लॉकडाउन से बच्चों में बढ़ रहा तनाव, मानसिक स्वास्थ्य को खतरे की आशंका
राची कोरोना वायरस संक्रमण के खतरे से पूरी दुनिया जूझ रही है। इसके
जागरण संवाददाता, राची : कोरोना वायरस संक्रमण के खतरे से पूरी दुनिया जूझ रही है। इसके फैलाव को कम करने के लिए अधिकतर देशों में लॉकडाउन लागू है। भारत में भी लगभग डेढ़ महीने से भी अधिक समय से अधिकाश आबादी घरों में बंद है। परिवार के बड़े सदस्य किसी न किसी काम से घर से बाहर तो निकलते हैं मगर अधिकतर बच्चे अबतक घरों में कैद हैं। उनका स्कूल जाना बंद हो चुका है, मैदानों में खेलना बंद है। हर तरफ कोरोना का खौफ है। हर जगह चाहे वह घर हो या बाहर, टीवी, फोन या समाचार पत्र कोरोना की खबरों से छाए हुए हैं। बच्चे भी इन खबरों से अछूते नहीं हैं। ऐसे में इन छोटे बच्चों के मन में कई नकारात्मक विचार घर कर सकते हैं। इन सबका बच्चों पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है तथा इससे उनके मानसिक स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है। रचनात्मक कार्य के लिए बच्चों को करें प्रोत्साहित
शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ अनिताभ चौधरी कहते हैं कि तनाव के चलते हार्मोन में बदलाव होता है। लॉकडाउन के कारण उनकी रूटीन में बदलाव आ चुका है। वे घर पर ही रह रहे हैं। बच्चों की पढ़ाई भी ऑनलाइन हो रही है, मनोरंजन के लिए भी वे फोन पर ही आश्रित हैं। वे अपना काफी समय मोबाइल या लैपटॉप को दे रहे हैं। रचनात्मक कायरें से दूर हैं। लगातार बुरी घटनाओं को देखने और सुनने के कारण कई बच्चों में तनाव बढ़ रहा है। इस तनाव से उन गहरा असर पड़ सकता है। ऐसे में बच्चों को इस नकारात्मक माहौल से बाहर निकालना बहुत जरूरी है। अभिभावक यह सुनिश्चित करें कि बच्चों को कम से कम फोन का इस्तेमाल करने दिया जाए। उन्हें रचनात्मक कार्य करने को प्रोत्साहित करें। इस दौरान उनके साथ अभिभावक खुद भी जुड़ें। गार्डेनिंग, व्यायाम, कुकिंग जैसे कामों की तरफ बच्चों का ध्यान लगाएं। उन्हें प्रर्याप्त नींद मिले इसका ध्यान रखें। अगर वह कुछ असामान्य हरकत कर रहा है तो डॉक्टर से सलाह लें। नई स्थिति में खुद को ढ़ालना होगा
मनोचिकित्सक एके नाग कहते हैं कि मनुष्य का स्वभाव है आजाद विचरण करना। जब ऐसा नहीं हो पाता है और लंबे समय तक उसका घर से बाहर निकलना बंद हो जाता है तो वह बीमार अनुभव करने लगता है। लेकिन यह ऐसी आपदा है कि बाहर निकलना बेहद खतरनाक साबित हो सकता है। इसलिए लोगों को नए सिरे से अपनी दिनचर्या बनानी होगी। इस नई स्थिति में खुद को ढ़ालना होगा। वैसे भी परिस्थितियों के अनुसार खुद को बदलना मनुष्य का स्वभाव है। अभिभावक को बच्चों की बदल चुकी इस दिनचर्या में व्यायाम, योगाभ्यास जैसे शारीरिक कायरें को शामिल कराना होगा तभी वे खुद को स्वस्थ और तनाव मुक्त रख पाएंगे।