई करने के बदले जुर्माना की राशि को घटाने की साजिश करने के साथ। पूर्ववर्ती जिला खान पदाधिकारी द्वारा की गई गणना के अनुसार शाह ब्रदर्स पर ब्याज की पूर्व निर्धारित राशि को छोड़कर जुर्माना 605.56 करोड़ रुपये थी। नए जिला खान पदाधिकारी ने पता नहीं किस फॉर्मूला से इसको घटाकर करीब 194.59 करोड़ रूपये कर दिया।

एक ओर जुर्माना की राशि घटा दी गई तो दूसरी ओर घटाई गई जुर्माना की राशि भी नहीं वसूली गई। बीच में वसूलने की कोई कार्रवाई शुरू भी हुई तो उसपर सुनियोजित षडयंत्र के तहत पानी फेर दिया गया। अब इसकी जांच सीबीआई या भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो से कराई जाए तो षडयंत्र के समग्र पहलू पूरी तरह से उजागर हो जाएंगे। ------------

सरयू राय के आरोप

1. एक षडयंत्र के तहत जस्टिस एमबी शाह आयोग की अवैध खनन संबंधी अनुशंसाओं को झारखंड में लागू नही होने दिया गया ताकि राज्य में अवैध खनन को प्रोत्साहित कर बंदरबांट की जा सके।

2. इस षडयंत्र में झारखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास, तत्कालीन महाधिवक्ता अजीत कुमार एवं अन्य की मिलीभगत रही है। इनकी सक्रिय भूमिका के बगैर यह षडयंत्र सफल नहीं हो पाता। इन्होंने स्वयं अनुचित वित्तीय लाभ प्राप्त करने की मंशा से अपने पद का दुरुपयोग किया है।

3. सीटीओ नहीं रहने के बावजूद शाह ब्रदर्स को माइनिग चालान देने का निर्देश देकर तत्कालीन मुख्यमंत्री ने अवैध व्यापार को बढ़ावा दिया है।

4. अवैध खनन करने वाले पट्टाधारियों द्वारा की गई अनियमितताओं एवं उल्लंघनों की सुनवाई कर उनके विरुद्ध विधिसम्मत कार्रवाई करने की प्रक्रिया को एक षडयंत्र के तहत तत्कालीन मुख्यमंत्री सह खान मंत्री ने लंबे समय तक बाधित रखा ताकि अवैध खनन करने वाले इसका अनुचित लाभ उठा सकें और कार्रवाई से बचते रहें।

5. तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वयं खान मंत्री भी थे। वन एवं पर्यावरण मंत्री भी थे और वित्त मंत्री भी थे। एनपीवी का भुगतान नही करने वाले पट्टाधारी से केवल चार दिनों के लिए शपथ पत्र लेकर उसे नौ माह तक अवैध खनन करने देने का षडयंत्र इनके सक्रिय सहयोग के बिना संभव नहीं हो पाता।

6. तत्कालीन अपर महाधिवक्ता, श्री अजीत कुमार ने झारखंड उच्च न्यायालय में खान विभाग के हित के विरुद्ध बहस कर पेशागत नैतिकता को तार-तार कर दिया। इस संबंध में उन्होंने जान-बूझकर खान विभाग से परामर्श नही लिया। नतीजा हुआ कि अवैध खनन करने वालों का पट्टा रद करने के सरकार के आदेश पर न्यायालय की अंतरिम रोक लग गई।

7. खान विभाग के तत्कालीन अपर मुख्य सचिव ने अपर महाधिवक्ता के गलत आचरण के विरुद्ध महाधिवक्ता को पत्र लिखा तो मुख्यमंत्री ने कई वरीय अधिकारियों के समक्ष उन्हें अपमानित किया और उन्हें राज्य सरकार की सेवा छोड़कर केंद्र सरकार की सेवा में चले जाने के लिए विवश किया।

8. सर्वोच्च न्यायालय का स्पष्ट निर्देश था कि अवैध खनन करने वालों पर लगाए गए जुर्माने का भुगतान एकमुश्त करना होगा। तत्कालीन महाधिवक्ता, अजीत कुमार ने इसे दरकिनार कर 20 किश्तों में भुगतान करने का प्रस्ताव उच्च न्यायालय को दे दिया और कहा कि इस प्रस्ताव पर दोनो पक्षों (अवैध खननकर्ता और खान विभाग) की सहमति प्राप्त है।

9. तत्कालीन महाधिवक्ता ने अवैध खननकर्ताओं के हक में अपने पद का दुरुपयोग कई बार किया। हर बार तत्कालीन मुख्यमंत्री ने महाधिवक्ता का बचाव किया। राज्यहित को नुकसान पहुंचाया और अवैध खननकर्ताओं को लाभ पहुंचाया। यह सब जान-बूझकर एक साजिश के तहत हुआ।

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