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Migrant Workers: वापस लौटकर संपत्ति में मांगा हिस्सा, तो रिश्ते हुए तार-तार; लॉकडाउन में ठौर ढूंढ रहे प्रवासी

नौकरी पर संकट गहराया तो घर की संपत्ति में हिस्‍सेदारी की मांग जोर से उठी है। दूसरे राज्य में कमाने वाला भाई घर लौटा तो पहले से जमे भाइयों से उनका संपत्ति बंटवारे पर विवाद हो रहा।

By Alok ShahiEdited By: Published: Wed, 27 May 2020 01:00 AM (IST)Updated: Wed, 27 May 2020 03:10 AM (IST)
Migrant Workers: वापस लौटकर संपत्ति में मांगा हिस्सा, तो रिश्ते हुए तार-तार; लॉकडाउन में ठौर ढूंढ रहे प्रवासी
Migrant Workers: वापस लौटकर संपत्ति में मांगा हिस्सा, तो रिश्ते हुए तार-तार; लॉकडाउन में ठौर ढूंढ रहे प्रवासी

रांची, [उतम नाथ पाठक]। प्रवासी मजदूर अपने परिवार के साथ घर लौट रहे हैं। पहली चिंता थी कि संक्रमण काल में किसी तरह घर सुरक्षित पहुंच जाएं तो पहुंच गए। अब चिंता भविष्य की है। परिवार का पेट पालने की है। कोई कारखाने में काम करता था तो कोई प्लंबर-तकनीशियन था। कारखानों में काम बंद हुआ या उपार्जन का माध्यम छूटा तो सभी अपने घर की ओर भागे और अब यहीं जीने-खाने की सोच रहे। ज्यादातर के पास छोटा घर और छोटी सी जमीन है। परिवार के भाई उसमें किसी तरह बसर कर रहे थे लेकिन अब इन्हें भी सिर छिपाने के लिए छत चाहिए तो पेट पालने के लिए जमीन का टुकड़ा। हिस्सा मांगते ही तनाव बढऩे लगा है। पंचायत व थाना पुलिस तक मामला पहुंचने लगा है।

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रांची व खूंटी की सीमा पर स्थित खरसीदाग के रमेश महतो दिल्ली में पाइप बनाने वाली फैक्ट्री में काम करता था। काम बंद हुआ तो आमद रुक गई। काफी जद्दोजहद के बाद किसी तरह वह परिवार के साथ अपने घर खरसीदाग वापस लौट आया। चार भाइयों में तीसरे नंबर पर रमेश ने पिता की संपत्ति में हिस्सा मांगा। बकझक से शुरू हुआ विवाद मारपीट तक जा पहुंचा। लोगों ने बीच बचाव कर मामले को शांत तो करा दिया लेकिन रमेश अड़ा हुआ है। कहा, अभी फसल लगी हुई है। फसल जैसे ही कटेगी वो अपने हिस्से की जमीन नापकर उस पर खेती शुरू करेगा। चाहे जिसको जो करना है कर ले। मलाल है कि जब बाहर से बाहर से पैसा भेजता था या मदद करता था तो मैं सबसे अच्छा था। आज मुझे जरूरत पड़ी तो सब ऐसा व्यवहार कर रहे हैं।

हजारीबाग जिले के बड़कागांव के नया टांड़ पंचायत का ग्रामीण लॉकडाउन में काम बंद हुआ तो मुंबई से अपने घर लौटा। क्वारंटाइन से लौटने के बाद घर में पुश्तैनी जमीन बांटने की बात की। भाई से विवाद हुआ तो पंचायती हुई। वहीं, क्वारंटाइन सेंटर में लिए गए सैंपल की रिपोर्ट आई तो वह कोरोना संक्रमित निकला। उसके भाई और पंचायत में आए सारे लोग सशंकित हो गए। भाई ने कहा, एक तो कोरोना बीमारी ले आया गांव उस पर से बंटवारे की बात कर रहा। संक्रमित को अस्पताल ले जाया गया। जमीन का विवाद लटका हुआ है।

हजारीबाग जिले के चौपारण के बरहमोरिया पंचायत का शिबू भुइयां आंध्र प्रदेश से तीन दिन पूर्व लौटा है। दो मिट्टी के कमरे में चार भाई अपने परिवार व माता के साथ किसी तरह रहते हैं। क्वारंटाइन सेंटर से भाग कर वह घर पहुंचा और बंटवारे की बात करने लगा। आंगन में ही ईट की दीवार खड़ी करने लगा लेकिन उसे अन्य भाइयों ने गिरा दिया। झगड़ा बढ़ा तो पंचायत के मुखिया तक बात पहुंची। मंगलवार को पंचायती कर विवाद को समाधान देने की कोशिश की गई लेकिन बात नहीं बन सकी। मामला अब थाने तक जा पहुंचा है।

रांची खूंटी बॉर्डर पर स्थित पातीज गांव निवासी मंगरा मुंडा का बेटा सनिका मुंडा काम करने गुजरात गया था। पत्नी-बच्चे भी साथ ही रहते थे। अब घर लौट कर सनिका ने अपने भाइयों से जमीन में हिस्सा मांगा है। दो भाई तीन एकड़ में खेती करते हैं। बंटवारे की बात से विवाद हो गया है और मामला मुखिया अनीता देवी के पास पहुंचा है। ग्राम सभा में मामले का निपटारा होगा।

अभी तो चिंगारी उठी है

ये कुछ घरों की घटना है जो चौखट की दहलीज लांघ कर चौपालों और पंचायतों में पहुंची लेकिन कहानी ये घर-घर की है। झारखंड में नौ लाख से ज्यादा प्रवासी मजदूर अपने घर लौट रहे हैं। इनमें से ज्यादातर की नौकरी छूट गई है या संकट में है। ऐसे में ये अपने घर में रहकर खेती या दूसरा विकल्प देख रहे। जाहिर तौर पर उन्हें हिस्सा चाहिए। यही विवाद की जड़ है। झारखंड में 60 प्रतिशत किसान महज एक एकड़ जमीन के मालिक हैं और किसी तरह इससे गुजर बसर करते हैं। जमीन के इस छोटे से टुकड़े के बंटवारे की चिंता ने आपसी बैर बढ़ा दिया है। 

इतने से नहीं चलेगा गुजारा

समाजशास्त्री डा. प्रभात सिंह के अनुसार, संकट के इस दौर में परेशान लोग यह सोच रहे हैं कि किसी तरह वे कष्ट कर यहीं अपना जीवन-यापन करने लगेंगे लेकिन छोटी-छोटी और ज्यादातर एक फसलीय जमीन से गुजारा करना मुश्किल है। जो लोग बाहर 15-20 हजार रुपया महीना भी कमाते थे वह कैसे बहुत कम में गुजारा कर पाएंगे। अपने बच्चों को बेहतर स्कूल में पढ़ा रहे थे अब कैसे यूं ही छोड़ देंगे।

तकनीकी कुशलता वाले कामगारों के लिए खुरपी-कुदाल चलाना संभव होगा ऐसा नहीं लगता। मनरेगा में काम करने की सोचें और अधिकतम सौ दिन रोजगार मिल भी जाए तो साल में अधिकतम बीस हजार की तो व्यवस्था हो पाएगी। अभी संकट काल है लेकिन जैसे ही हालात बदलेंगे ये लोग फिर से बेहतर जिंदगी की तलाश में दूसरे राज्यों का रुख करेंगे।


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