महाधिवक्ता पर अब मंत्री सरयू राय ने भी उठाए सवाल
शाह ब्रदर्स के माइनिंग लीज मामले में एकमुश्त क्षतिपूर्ति राशि को लेकर उठे विवाद पर राज्य सरकार के मंत्री सरयू राय ने सवाल उठाया है।
रांची : शाह ब्रदर्स के माइनिंग लीज मामले में एकमुश्त क्षतिपूर्ति राशि को लेकर उठे विवाद पर राज्य सरकार के मंत्री सरयू राय ने भी सवाल उठाए हैं। गौरतलब है कि शनिवार को पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने पूरे मामले में महाधिवक्ता के स्तर से उठाई गई प्रक्रिया पर सवाल उठाया था। उन्होंने इस प्रकरण पर उच्चस्तरीय जांच की मांग की थी।
खनन लीज को लेकर पूर्व में भी सरकार को घेरते रहे सरयू राय ने रविवार को इस मसले पर महाधिवक्ता के रवैये को गलत बताते हुए कहा कि इससे राज्य सरकार को घाटा होगा। सुप्रीमकोर्ट ने शाह ब्रदर्स को क्षतिपूर्ति के एवज में एकमुश्त जुर्माना देने का प्रावधान किया था लेकिन महाधिवक्ता ने इस मामले की सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट को इससे अवगत नहीं कराया।
कायदे से महाधिवक्ता होने के नाते उन्हें सरकार का पक्ष रखना चाहिए था। किसी मामले में सहमति का अधिकार महाधिवक्ता को नहीं है जबतक कि राज्य सरकार से विमर्श नहीं हो। महाधिवक्ता सरकार को सलाह देने के लिए हैं। वे सरकार नहीं हैं।
माइनिंग लीज मामले में सुप्रीमकोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि 100 फीसद जुर्माना एक बार में भरना होगा। इसमें देर करने पर 24 फीसद ब्याज भी चुकाना होगा।
सरयू राय ने कहा कि वे बंद पड़ी खनन कंपनियों को लीज देते वक्त भी मुख्यमंत्री रघुवर दास का ध्यान आकृष्ट करा चुके हैं। बकौल सरयू राय, उन्होंने मुख्यमंत्री को कहा कि इसे सलाह मानिए या चेतावनी, लेकिन यह गलत है। उन्होंने कहा कि सिंहभूम मिनरल्स ने एमएमडीआर एक्ट का उल्लंघन किया। अपनी गलती भी स्वीकार की।
हेमंत सोरेन ने अपने शासनकाल में उसे राहत देने से इन्कार कर दिया। अब उसे फिर से राहत देने का प्रस्ताव विचाराधीन है।
दंड भुगतान करना कंपनियों की मजबूरी
सरयू राय का दावा है कि खनन लीज में दंड भुगतान करना कंपनियों की मजबूरी है। ऐसा नहीं करने पर सरकार सर्टिफिकेट केस कर सकती है। शाह ब्रदर्स मामले में अपर मुख्य सचिव इंदुशेखर चतुर्वेदी ने भी लिखा है कि लीज कैंसिल होना चाहिए। कंपनियां इससे संबंधित कागजात जमा नहीं कर रही हैं।
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